




डॉ. एमपी शर्मा.
इन चार शब्दों को हम अक्सर सुनते हैं, राष्ट्रवाद, राष्ट्रधर्म, देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम। सुनने में ये एक जैसे लगते हैं, लेकिन इनका मतलब, भावना और उद्देश्य थोड़ा-थोड़ा अलग है। चलिए, एक-एक करके इन्हें आसान भाषा में समझते हैं। राष्ट्रवाद का मतलब होता है, ‘मेरा देश सबसे पहले और सबसे ऊपर है’। इस भावना में इंसान अपने देश की एकता, अखंडता और स्वाभिमान को सबसे बड़ा मानता है। चाहे कोई भी धर्म हो, भाषा हो या जाति, राष्ट्र सबसे बड़ा होता है।
इसकी मुख्य बातें हैं, देश की एकता और संस्कृति को सबसे ज्यादा महत्व देना। यह विश्वास कि ‘हमारा देश सबसे श्रेष्ठ है’। विदेश नीति में भी अपने देश के हित को पहले रखना। राष्ट्रवादी देश की सीमाओं, संप्रभुता और सम्मान की रक्षा के लिए हमेशा जागरूक रहते हैं। छोटे-छोटे मतभेद भुलाकर देश की भलाई के लिए सोचते हैं। ज़रूरत पड़े तो देश के लिए कुछ त्यागने से भी नहीं हिचकिचाते है। ध्यान रहे, कभी-कभी ‘अंधराष्ट्रवाद’ की भावना आ जाती है, जिसमें लोग दूसरों देशों या विचारों से नफरत करने लगते हैं। इससे बचना जरूरी है। प्यार अपने देश से करो, नफरत दूसरों से नहीं।
जैसे हर इंसान का अपने परिवार के प्रति एक धर्म होता है, वैसे ही देश के लिए भी कुछ जिम्मेदारियाँ होती हैं। राष्ट्रधर्म का मतलब है, एक नागरिक का अपने देश के प्रति फर्ज निभाना। इसकी मुख्य बातें हैं, देश के कानून का पालन करना। ईमानदारी से टैक्स देना। वोट देना यानी लोकतंत्र को मजबूत करना। ज़रूरत पड़ने पर समाज और देश के लिए काम करना।
अब सवाल है, कैसे निभाएं राष्ट्रधर्म ? यह बेहद आसान है। मसलन, ट्रैफिक नियम से लेकर सरकारी कानून तक, सबका पालन करें। भ्रष्टाचार न करें और न सहें। सफाई, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कामों में भागीदारी करें।

दूसरा भाव है देशभक्ति का। देशभक्ति एक भाव है, जो दिल से आता है। इसमें इंसान अपने देश से प्यार करता है, उसके लिए गर्व महसूस करता है और उसकी रक्षा और तरक्की के लिए हर समय तैयार रहता है। इसकी मुख्य बातें हैं, देश पर गर्व करना। शहीदों और सैनिकों का सम्मान। भारतीयता को अपनाना और फैलाना। देशभक्ति निभाने के लिए अपने काम को ईमानदारी और लगन से करें, चाहे आप शिक्षक हों, डॉक्टर हों या किसान। स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियाँ जानें और दूसरों को बताएं। देश के प्रतीकों जैसे झंडा, संविधान का आदर करें।
राष्ट्रप्रेम मतलब देश से आत्मा का जुड़ाव। यह भावना बहुत गहरी और सच्ची होती है। इसमें इंसान सिर्फ देश से नहीं, बल्कि उसकी मिट्टी, भाषा, संस्कृति, परंपराओं और लोगों से भी प्यार करता है। इसकी मुख्य बातें हैं, देश के हर कोने, हर बोली, हर संस्कृति से स्नेह। अगर देश में कुछ गलत हो रहा है, तो उसे सुधारने की कोशिश करना। दूसरे देशों का सम्मान करना, लेकिन अपने देश को दिल से चाहना। राष्ट्रप्रेम निभाने के लिए अपने आसपास की भाषा, संस्कृति और विविधता को अपनाएं। बच्चों और युवाओं में देश के प्रति प्यार जगाएं। पेड़ लगाना, पानी बचाना, गंदगी कम करना, ये सब भी राष्ट्रप्रेम के ही रूप हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल, इन चारों में सबसे अच्छा क्या है? सच कहें तो, इन चारों भावनाओं का संतुलन ही सबसे अच्छा है। हर भावना की अपनी जगह और महत्त्व है। राष्ट्रधर्म बताता है कि हमें क्या करना चाहिए। राष्ट्रप्रेम बताता है कि हमें क्यों करना चाहिए। देशभक्ति हमारे कामों में जोश और भावना भरती है। राष्ट्रवाद हमें दिशा और उद्देश्य देता है। इसलिए, सिर्फ एक भावना काफी नहीं होती। सच्चा नागरिक वही है, जिसमें ये चारों भावनाएं संतुलित रूप से हों।
अंत में एक सूत्र याद रखिए, राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति, राष्ट्रधर्म और संयमित राष्ट्रवाद के मेल से ही सच्चा नागरिक तैयार होता है।
-लेखक सामाजिक चिंतक और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं



