भटनेर पोस्ट न्यूज. नई दिल्ली.
सोचिए, कैसा दृश्य होगा जहां पर श्मसान में जलती चिताओं की ज्वाला धधक रही हों और उस राख से होली खेली जा रही हो। मुंह में सांप फुफकार छोड़ रहा और डमरू बजाते हुए मस्ती में नृत्य कर रहे साधु। दरअसल, यह दृश्य देखना हो तो आप बनारस जा सकते हैं। इसे मसान की होली कहते हैं। आम इंसान जो चिता की राख से दूर भागता है, वो ही इसे प्रसाद मानकर एक चुटकी राख के लिए घंटों इंतजार कर रहा है। भीड़ इतनी कि पैर रखने तक की भी जगह नहीं। काशी में होली से 4-5 दिन पहले ही मसान होली की शुरुआत हो जाती है। इसके लिए न सिर्फ देशभर से बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी भी यहां मसान होली खेलने आते हैं।
यही वजह है काशी विश्वनाथ मंदिर के आसपास एक भी होटल या गेस्ट हाउस खाली नहीं है। रास्ते में जगह-जगह अघोरी बाबा करतब दिखा रहे हैं। कोई हाथ में नाग लेकर घूम रहा है, तो कोई आग से खेल रहा। चिता की भस्म हवा में इस तरह घुली है कि दूर-दूर तक मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हरिश्चंद्र घाट पर दिन-रात शव जलते रहते हैं। यहां के मुख्य आयोजक पवन कुमार चौधरी हैं। वे डोमराजा कालूराम के वंशज हैं।
मसान होली को लेकर पवन चौधरी एक पौराणिक कथा सुनाते हुए कहते हैं, ‘राजा हरिश्चंद्र हमारे बाबा कालू राम डोम के हाथों इसी जगह पर बिके थे। उनकी पत्नी भी कालू राम डोम के यहां काम करने लगी थीं। जब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी तारा से अपने बेटे के अंतिम संस्कार के लिए भी कर चुकाने को कहा, तो तारा ने अपनी साड़ी फाड़कर कर चुकाया। उस दिन एकादशी थी। राजा की इस सत्यवादिता को देखकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहने लगे कि राजा तुम अपनी तपस्या में सफल हुए। तुम अमर रहोगे और यह दुनिया तुम्हें सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के नाम से जानेगी। भगवान विष्णु के पादुका निशान आज भी हरिश्चंद्र घाट पर हैं। इसी स्थान से चिता भस्म यानी मसान होली की शुरुआत की जाती है।’