भारत-पाकिस्तान संघर्षः खुद को दोहरा रहा है इतिहास ?

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डॉ. एन.के. सोमानी.
पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ी जंग वास्तविक युद्ध के मुहाने पर पहंुच चुकी थी। जिस तरह से दोनों देश एक-दूसरे पर पलटवार कर रहे थे उससे साफ हो गया था कि दोनों के बीच शुरू हुई जंग वास्तविक युद्ध में बदल सकती है। लेकिन शाम होते-होते भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर और युद्धविराम समझौते की खबर आई उससे हर कोई भौंचक्का रह गया। अप्रत्याशित सीजफायर की खबर पर लोग विश्वास करने को तैयार नहीं थे। हालांकि, समझौते के तीन घंटे बाद ही पाकिस्तान की ओर से सीजफयार के उल्लंधन की घटनाएं सामने आने लगी। श्रीनगर में ड्रोन अटेक, अमृतसर में रेड अलर्ट और सीमावर्ती जिला श्रीगंगानगर में ब्लैक आउट का ऐलान किया गया। सवाल यह है कि जंग में बहुत बेहतर स्थिति में होने के बावजूद भारत युद्धविराम समझौते के लिए राजी क्यांे हो गया। सैन्य क्षमता, वैश्विक रिस्पॉस, ग्राउंट पॉजिशन सब कुछ भारत के पक्ष में था फिर भी भारत बिना किसी शर्त के सीजफायर के लिए तैयार हो गया। दिल्ली पर मिसाइल दागने का झूठा दुस्साहस पाकिस्तान ने किया। इसके बावजूद पाकिस्तान के साथ युद्ध विराम समझौते के लिए राजी होना क्या भारत की सामरिक कमजोरी का प्रतीक नहीं होगा। किसी भी तरह के कोई स्थायी सामरिक अथवा रणनीतिक लाभ हासिल किए बिना सीजफायर पर सहमत हो जाना कहीं भारत की कूटनीतिक चूक तो नहीं है।


कहा जा रहा है कि अमेरिका की मध्यस्था (मैं तो हस्तक्षेप ही कहूंगा) के बाद भारत युद्धविराम के लिए राजी हुआ। तो क्या भारत ने पाकिस्तान के साथ विवाद की सूरत में किसी तीसरे पक्ष के दखल को स्वीकार कर लिया है। क्या भारत की विदेश नीति में यह एक बड़ा बदलाव है। दूसरा, क्या भारत के इस कदम को 1972 के शिमला समझौते का उल्लंघन नहीं कहा जाएगा। तृतीय, अगर कुछ देर के लिए यह स्वीकार भी कर लिया जाए कि भारत ने अमेरिकी हस्तक्षेप के चलते इस संघर्ष विराम को स्वीकार किया है तो क्या अमेरिका ने भारत को इस बात की गांरटी दी है कि पाकिस्तान भविष्य में अपनी सरजमी का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवाद के लिए नहीं करेगा।
दूसरी ओर भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने जिस आनन-फानन में युद्ध विराम की समझौते की मीडिया के सामने पुष्टि की उस पर भी सवाल खड़े किए जा सकते है। मिसी्र ने अपने दो लाइन के वक्तव्य में केवल इतना ही कहा कि पाकिस्तान के सैन्य अभियान महानिदेशक (डीजीएमओ) ने शनिवार दोपहर 3.30 बजे भारत के डीजीएमओ को फोन किया। उनके बीच यह सहमति बनी कि दोनों पक्ष शनिवार शाम 5 बजे से जमीन, हवा और समुद्र में सभी तरह की गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई बंद कर देंगे। मिस्री ने सारा वक्तव्य अंग्रेजी में दिया। वक्तव्य के बाद वे पत्रकारों का सवाल लिए बिना चले गए। यहां तक की उन्होंने अपने वक्तव्य का हिन्दी तरजुमा भी नहीं किया। जबकि सामान्यतौर पर अंग्रेजी में दी गई किसी भी जानकारी को बाद में हिन्दी में अनुदित किए जाने की पंरपरा है। सीजफायर के आश्चर्य की एक बड़ी वजह यह भी है कि शनिवार सुबह ही विदेश सचिव ने प्रैस ब्रीफिंग में सूचना दी थी कि पाकिस्तान अपने सैनिकों को सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात कर रहा है और भारतीय सशस्त्र बल अलर्ट पर है। विदेश सचिव ने जो जानकारी दी उसका लब्बोलुआब यही था कि दोनों देश पूर्णकालिक युद्ध के मुहाने पर पहुंच चुके हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि भारत युद्ध विराम के लिए राजी हो गया।


क्या इतिहास फिर अपने आपको दोहरा रहा है। 1972 के युद्ध में भी हमने यही किया। हमारे बहादुर सिपाहियों ने युद्ध के मैदान में खुन बहाकर जो कुछ प्राप्त किया उसे हमने समझौते की टेबल पर लौटा दिया था। अब पांच दशक के बाद हम फिर वही गलती दोहरा रहे है।
हालांकि, भारत की सैन्य कार्रवाई सीमित और सुनियोजित थी जिसका उदेश्य आतंकी संगठनों के इन्फ्रास्ट्रैक्चर को नष्ट करना था। पाकिस्तान के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक के बाद भारत हर बार यही कहता रहा है कि उसका हमला सिर्फ आतंकी ठिकानों पर है। उसका मकसद सैन्य प्रतिष्ठान (ऑर्मड फोर्सेज) या सीविल इंस्टिटूशंस को या सरकार के प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना या उकसाना नहीं है। लेकिन पाकिस्तान ने इसे अपनी सीमा क्षेत्र का उल्लंघन माना और भारत के सरहदी क्षेत्रों में रिहाइशी इलाकों पर गोलीबारी की। इसके बाद भारत ने पलटवार किया जिसमें वह पूरी तरह से सफल भी हुआ।


दुनिया पहले ही रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-फिलिस्तीन संधर्ष में उलझी हुई है। भारत और पाकिस्तान दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश है। ऐसे में दोनों देशों के बीच की जंग अगर पूर्ण युद्ध में बदलती अथवा दक्षिण एशिया में कोई बड़ी और लंबी लड़ाई शुरू होती है, तो यह न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक अस्थिरता का बड़ा कारण बन सकता था। हालांकि, सीजफायर से पहले खबरें आई थी कि भारत आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीति में बड़ा परिवर्तन कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर 0.2 के दौरान भारत ने आतंकवाद के खिलाफ नीति में साफ कर दिया कि भविष्य में भारत पर किया गया कोई भी आतंकी हमला ’एक्ट ऑफ वॉर’ माना जाएगा। अब पाकिस्तान इस बात को बहुत गहरे तक अपने मन में बैठा ले कि सीजफायर की वजह से एक बारगी तो वो भारत के खौफ से बच गया है लेकिन भविष्य में वह किसी तरह का दुस्साहस करता है तो भारत उसके विरूद्ध सीधे सैनिक कार्रवाई कर सकता है। अब तक भारत आतंकवाद को लेकर सावधानी, बातचीत और संयम के रास्ते पर चलता रहा है। लेकिन अब देश के भीतर होने वाली किसी भी आतंकवादी घटना में पुलिस और जांच एजेंसियों की औपचारिकता का इंतजार किए बिना सीधे कार्रवाई कर सकेगा। कुल मिलाकर कंहे तो अब आतंक की हर घटना को युद्ध समझा जाऐगा और भारत सॉफ्ट स्टेट की छवि से बाहर निकलकर ’रिएक्ट’ करेगा।


हालांकि, भारत के अप्रत्याशित संघर्ष विराम पर जो प्रश्न उठाए जा रहे हैं उनको उठाया जाना अनुचित नहीं है लेकिन सैन्य झड़पों और छिटपुट घटनाओं को बड़े संघर्षाे में बदलने से रोकने में सीजफायर कारगर कदम भी हो सकता है। इतिहास में ऐसे उदाहरण भी कम नहीं है जहां संघर्ष में शामिल पक्षों के बीच सीजफायर ने स्थायी शांति बहाली का रास्ता खोलने का काम किया है। संघर्ष विराम की शर्ते और उसका रूप क्या होगा यह दोनों देशों के बीच होने वाली वार्ता के बाद निकल कर सामने आ जाएगा लेकिन पहलगाम के गुनाहगारों का क्या होगा। क्या वे यूं ही स्वतंत्र घुमते रहेंगे या उनकी पहचान करने और पकड़ने की कौशिश जारी रहेगी। यह लाख टके का सवाल है जिसका उत्तर आना अभी बाकी है।
-लेखक विदेश मामलों के जानकार और स्वतंत्र स्तंभकार हैं

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