


गोपाल झा.
राजनीति के डिजिटल युग में अब संगठनात्मक सक्रियता भी तकनीक से तय होगी। हाल ही में संपन्न कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद पार्टी ने जो बड़े संगठनात्मक बदलावों की बात कही थी, वह अब महज भाषणों तक सीमित नहीं रही। राजस्थान कांग्रेस ने पहला ठोस कदम उठाते हुए पार्टी की भीतरी मशीनरी में क्रांतिकारी बदलाव की पटकथा लिख दी है, और यह बदलाव अब सिर्फ फाइलों और कागजों में नहीं, बल्कि ‘एक क्लिक’ की दूरी पर है। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की अगुवाई में प्रदेश कांग्रेस ने 58 हजार से ज्यादा मंडल, ब्लॉक, जिला और बूथ स्तरीय पदाधिकारियों का डिजिटल डाटा तैयार कर लिया है। अब यह महज नामों की लिस्ट नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा डाटा है जो हर नेता की गतिविधियों की एक्स-रे रिपोर्ट है। पार्टी के हर कार्यकर्ता की बैठक उपस्थिति, संगठनात्मक गतिविधियों में भागीदारी, और बूथ लेवल पर काम का पूरा रिकॉर्ड डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मौजूद है। इससे यह तय करना बेहद आसान हो गया है कि कौन नेता ‘फील्ड’ में है और कौन सिर्फ ‘पद’ पर है।
इस पूरे बदलाव का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि अब वर्षों से कुर्सी से चिपके बैठे नेताओं की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। ऐसे नेता जो केवल नाम के पदाधिकारी हैं, अब ‘डेटा’ की निगाहों से नहीं बच पाएंगे। यह डेटा बताएगा कि किसने कितनी बार बैठक अटेंड की, कितनी बार ट्रेनिंग ली, कितने नए कार्यकर्ता जोड़े, और अगर जवाब निराशाजनक है, तो तैयारी कर लीजिए, कुर्सी जाने की पूरी संभावना है।

परफॉर्मेंस ही प्रमोशन का आधार
राजस्थान कांग्रेस के इस मॉडल में परफॉर्मेंस ही प्रमोशन का नया मंत्र है। यानी अब सिफारिश, वरिष्ठता या गुटबाजी नहीं चलेगी। जो सक्रिय है, वही टिकेगा। और जो निष्क्रिय है, वह सिर्फ इतिहास का हिस्सा बन जाएगा। डोटासरा ने खुद इस परिवर्तन को कांग्रेस की ‘रीब्रांडिंग’ करार दिया है।
संगठनात्मक ब्लूप्रिंट अब बस एक क्लिक दूर
इस डिजिटल व्यवस्था से कांग्रेस अब अपने पूरे प्रदेश संगठन का लाइव नक्शा देख सकती है। कौन-से ब्लॉक में काम तेज है, कहां ठहराव है, किन क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ानी है, ये सब अब एक क्लिक की दूरी पर है। साथ ही, प्रशिक्षण शिविरों, अभियानों, और बैठकों में कार्यकर्ताओं की भागीदारी की भी डिजिटल ट्रैकिंग होगी।

दिल्ली से सीधी निगरानी
सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि यह पूरा डाटा अब सीधे एआईसीसी और प्रदेश नेतृत्व की निगरानी में रहेगा। इसका मतलब साफ है, अब दिल्ली से लेकर जिला तक हर स्तर पर निगरानी का सिस्टम तैयार है। पार्टी आलाकमान अब सिर्फ रिपोर्ट्स पर नहीं, ठोस डाटा के आधार पर फैसले ले सकेगा।
व्यापक फेरबदल की आहट
सूत्रों की मानें तो इस डाटा के आधार पर जल्द ही राजस्थान में संगठनात्मक फेरबदल की बड़ी कार्रवाई हो सकती है। वर्षों से जमे नेताओं को हटाकर युवाओं, महिलाओं और जमीनी कार्यकर्ताओं को आगे लाने की रणनीति तैयार की जा रही है। राष्ट्रीय अधिवेशन के बाद संगठन निर्माण को लेकर जो विचार सामने आए थे, राजस्थान की यह पहल उसी सोच की पहली व्यावहारिक झलक है। अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो यह मॉडल अन्य राज्यों में भी लागू किया जा सकता है, और तब कांग्रेस का चेहरा भी बदलेगा और शैली भी।
राजनीतिक संदेश साफ है, अब संगठन की कुर्सी ‘आरामगाह’ नहीं, बल्कि ‘कार्यस्थल’ होगी। राजस्थान से शुरू हुआ यह डिजिटल आंदोलन कांग्रेस को नई दिशा देने की ताकत रखता है। देखना यह है कि क्या अन्य राज्यों की कांग्रेस इकाइयां भी इस डिजिटल बदलाव की लहर में शामिल होती हैं या फिर पुराने ढर्रे पर ही चलती रहती हैं।



