दर्द को जीने वाले कवि शिव बटालवी

राजेश चड्ढ़ा. 

की पुछदे ओ हाल फकीरां दा 
साडा नदियों विछड़े नीरां दा 
साडा हंज दी जूने आयां दा 
साडा दिल जलयां दिलग़ीरां दा। 
मेरे गीत वी लोक सुणींदे ने 
नाले काफ़िर आख सदींदे ने 
मैं दर्द नूं काबा कह बैठा 
रब नां रख बैठा पीड़ां दा। 
शिव बटालवी
हमारे यहां बहुत उम्दा कवि हुए हैं, लेकिन ऐसे कम ही हैं, जिन्हें लोगों का बेपनाह प्यार मिला हो। हिंदी में बच्चन को, उर्दू में ग़ालिब और फ़ैज़ को, अंग्रेज़ी में कीट्स को और पंजाबी में इतना ही प्यार शिव को मिला।

 शिव कुमार बटालवी पंजाबी भाषा के ऐसे मशहूर शायर हुये हैं जिन्हें उनकी रोमांटिक, विरह एवं दर्द की रचनाओं के लिये सदा याद किया जाता रहेगा। शिव की रचनाओं को मोहन सिंह और अमृता प्रीतम की रचनाओं के बराबर माना जाता है। जो कि भारत-पाकिस्तान सीमा रेखा के दोनों तरफ़ एक जैसी लोकप्रिय हैं। शिव कुमार बटालवी पंजाबी के ऐसे आधुनिक कवि हैं जिनके गीतों में पंजाब के लोकगीतों का आनंद हैं। शिव ऐसे विख्यात कवि हैं, जो अपने रोमांटिक काव्य के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। शिव कुमार बटालवी जिनके काव्य में भावनाओं का उभार, करुणा, जुदाई और प्रेमी के दर्द का बखूबी चित्रण है। शिव कुमार बटालवी एक ऐसे शायर व एक ऐसे कवि थे जिन्होंने दर्द को पूरी तरह जिया।

 शिव कुमार का जन्म 23 जुलाई 1936 को गांव बड़ा पिंड लोहटिया, शकरगढ़ तहसील (जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में है) के राजस्व विभाग के तहसीलदार पंडित कृष्ण गोपाल और शांति देवी के घर में हुआ। भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार गुरदासपुर ज़िले के बटाला शहर में चला आया, जहां उनके पिता ने पटवारी के रूप में अपना काम जारी रखा और वहीं शिव ने प्राथमिक शिक्षा पाई। 
1953 में उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की और बटाला में एफ एस सी में नामांकित हुए, हालांकि, अपनी डिग्री पूरी करने से पहले उन्होंने कला विभाग में दाखिला लिया, जो उनके व्यक्तित्व से ज़्यादा मेल खाता था। दूसरे साल में उन्होंने उसे भी छोड़ दिया। उसके बाद वह हिमाचल प्रदेश में सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लेने के लिए चले गये, और उसे भी उन्होंने बीच में ही छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने नाभा के सरकारी कालेज में अध्ययन किया।
ऐसा कहा जाता है कि उन्हें विख्यात पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी से मौहब्बत हो गयी, लेकिन किसी कारण उसने एक ब्रिटिश नागरिक से शादी कर ली। हालांकि शिव ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया। शायद ! प्यार की यही पीड़ा उनकी कविता में तीव्रता से परिलक्षित होती है। 
1960 में उनकी कविताओं का पहला संकलन ‘पीरां दा परांगा’ प्रकाशित हुआ, जो काफी सफल रहा। पूरण भगत की प्राचीन कथा पर आधारित महाकाव्य नाटिका लूणा (1965) जिसे आधुनिक पंजाबी साहित्य की एक महान कृति माना जाता है, के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और इस पुरस्कार को पाने वाले शिव सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये। 

1967 के प्रारंभ (5 फ़रवरी 1967) में उन्होंने गुरदासपुर ज़िले की अरुणा से शादी कर ली और बाद में दंपती को पुत्र मेहरबान (1968) और पुत्री पूजा (1969) हुए. 1968 में चंडीगढ़ चले गये, जहां वे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में जन संपर्क अधिकरी बने। बाद के वर्षों में वे खराब स्वास्थ्य से त्रस्त रहे, हालांकि उन्होंने बेहतर लेखन जारी रखा। उनके लेखन में उनकी चर्चित मौत की इच्छा हमेशा से स्पष्ट रही है, अपने एक गीत में वे लिखते है- 
असां ते जोबन रूते मरना, 
टुर जाणां असां भरे-भराये, 
हिज़्र तेरे दी कर परक्रमा, 
असां तां जोबन रूते मरना। 
इसी बात को अपने अलग अंदाज़ में शिव यूं भी कहते हैं- 
एह मेरा गीत किसे ना गाणा 
एह मेरा गीत मैं आपे गा के 
भलके ही मर जाणा। 
अपने एक गीत में शिव लिखते हैं- 
यारड़या रब करके मैंनूं 
पैण बिरहों दे कीड़े वे,
 नैंना दे दो संदली बूहे 
जाण सदा लई भीड़े वे। 
माए नी माए मैं इक शिकरा यार बनाया,
 माए नी मेरे गीतां दे नैणा विच विरहों दी रड़क पवे,
भट्ठीवालिए चंबे दिए डालिए पीड़ां दा परांगां भुन दे
जैसे अद्धभुत गीतों को रचने वाले शिव ने बहुतेरी नायाब ग़ज़लों और गीतों से विश्वभर में अपनी अलग पहचान बनायी। 
शिव कुमार बटालवी अपने उधारा गीत में कहते हैं-
सांनूं प्रभ जी,
 इक अद गीत उधारा होर देयो. 
साडी बुझदी जांदी आग्ग, 
अंगारा होर देयो। 
मैं निक्की उम्रे
सारा दर्द हंडा बैठा, 
साडी जोबन रुत लई,
दर्द कुंआरा होर देयो।
शिव को बिरह का सुल्तान कहा जाता है। पंजाब में कवितायें लोक गीत बन जाती है और कवि पढ़े जाएं या नहीं मगर सुने बहुत जाते हैं। जैसे वारिस शाह की ‘हीर’ गायी और सुनी जाती है। शिव के गीत भी पंजाब में बहुत लोकप्रिय है। इस का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके गीतों को लगभग सभी पंजाबी गायकों ने तो गाया ही, सुविख्यात पंजाबी गायिका सुरिंदर कौर, आसा सिंह मस्ताना, महेन्द्र कपूर, नुसरत फतह अली खान और जगजीत सिंह तथा चित्रा सिंह ने भी गाया।
 ढेरों गीत और कविताएं लिखने वाले रूमानी तबीयत के मस्त-मलंग शिव कुमार बटालवी के गीतों में प्यार है, दर्द है, सब से बड़ी बात ये है कि उन्होंने पंजाबी को अपने गीतों से समृद्ध किया।
6 और 7 मई की रात सन 1973 में 36 साल की उम्र में शराब की आदत के कारण हुए लीवर सिरोसिस के परिणामस्वरूप पठानकोट के किरी मांग्याल नामक गाँव यानि अपने ससुराल में उनका निधन हो गया।
शिव की कृतियां हैं, ‘पीरां दा परांदा’, ‘मैनूं विदा करो’, ‘ग़ज़लां ते गीत’ ‘आरती’, ‘लाजवंती’, ‘आटे दियां चिड़ियां’, ‘लूणा’, ‘मैं ते मैं’, ‘दर्दमंदां दिया आहिन’, ‘सोग’, ‘अलविदा’, ‘विरह दा सुल्तान’, ‘शिव कुमारः संपूर्ण काव्य संग्रह’, ‘शिव कुमार बटालवी की कविताओं का चयन’ (अमृता प्रीतम द्वारा चयनित)
शिव का प्रकृति प्रेम उनके एक गीत रुख में उनके अलग रंग को दर्शाता है- 
कुज रुख मैनूं पुत्त लगदे ने
 कुज रुख लगदे मांवां
 कुज रुख नूंहां धीयां लगदे 
कुज रुख वांग भरांवां 
कुज रुख मेरे बाबे वाक्कण 
पत्तर टांवां टांवां 
कुज रुख मेरी दादी वरगे
 चूरी पावन कांवां 
कुज रुख यांरा वरगे लगदे 
चुम्मां ते गल्ल लावां 
इक मेरी महबूबा वाक्कण 
मिट्ठा अते दुखांवां 
कुज रुख मेरा दिल करदा ए
 मोडे चक्क खिडावां
 कुज रुख मेरा दिल करदा ए 
चुम्मां ते मर जांवा 
कुज रुख जद वी रल के झूम्मण 
तेज वगन जद हवांवा
 सावी बोली सब रुखां दी
 दिल करदा लिख जांवां
 मेरा वी एह दिल करदा है 
रुख दी जूणे आवां 
जे तुसां मेरा गीत है सुनना
 मैं रुखां विच गांवा
 रुख तां मेरी मां वरगे ने 
ज्योंण रुखां दियां छांवां। 
लेखक जाने-माने शायर व साहित्यकार हैं

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