एडवोकेट एमएल शर्मा.
इसे सिस्टम की नाकामी कहें या चांदी कूटने की कवायद। ‘नीट’ परीक्षा ‘क्लीन’ नहीं रही। नीट परीक्षा को लेकर उपजे चौतरफा विवाद में परिणाम की साख पर आंच आ गई है। परीक्षा में 67 छात्रों के प्राप्तांक ‘बट्टम बट्टा’। इतिहास में पहली दफा। चौंकाने वाली स्थिति। इतना ही नहीं, डॉक्टरी की परीक्षा में ग्रेस मार्क्स। एनटीए से ना निगलते बन रहा है और ना ही उगलते। बड़ा सवाल है कि इस गड़बड़ी का ‘मुन्ना भाई’ आखिर कौन है?
प्रभावित विद्यार्थी परीक्षा की पवित्रता पर सवाल उठा रहे हैं। एनटीए भी कटघरें में आ गया है। हैरानी की बात है कि राजस्थान में पेपर लीक के मसले पर मुखर होने वाली बीजेपी ने चुप्पी साध ली। राजनेता अपने ‘कमाऊ पूतों’ को पाक साफ करने की जद्दोजहद में जुट गए। आखिरकार, विद्यार्थियों ने सब जगह गुहार लगाने के बाद कोई हल निकलता ना देख ‘माननीय मी लार्ड’ का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर ग्रेस मार्क्स पाने वाले 1563 छात्रों की परीक्षा दोबारा कराने का आदेश दिया। एनटीए ने 23 जून को परीक्षा व 30 जून को परिणाम की तिथि घोषित कर खुद को दूध का धुला साबित करना चाहा है। हालांकि, आंदोलित विद्यार्थी इसे नाकाफी बता रहे है। बेशक, इसमें दो राय नहीं है कि नीट का सर्किट फ्यूज हो चुका है। पहले तो स्टूडेंटस की गुहार सुनी ही नहीं गई। पारदर्शी परीक्षा का वादा चुनावी जुमला बनकर रह गया। चंद चहेतों को लाभ पहुंचाने की जुगत में हजारों मेधावी प्रतिभाओं के भविष्य से ‘खेला’ हो गया है।
उधर, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सीबीआई जांच की मांग कर पार्टी का छात्र हित दर्शा दिया है। हैरानी है कि भाजपा आईटी सेल मौनव्रत पर है। साख पर सवाल उठना लाजिमी है। आगे क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है, पर चिकित्सा जैसे सेवा कार्य में गड़बड़झाला कतई अनुचित है। हमारे समाज में चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया गया है। वही चिकित्सक छल कपट से डिग्री ले तो उपचार के तौर तरीकों का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। उत्तरदायी संस्थाओं ने परीक्षा को अठखेलियाँ बना दिया। निष्पक्ष परीक्षा के दावे ध्वस्त हो गए हैं।
अब बताइए, मर्ज से पीड़ित मरीज को दुरुस्त करने की अल्पनाएं कहां सजेगी।
हे राम!