ब्रिक्स में भारत की भूमिका: वैश्विक शक्ति संतुलन में एक नया अध्याय

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, जहां अमेरिका संरक्षणवाद की नीतियों की ओर लौट रहा है, रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, और चीन की विदेश नीति आक्रामक बनी हुई है, भारत की विदेश नीति को नए सिरे से गढ़ने की आवश्यकता है। ऐसे में, ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है, जो बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में उसकी भूमिका को सशक्त करता है। ब्रिक्स-ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका, एक ऐसा मंच है, जिसने वैश्विक शक्ति संतुलन में विकासशील देशों की भूमिका को सशक्त किया है। भारत इस समूह का एक महत्वपूर्ण सदस्य है और इसकी विदेश नीति में ब्रिक्स की भूमिका लगातार बढ़ रही है। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में जब डोनाल्ड ट्रम्प पुनः अमेरिकी राष्ट्रपति बन चुके हैं, रूस-यूक्रेन युद्ध जारी है, और चीन की विदेश नीति आक्रामक बनी हुई है, ऐसे में भारत की विदेश नीति को रणनीतिक रूप से नए सिरे से गढ़ने की आवश्यकता है।
भारत की विदेश नीति का आधार अब केवल एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था नहीं रहा, बल्कि बहुध्रुवीय व्यवस्था को प्राथमिकता दी जा रही है। इसी क्रम में ब्रिक्स का महत्व और अधिक बढ़ गया है। यह संगठन वैश्विक जनसंख्या का लगभग 42 फीसद और वैश्विक जीडीपी का लगभग 31ः प्रतिनिधित्व करता है। भारत की अर्थव्यवस्था 3.9 ट्रिलियन डॉलर को पार कर चुकी है और वह अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर की ओर बढ़ रहा है, जिससे ब्रिक्स में उसकी स्थिति और मजबूत हो रही है।
ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका की नीतियाँ फिर से संरक्षणवाद और ‘अमेरिका फर्स्ट’ की ओर लौटती दिख रही हैं। उनके पहले कार्यकाल में भी अमेरिका ने पेरिस जलवायु समझौता, ईरान न्यूक्लियर डील और डब्ल्यूएचओ जैसे संस्थानों से दूरी बना ली थी। अब जबकि वे दोबारा सत्ता में लौटे हैं, बहुपक्षीय संगठनों के प्रति अमेरिकी उदासीनता बढ़ने की संभावना है, जिससे भारत जैसे देशों को वैश्विक नेतृत्व में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा।


भारत-अमेरिका व्यापार 2020 तक 88.8 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका था, और ट्रम्प के पहले कार्यकाल में रक्षा सहयोग भी काफी बढ़ा। किंतु ट्रम्प की अप्रवासन नीतियाँ और चीन के खिलाफ तीव्र रुख ने वैश्विक राजनीति में ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है। इस स्थिति में भारत को एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में देखे जाने का लाभ मिल सकता है, जो अमेरिका, रूस और चीन के बीच संतुलन बनाकर अपने हितों की रक्षा कर सके।
रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान भारत ने रूस से अपने संबंधों को बनाए रखा। भारत ने 2022-23 में रूस से लगभग 40 अरब डॉलर का कच्चा तेल आयात किया, जिससे स्पष्ट होता है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा के लिए व्यवहारिक नीति अपना रहा है। यही व्यवहारिकता ब्रिक्स में भारत की भूमिका को भी परिभाषित करती है।
ब्रिक्स द्वारा स्थापित न्यू डेवलपमेंट बैंक ने अब तक 30 अरब डॉलर से अधिक की परियोजनाओं को वित्तपोषित किया है। यह बैंक भारत जैसे देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिससे पश्चिमी संस्थाओं पर निर्भरता कम होती है। इसके अलावा, ब्रिक्स की डिजिटल करेंसी पर हो रही चर्चाएँ भी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने का प्रयास हैं, जिसमें भारत की भागीदारी उसकी रणनीतिक दृष्टि को दर्शाती है।


चीन के साथ सीमा विवाद के बावजूद भारत ब्रिक्स में बना हुआ है क्योंकि यह मंच विकासशील देशों की आवाज़ को संयुक्त राष्ट्र, डब्ल्यूटीओ और आईएमएफ जैसी संस्थाओं में सुधार की दिशा में आगे बढ़ाने का माध्यम बन सकता है। भारत ब्रिक्स के ज़रिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की माँग को भी समर्थन दिलाने की कोशिश कर रहा है।
वैश्विक महंगाई, जलवायु संकट और ऊर्जा अस्थिरता जैसे मुद्दों के बीच भारत की विदेश नीति को बहुपक्षीयता, संतुलन और अवसर की दिशा में आगे बढ़ाना अनिवार्य हो गया है। ब्रिक्स भारत को यह अवसर देता है कि वह वैश्विक मंच पर विकासशील देशों का नेतृत्व करे, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दे और अपनी रणनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करे। ट्रम्प की वापसी के साथ वैश्विक राजनीति में जो नया अध्याय शुरू हुआ है, उसमें भारत को विवेकपूर्ण और सक्रिय विदेश नीति अपनाते हुए ब्रिक्स जैसे मंचों के माध्यम से विश्व व्यवस्था में अपनी भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाना होगा।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

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