सुनील कुमार महला.
शिक्षक का मतलब है-‘विद्या या ज्ञान देने वाला या दूसरे शब्दों में कहें तो शिक्षा देने वाले को शिक्षक कहते हैं। सर्वप्रथम यही कहना चाहूंगा कि अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः’ यानी ज्ञान के अज्ञान रूपी अंधकार से अंधे लोगों की आंखें खोलने वाले गुरु को नमस्कार। वास्तव में, देखा जाए तो एक शिक्षक ही देश के भाग्य का निर्माता होता हैं। वह शिक्षकों को नयी दिशा, नया मोड़ देने की क्षमता रखता है। हम यूं भी कह सकते हैं कि शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो बालक के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास कर उसमें अच्छे मूल्यों, संस्कृति, संस्कारों और आदर्शों को विकसित करता है जिससे कि वो आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनें और देश की उन्नति एवं विकास में अपना योगदान दे सकें। शिक्षकों के कंधों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। वास्तव में शिक्षक ही गुरू है। मतलब अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला। वह तो नारायण रूप है। शायद इसीलिए कहा भी गया है-‘बंदउँ गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज जासु बचन रबिकर निकर।।’ इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि गुरु को नारायण का रूप माना गया हैं। हमेशा हमलोग अपने गुरु के चरण कमलों की वंदना करते हैं।
ऐसा कहा जाता है, कि सूरज के उगने से फैला सारा अँधेरा नष्ट हो जाता हैं। इसी तरह गुरु हमारे मोहरूपी सभी अंधकार को ख़त्म कर देता हैं। गुरू या शिक्षक के बिना ज्ञान मिलना मुश्किल है, क्योंकि गुरू ही ज्ञान की ओर ले जाता है, वह हमें जीवन के सही मार्ग की ओर अग्रसर करता है, एक गुरु ही अपने शिष्य का भला बुरा जानता है और शिष्य को बुरे मार्ग पर जाने से रोकता है और अच्छे मार्ग, अच्छे संस्कारों से जोड़ता है। हम करोड़ों शास्त्र पढ़कर भी ज्ञानवान नहीं बन सकते, बहुत ज्यादा बोलकर जीवन में आगे नहीं बढ़ सकते। गुरु हमारे जीवन में एक सेतु है जिसके सहारे हम अपनी नैय्या को पार लगा सकते हैं, जीवन पथ पर आगे बढ़ सकते हैं। संस्कृत में बड़े ही सुंदर शब्दों में यह कहा गया है कि ‘किमत्र बहुनोक्तेन शास्त्रकोटि शतेन च । दुर्लभा चित्त विश्रान्तिः विना गुरुकृपां परम्’। संस्कृत में लिखी गई इन पंक्तियों का भावार्थ यह है कि बहुत ज्यादा बोलने से क्या? करोड़ों शास्त्रो को पढने से क्या? चित की शांति ही परम शांति है, और यह सब गुरु के बिना मिलना मुश्किल होता है। वास्तव में एक शिक्षक सदैव अपने शिष्यों के हित व कल्याण की बात करते हैं। वे अपने शिष्यों को सदैव आगे बढ़ा हुआ देखना चाहते हैं। वे हमें तत्वबोध करवाते हैं, जीवन की सच्चाइयों से रूबरू करवाते हैं। तभी तो कहा गया है कि हे गुरुदेव, आप मेरे माता-पिता के समान हैं, आप मेरे भाई और साथी हैं, आप ही मेरा ज्ञान और मेरा धन हैं। हे प्रभु तू ही सब कुछ है। यानी‘ त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव।’ आज संस्कृत का यह चिर-परिचित श्लोक इसीलिए सभी स्कूलों, प्रार्थना स्थलों, मंदिरों में वाचन किया जाता है, क्यों कि गुरु या शिक्षक की महिमा अपरंपार है और गुरु ही देव समान है, हमारा भाग्य विधाता है। वास्तव में एक गुरु ही होता है जो हमें प्रेरित करता है, प्रोत्साहित करता है, विपरीत परिस्थितियों से लड़ना सिखाता है, हमारे में साहस को भरता है, हमें हौंसला देता है। वह जो प्रेरित करता है, सूचित करता है, सच बताता है, मार्गदर्शन करता है, सिखाता है और ज्ञान देता हैरू ये सभी एक ही गुरु हैं। एक शिक्षक ज्ञान, योग्यता, शिष्टता, सहानुभूति, अनुनय, विवेक और प्रसन्नता जैसे गुणों से युक्त होता है, तभी संस्कृत में कहा गया है-विद्वत्त्वं दक्षता शीलं सङ्कान्तिरनुशीलनम् ।शिक्षकस्य गुणाः सप्त सचेतस्त्वं प्रसन्नता। शिक्षक हमें पढ़ाता है, हमारा मार्गदर्शन करता है, हमें जीवन बोध कराता है, हमें जीवन के उद्देश्य बताता है, सच तो यह है कि शिक्षक केवल अपने विद्यार्थियों को हर तरह से खुश और सफल देखना चाहते हैं। एक अच्छा शिक्षक कभी अपना धैर्य नहीं खोता और हर विद्यार्थी के अनुसार पढ़ाता है। वह अपने शिष्यों की समस्याओं, परेशानियों को बखूबी समझता है। एक विद्यार्थी के जीवन में शिक्षक एक ऐसा महत्वपूर्ण इंसान होता है जो अपने ज्ञान, धैर्य, प्यार और देख-भाल से उसके पूरे जीवन को एक मजबूत आकार देता है। एक कुंभकार की भांति वह अपने शिष्यों को मनचाहे आकार में ढ़ालने की क्षमता रखता है। वह अपने शिष्यों को परिष्कृत करता है, मांजता है। एक शिक्षक किसी के जीवन को बनाने में निस्वार्थ भाव से अपनी सेवा देते हैं। उनके समर्पित कार्य की तुलना किसी अन्य कार्य से नहीं की जा सकती।एक शिक्षक ईश्वर की तरह है क्योंकि ईश्वर पूरे ब्रह्माण्ड का निर्माता होता है जबकि एक शिक्षक को एक अच्छे राष्ट्र का निर्माता माना जाता है। एक अच्छा शिक्षक अपने विद्यार्थियों का अच्छा दोस्त भी होता है जो उन्हें सही रास्ता प्राप्त करने में मदद करता है। एक अच्छा शिक्षक वो होता है जो अपने पूरे जीवन में विद्यार्थियों को केवल देता है लेकिन कुछ भी लेता नहीं है बल्कि वो अपने विद्यार्थियों की सफलता से बहुत खुश हो जाता है। विद्यार्थियों की सफलता ही एक शिक्षक की गुरू दक्षिणा है, उपहार है। एक बेहतरीन शिक्षक वो होता है जो अपने राष्ट्र के लिये एक बेहतरीन भविष्य की पीढ़ी उपलब्ध कराता है। ये शिक्षक ही होते हैं जो अपने ज्ञान की ज्योति से हमें प्रकाशित करते हैं और हमारा मार्गदर्शन करते हैं। किसी भी समाज को विकसित करने के लिये, यह महत्वपूर्ण है कि वहां के लोग शिक्षित हों और एक शिक्षक ही ऐसे समाज,देश का निर्माण कर सकता है अर्थात शिक्षक को हम किसी देश के प्रगति का सूचकमान सकते हैं। कबीर दास जी ने शिक्षक के बारे में क्या खूब कहा है -“गुरु कुम्हार शिष्य कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट, अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।” यानी कि इन पंक्तियों में कबीर दास जी कहते है कि शिक्षक एक कुम्हार की तरह है और छात्र पानी के घड़े की तरह जो उनके द्वारा बनाया जाता है और इसके निर्माण के दौरान वह बाहर से घड़े पर चोट करता है और इसके साथ ही सहारा देने के लिए अपना एक हाथ अंदर भी रखता है। अतः आइए हम इस शिक्षक दिवस हमारे शिक्षकों को नमन करें, उनसे आशीर्वाद लें और अपने जीवन को सफल बनायें। आप सभी को शिक्षक दिवस की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं। जय जय।
-लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व युवा साहित्यकार हैं