गोपाल झा.
रिश्तों के बिना हमारे जीवन का क्या मतलब है ? हर रिश्ते का अपना खास महत्व है। फिर भाई-बहन का रिश्ता तो सबसे अलग है। बचपन में साथ पलने और बढ़ने के साक्षी हैं दोनों। साथ खेलने, झगड़ने, रूठने और मनाने के कई किस्से जो बाद में गुदगुदाते हैं। विवाह के बाद ससुराल जाने व पीहर में माता-पिता के परलोक सिधारने के बाद रिश्ते की डोर भाई से बंधी होती है बहनों की। भारत की संस्कृति सबसे अलग इसलिए है क्योंकि हर रिश्ते का महत्व दर्शाने के लिए यहां पर अलग-अलग पर्व का प्रावधान है, उत्सव मनाने का अवसर है। रक्षा बंधन भी उसी का एक हिस्सा है।
तकरीबन दो दशक पहले तक अमूमन हर भाई अपनी बहन से राखी बंधवाने जरूर जाता था। लेकिन अब प्रोफेशनल लाइफ की व्यस्तता की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पा रहा। अब तो डाक और ऑनलाइन सुविधा है, जिससे समय पर राखी भेजकर बहनें भी संतोष प्रकट कर लेती हैं कि चलो समय पर भाई तक राखी तो पहुंच ही जाएगी। फिर वीडियो कॉलिंग के माध्यम से बातचीत की सुविधा सुकून देने के लिए काफी है। फिर भी राखी पर भाई-बहन साथ हों तो ही इस पर्व की खुशियां महसूस की जा सकती हैं।
अब जरा दूसरे पहलू पर गौर कीजिए। हर भाई अपनी बहन को सुखी देखना चाहता है। पुलिसिया रिकार्ड को खंगालने पर पता चलता है कि छेड़छाड़, दुराचार और महिला उत्पीड़न के मामलों में बेहताशा बढ़ोत्तरी हो रही है। इन वारदातों को अंजाम कौन दे रहा है ? यकीनन, कोई भाई ही होगा। वही भाई जिसे अपनी बहन की तरफ आंख उठाकर देखने वाला पसंद नहीं लेकिन खुद वह क्या कर रहा है ? किसी की बहन की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करना अच्छे भाई के लक्षण तो नहीं ? यह कैसा संस्कार है ?
रक्षा बंधन संबंधों के इस संक्रमणकाल में आत्ममंथन का मौका देता है। तीन दशक पहले तक गांवों में एक स्वस्थ परंपरा थी। बेटी पूरे गांव की मानी जाती थी। उसकी सुरक्षा व विवाह पर होने वाली व्यवस्थाओं का जिम्मा गांव का होता था। आज क्या हो रहा है ? शहरों को छोड़िए, गांवों के हालात बदतर हो रहे। इसलिए कि संस्कारों का पतन हो रहा है। रिश्तों के अर्थ महसूस नहीं किए जा रहे। बदचलनी का ऐसा माहौल है कि रिश्तों की पवित्रता भंग होती जा रही है। फिर इस तरह के पर्वों का क्या औचित्य है ?
रक्षा बंधन का पर्व हमें एक अच्छे भाई बनने की सीख देता है। दूसरों की बहनों को आदर देना उसकी सुरक्षा करना ही एक सच्चे और अच्छे भाई होने का प्रमाण है क्योंकि प्रत्येक बहनें अपने भाई से यही उम्मीद करती हैं। अगर हर भाई इस पर्व के भाव को समझ लें तो फिर बेटियों को बचाने का नारा अप्रासंगिक हो जाएगा। क्योंकि बेटियों और महिलाओं को खतरा ही सिर्फ पुरुषों से है जो एक भाई भी है। अगर सभी ‘भाई’ नैतिकता की कसौटी पर खुद को परखना शुरू कर दे ंतो समाज इन अपराधों से स्वतः मुक्त हो जाएगा। सचमुच, रक्षा बंधन का वास्तविक अर्थ यही है, महिलाओं का सम्मान। तो आइए, इस रक्षा बंधन पर महिला-पुरूष के रिश्ते की पवित्रता को बनाए रखने का संकल्प लेते हुए इसे निभाने का भरोसा भी देते हैं। अपने समाज को बेहतर बनाने में इससे बड़ा सहयोग और क्या हो सकता है ? अगर कोई भाई यह संकल्प ले तो रक्षा बंधन पर बहन के लिए यह अनमोल तोहफा हो सकता है। बेशक।