भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
साल 2013 की बात है। विधानसभा चुनाव की तैयारी परवान पर थी। भाजपा ने 176 उम्मीदवारों की सूची जारी की और उसमें अनूपगढ़ से प्रत्याशी थीं प्रियंका बालान। लेकिन अगले ही दिन पार्टी ने प्रियंका का टिकट वापस ले लिया क्योंकि उस वक्त प्रियंका बालान की उम्र महज 23 साल से कुछ अधिक थी। यानी वे 25 साल की नहीं हुई थीं। दरअसल, इस घटनाक्रम में दो संदेश छिपे हैं। पहला, अगर आप जिद और जुनून रखते हैं तो कुछ भी असंभव नहीं। दूसरा, धैर्य है तो फिर मन मारकर घर बैठने की जरूरत नहीं। आने वाला समय आपका ही है।
प्रियंका बालान के पास जिद है और जुनून भी। धैर्य भी कम नहीं। लिहाजा, आज वह युवाओं के लिए ‘रोल मॉडल’ हैं। खासकर लड़कियों के लिए। साधारण परिवार की एक बेटी आज राजस्थान की राजनीति में मजबूत दखल रखती है। प्रियंका इस वक्त पाकिस्तान सीमा पर स्थित अनूपगढ़ नगरपालिका की चेयरपर्सन भी हैं। पार्टी ने उन्हें प्रदेश मंत्री की जिम्मेदारी भी दी है।
दरअसल, प्रियंका के परिवार का राजनीति से कोई वास्ता नहीं था। उस वक्त भाजपा की स्टार प्रचारक वसुंधराराजे सुराज संकल्प यात्रा पर थीं। प्रियंका उनसे बेहद प्रभावित थीं, साथ हो गईं। राजे को भी प्रियंका में नेतृत्व क्षमता नजर आई और उन्होंने इस साधारण परिवार की असाधारण लड़की को सक्रिय राजनीति में लाने का फैसला किया। लेकिन उस वक्त बात नहीं बनी क्योंकि छोटी आयु बाधक बन गई। फिर पार्टी ने प्रियंका को भाजयुमो में प्रदेश मंत्री का जिम्मा दिया। उस वक्त सीपी जोशी प्रदेशाध्यक्ष थे। बाद में जब अशोक सैनी प्रदेशाध्यक्ष बने तो प्रियंका बालान को प्रदेश उपाध्यक्ष पद पर पदोन्नति दी गई। अब चूंकि जोशी बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष हैं तो संयोग ही है कि प्रियंका भी उनकी टीम में पुनः प्रदेश मंत्री बनी हैं। जाहिर है, प्रियंका के समर्थकों में खुशी है।