भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
बीजेपी को वैचारिक तौर पर जुड़े कार्यकर्ताओं से उतना प्रेम नहीं जितना कांग्रेसियों से है। कांग्रेस विचारधारा के नेताओं को आगे बढ़ाने में बीजेपी सदैव आगे रही है। हां, उसी कांग्रेस को पानी पी-पीकर गरियाना उसकी सियासी फितरत है। यह कहना है कि भाजपा कार्यकर्ताओं का। हनुमानगढ़ जिले की चार सीटों पर बीजेपी ने उम्मीदवार तय कर दिए। दिलचस्प बात है कि पीलीबंगा में विधायक धर्मेंद्र मोची को छोड़ दे ंतो बीजेपी ने संगरिया, नोहर और भादरा में कांग्रेस मूल के नेता को टिकट देकर उन कायकर्ताओं को एक बार फिर निराश किया जो सोशल मीडिया पर ‘मोदी-मोदी’ करते रहते हैं, कांग्रेस को निशाने पर रखते हैं।
संगरिया विधायक गुरदीप शाहपीनी 2018 के चुनाव के वक्त कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे। वे उस वक्त दोनों पार्टियों में टिकट के लिए प्रयास कर रहे थे लेकिन उनकी प्राथमिकता कांग्रेस थी लेकिन टिकट मिला भाजपा का। चुनाव लड़े और जीत गए। पार्टी ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है।
भादरा से बीजेपी ने संजीव बेनीवाल को टिकट दिया है। संजीव बेनीवाल दो बार विधायक रहे। पहली बार 1998 में कांग्रेस के सिंबल पर जीते और फिर 2008 में कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव हार भी गए। साल 2013 में वे बीजेपी में शामिल हुए और टिकट लेकर चुनाव मैदान में आए, जीते भी। लेकिन भाजपा के संघ से जुड़े कार्यकर्ता एक दशक बाद भी उन्हें मूल कांग्रेसी ही मानते हैं।
नोहर से भाजपा ने अभिषेक मटोरिया को चौथी बार टिकट दिया है। कांग्रेस मूल के अभिषेक मटोरिया रावतसर पालिकाध्यक्ष भी रहे। साल 2008 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, नोहर से टिकट मिला और लगातार दो बार जीते। पिछले चुनाव में कांग्रेस के अमित चाचाण के सामने उन्हें पराजित होना पड़ा।
श्रीगंगानगर से भी बीजेपी ने कांग्रेस मूल के जयदीप बिहाणी को टिकट थमाया है जबकि वैचारिक तौर पर चार से पांच दशक से पार्टी को मजबूत करने वालों को पार्टी ने कभी तवज्जो देना उचित नहीं समझा।
नोहर से भाजपा ने अभिषेक मटोरिया को चौथी बार टिकट दिया है। कांग्रेस मूल के अभिषेक मटोरिया रावतसर पालिकाध्यक्ष भी रहे। साल 2008 में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामा, नोहर से टिकट मिला और लगातार दो बार जीते। पिछले चुनाव में कांग्रेस के अमित चाचाण के सामने उन्हें पराजित होना पड़ा।
श्रीगंगानगर से भी बीजेपी ने कांग्रेस मूल के जयदीप बिहाणी को टिकट थमाया है जबकि वैचारिक तौर पर चार से पांच दशक से पार्टी को मजबूत करने वालों को पार्टी ने कभी तवज्जो देना उचित नहीं समझा।
आरएसएस से जुड़े एक बुजुर्ग स्वयंसेवक कहते हैं, ‘राजनीति में विचारधाराओं का पतन हो गया है। स्वार्थ और सत्ता संघर्ष ही अब केंद्र में है। सभी दल सत्ता के लिए दल-दल में गिरने के लिए लालायित रहते हैं। अब उन कार्यकर्ताओं को सबक लेने की जरूरत है जो इन नेताओं और पार्टियों के नाम पर आपस में रिश्ते खराब करते हैं।’
कांग्रेस विचारधारा के एक वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते हैं, ‘हर बार चुनाव के दौरान यह संदेश मिलता है। फिर भी कार्यकर्ता सच्चाई को समझने की चेष्टा नहीं करते। यही नेता और कार्यकर्ता में फर्क है। कांग्रेस आज भी अजेय हो सकती है बशर्ते कि वह एकजुट होकर चुनाव लड़े और बीजेपी भले इस दौर को स्वर्णयुग बताए लेकिन बिना कांग्रेसियों के सहयोग उसमें इतनी ताकत नहीं कि कांग्रेस का नुकसान कर सके।’
काबिलेगौर है, बीजेपी की इस राजनीति को लेकर पार्टी के भीतर जबरदस्त रोष देखा जा रहा है। आने वाले समय में राजनीतिक ढर्रे में व्यापक बदलाव की उम्मीद की जा रही है।