‘नेतृत्व के चंगुल’ से मुक्ति की तैयारी में कांग्रेस!

गोपाल झा.
राजस्थान कांग्रेस इन दिनों एक दिलचस्प राजनीतिक प्रयोग के दौर से गुजर रही है। हाल ही में दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा प्रदेश के जिलाध्यक्षों से संवाद के बाद अब अगला कदम और भी व्यापक है। खड़गे जल्द ही प्रदेश के 2200 मंडल अध्यक्षों से सीधा संवाद करेंगे। यह संवाद पार्टी संगठन में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण और विचारधारा के पुनर्प्रतिष्ठापन का हिस्सा माना जा रहा है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो खड़गे का यह संभावित दौरा केवल संवाद भर नहीं, बल्कि एक स्पष्ट संदेश हैख् अब कांग्रेस केवल ‘चेहरों’ पर नहीं, ‘संरचना’ पर दांव लगाएगी। खासकर राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच चल रही अंदरूनी खींचतान ने पार्टी की संगठनात्मक नींव को हिला दिया था। ऐसे में अब आलाकमान का फोकस नेताओं से हटकर कार्यकर्ताओं की ओर होता दिख रहा है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का यह बयान कि ‘खड़गे का दौरा कभी भी संभव है’ और ‘संविधान बचाओ अभियान’ को प्रभावी रूप से लागू करने की योजना, से यह पता चलता है कि कांग्रेस अब केवल सत्ता की राजनीति नहीं, विचार और संरचना की राजनीति करना चाहती है। डोटासरा ने जिन आंकड़ों का जिक्र किया, 2200 मंडल, 400 ब्लॉक और 50 जिलाध्यक्ष, वह न केवल संगठन की गहराई को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि कांग्रेस अब ‘केंद्र से परिधि’ की बजाय ‘परिधि से केंद्र’ की रणनीति पर चलने को तैयार है।
गौरतलब है कि 2022 में उदयपुर नवसंकल्प शिविर के बाद कांग्रेस ने देश में पहली बार मंडल अध्यक्षों की अवधारणा को लागू किया। प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 11 मंडल अध्यक्ष नियुक्त किए गए। यह प्रयोग सबसे पहले राजस्थान में लागू हुआ, जिससे प्रदेश एक राजनीतिक प्रयोगशाला बन गया है। अब जब खड़गे इन 2200 मंडल अध्यक्षों से संवाद करेंगे, तो यह न केवल उनके लिए मानसिक ऊर्जा का काम करेगा, बल्कि कांग्रेस की विचारधारा को जमीनी स्तर पर पुनर्प्रतिष्ठित करने का अवसर भी देगा।
राजस्थान कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती अब भी आंतरिक गुटबाज़ी है। गहलोत-पायलट खेमों के बीच वर्षों से चल रही तनातनी ने न केवल पार्टी की साख को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि कार्यकर्ताओं में भ्रम की स्थिति भी पैदा की है। इस पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा जिलाध्यक्षों और अब मंडल अध्यक्षों से सीधा संवाद इस संदेश के रूप में देखा जा सकता है कि पार्टी अब गुटों से ऊपर उठकर संगठन के प्रति निष्ठावान कार्यकर्ताओं को महत्व देगी।
यह स्पष्ट है कि कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव की तैयारी नीचे से ऊपर के मॉडल पर कर रही है। प्रशिक्षण शिविरों की घोषणा, जैसे कि उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़ आदि में और विचारधारा, संस्कृति व नीति पर आधारित प्रशिक्षण इस बात का संकेत है कि कांग्रेस अब अपने कार्यकर्ताओं को केवल प्रचारक नहीं, विचारधारा का वाहक बनाना चाहती है।
यह रणनीति यदि सफल होती है, तो कांग्रेस को वह संघ जैसा कैडरबेस मिल सकता है, जिसकी उसे लंबे समय से तलाश रही है। हालांकि यह कहना जल्दबाज़ी होगा कि क्या इससे पार्टी गहलोत-पायलट जैसे मजबूत चेहरों की छाया से पूरी तरह बाहर निकल पाएगी, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि कांग्रेस अब ‘संगठन आधारित सत्ता’ की ओर कदम बढ़ा रही है।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं

image description

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *