राजस्थान का हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय। दीप कॉलोनी में स्थित है निःशुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण एवं अनुसंधान केंद्र। राहुल गुप्ता मैमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट की ओर से संचालित केंद्र पर आप अकसर हाथों के बल रेंगकर दिव्यांगों को प्रवेश करते देख सकते हैं लेकिन चंद घंटों बाद जब वे निकलते हैं तो अपने पैरों पर चलते हुए। यह सब देखना किसी चमत्कार से कम नहीं। कृत्रिम अंग लगते ही दिव्यांग आत्मविश्वास से लबरेज नजर आते हैं। उनकी आंखों में गजब की चमक दिखाई देती है। यही रमण झूंथरा की कमाई है, संतोष है, सुख है।
भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
बिजनेस और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद मानवता के पुनीत कार्य के लिए तन, मन और धन अर्पित करने का जज्बा बहुत कम लोगों में देखा जाता है। यकीनन, रमण अग्रवाल हनुमानगढ़ ही नहीं, देश के गौरव हैं, अनमोल रत्न हैं। करीब 16 साल पहले पहला कैम्प लगाया। पीड़ितों की संख्या देख अचंभित हुए। फिर तो हर साल कैम्प जरूरी हो गया। बात यहीं रूकी। संस्था ने करीब 12 राज्यों और लेह-लद्दाख से लेकर सभी अंतरराष्टीय सीमाओं पर जाकर सेना के साथ मिलकर कैम्प लगाया। सीमावर्ती क्षेत्रों में बारुदी सुरंगों की वजह से अंग-भंग के शिकार लोगों की तादाद अधिक होती है। परिणामस्वरूप हजारों पीड़ितों को कृत्रिम अंग लगाए जा सके। जिद और जुनून का परिणाम है कि हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित दीप कालोनी में रमण अग्रवाल ने 9 अगस्त 2013 को निःशुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण एवं अनुसंधान केंद्र की स्थापना की। यहां पर 24 घंटे सेवा की निःशुल्क सुविधा दी जा रही है। परिणामस्वरूप हनुमानगढ़ से 200 किमी के आसपास के क्षेत्रों को बैशाखीमुक्त बनाने का ख्वाब पूरा हो चुका है। कमाल की बात यह कि रमण अग्रवाल जरूरतमंदों को सिर्फ मुफ्त में कृत्रिम अंग नहीं लगवाते बल्कि खुद पूरा टाइम भी देते हैं। उच्च शिक्षित रमण झूंथरा पेशे से बिजनेसमैन हैं।
सामाजिक कार्यों में जुड़ाव
बचपन से ही समाजसेवा में रुचि रही। रमण झूंथरा अग्रवाल बताते हैं, ‘साल 2007 में राहुल गुप्ता मैमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट का गठन किया। इसी साल मारवाड़ी युवा मंच से जुड़ना हुआ। हनुमानगढ़ में सचिव के रूप में कार्य शुरू किया। पहला काम निःशुल्क अंग प्रत्यारोपण कैम्प लगाना ही था। जरूरतमंदों के चेहरे पर संतोष का भाव देख अभिभूत हुआ। इसके बाद इस सेवा को जीवन से जोड़ लिया और यह अब तक जारी है।’
हनुमानगढ़ को बनाया बैशाखीमुक्त
रमण झूंथरा ने हनुमानगढ़ जिले को बैशाखीमुक्त बनाने का ख्वाब देखा था जो पूरा हो गया। जिले में शायद ही कोई जरूरतमंद हो जिसके कृत्रिम अंग नहीं लगे हों। रमण झूंथरा ने राजस्थान और देश के सुदूर क्षेत्रों में जाकर निःशुल्क कृत्रिम अंग प्रत्यारोपित किए। खासकर भारत-पाक, चीन और बांग्लादेश सीमाओं पर जाकर। लेह लद्दाख, श्रीनगर आदि में कैम्प लगाए और करीब 3000 से अधिक कृत्रिम अंग लगाए। रमण झूंथरा कहते हैं, ‘अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे लोगों का जीवन बेहद कठिन है। बारूदी सुरंगों के फटने से वे अंग-भंग के शिकार हो जाते हैं। यही वजह है कि सुदूर क्षेत्रों में जाकर सेना के साथ हमने खूब कैम्प लगाए हैं।’
पिता की सीख और रमण का जुनून
जिंदगी के एक हादसे ने परिवार को तोड़कर रख दिया। दरअसल, रमण के छोटे भाई राहुल एक सड़क हादसे में परिवार से सदा के लिए दूर हो गए। इस सदमे को झेलना बेहद मुश्किल था। वक्त बीता। रमण झूंथरा ने भाई की स्मृति में सेवा कार्यों को हाथ में लेने का फैसला किया। राहुल गुप्ता मैमोरियल चेरिटेबल ट्रस्ट उसी का परिणाम है। पिता वेदप्रकाश झूंथरा ने सीख दी कि ऐसा सेवा कार्य हाथ में लेना जो जरूरतमंदों की जिंदगी के लिए ‘टर्निंग पॉइंट’ साबित हो। रमण में विचार आया कि क्यों न निःशक्तजनों के कृत्रिम अंग लगाने का काम हो ताकि उनकी जिंदगी आसान हो जाए। और अब तक इनके प्रयासों से करीब 41 हजार से अधिक जरूरतमंदों को कृत्रिम अंग लगाए जा चुके हैं। इससे निःशक्तजनों का जीवन आसान हो गया है। वे आत्मनिर्भर होने लगे हैं। छोटे-मोटे व्यवसाय करने लगे हैं। परिवार खुशहाल होने लगा है।
सरकार ने दिया सेवा का सम्मान
रमण झूंथरा के सेवा कार्यों को राज्य सरकार ने महसूस किया। तत्कालीन वसुंधराराजे सरकार ने उन्हें राज्य स्तरीय सम्मान से नवाजा। तत्कालीन सामाजिक अधिकारिता विभाग के मंत्री डॉ. अरुण चतुर्वेदी ने रमण झूंथरा को सम्मानित किया। जिला प्रशासन, भारतीय सेना, न्यायिक विभाग सहित अन्य सामाजिक संगठनों की ओर से रमण झूंथरा सम्मानित होते रहे हैं। रमण कहते हैं, ‘हमें किसी तरह के पुरस्कार की जरूरत नहीं। जरूरत है समाज में कोई भी निःशक्तजन बैशाखी का इस्तेमाल करते नजर न आएं। उन्हें सेंटर तक लाने में समाज सहयोग करे।’