प्रवचन या चुनावी प्रचार ?

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अजय कुमार. मो. 9335566111
बिहार में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे सियासी पारा भी चढ़ता जा रहा है। हर दल अपनी राजनीतिक रणनीति तैयार करने में जुटा है, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में सिर्फ राजनीतिक चेहरे ही नहीं, बल्कि धार्मिक गुरु भी सक्रिय नजर आ रहे हैं। हिंदू धर्मगुरु, कथावाचक और संत बिहार का दौरा कर रहे हैं, और इस दौरे को लेकर राजनीतिक हलकों में कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। बिहार हमेशा से जातीय समीकरणों पर आधारित राजनीति का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार चुनाव से पहले धार्मिक ध्रुवीकरण की बिसात बिछाई जा रही है। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का बिहार दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब बीजेपी राज्य में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की हर संभव कोशिश कर रही है। बिहार चुनाव बीजेपी के लिए एक बड़ा इम्तिहान माना जा रहा है क्योंकि अभी तक वह राज्य में अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है। हर बार उसे किसी सहयोगी दल की जरूरत पड़ी है, लेकिन इस बार बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान बिहार का दौरा कर चुके हैं, जिससे सियासी माहौल पहले ही गर्म हो चुका था और अब धार्मिक गुरुओं की एंट्री ने इसे और गरमा दिया है।


बिहार में लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी आरजेडी के प्रभाव वाले इलाके गोपालगंज में बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का पहुंचना महज संयोग नहीं कहा जा सकता। धीरेंद्र शास्त्री यहां पांच दिनों तक हनुमंत कथा कर रहे हैं, और उनकी कथाओं में हिंदुत्व का एजेंडा साफ झलक रहा है। उन्होंने कहा कि वे किसी पार्टी के लिए नहीं आए हैं बल्कि हिंदुओं को जागरूक करने के लिए यहां पहुंचे हैं। हालांकि, उनके इस बयान को राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। हिंदुत्व के नाम पर भीड़ जुटाने की उनकी कला और बीजेपी नेताओं से उनकी करीबी किसी से छिपी नहीं है। गोपालगंज, जो कि आरजेडी का गढ़ माना जाता है, वहां जाकर हिंदुत्व पर जोर देना साफ तौर पर बीजेपी की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। यह रणनीति खासतौर पर बिहार में जातीय राजनीति के मुकाबले धार्मिक ध्रुवीकरण को मजबूत करने की कोशिश लगती है। यह पहला मौका नहीं है जब धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने इस तरह के बयान दिए हैं, बल्कि वे लगातार हिंदू एकता की बात करते रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हिंदुओं को अगर छेड़ा गया तो वे चुप नहीं बैठेंगे, और यह बयान ऐसे समय में आया है जब बिहार में चुनावी बिसात बिछ रही है।


धीरेंद्र शास्त्री के बिहार दौरे के ठीक बाद आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर भी बिहार पहुंच गए। उनका भी बिहार दौरा महज आध्यात्मिक नहीं माना जा सकता, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक मायने भी तलाशे जा रहे हैं। श्री श्री रविशंकर ने पटना के गांधी मैदान में सत्संग का आयोजन किया, जिसमें हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। उन्होंने ध्यान, योग और जीवन जीने की कला पर प्रवचन दिए, लेकिन उनके दौरे की सबसे अहम बात वह 1000 साल पुराना पवित्र शिवलिंग था, जिसे वे बिहार लेकर आए थे। यह वही शिवलिंग है जिसे 1026 ईस्वी में महमूद गजनवी ने खंडित कर दिया था। उन्होंने दावा किया कि सदियों से एक अग्निहोत्री परिवार इस शिवलिंग को संभालकर रखे हुए था, और अब इसे सार्वजनिक दर्शन के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है। यह पूरा घटनाक्रम हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को जगाने और उन्हें एकजुट करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। श्री श्री रविशंकर का यह दौरा ऐसे समय में हुआ जब बीजेपी बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में जुटी है। यही कारण है कि उनके बिहार पहुंचने के तुरंत बाद डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी उनसे मिले और बिहार सरकार की ओर से हरसंभव सहयोग का आश्वासन दिया।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत भी बिहार में हैं। उनका पांच दिवसीय दौरा जारी है, और इस दौरान वे संघ के स्वयंसेवकों और बीजेपी नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं। भागवत ने अपने इस दौरे में बिहार के लोगों की तारीफ की और कहा कि वे समर्पण, कड़ी मेहनत और पुरुषार्थ के प्रतीक हैं। उन्होंने दशरथ मांझी का उदाहरण देते हुए यह संदेश देने की कोशिश की कि कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष करके सफलता पाई जा सकती है। हालांकि, उनके इस दौरे को सिर्फ आध्यात्मिक नहीं माना जा सकता, बल्कि इसे बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। संघ प्रमुख का बिहार आना, वह भी चुनाव से पहले, यह बताने के लिए काफी है कि बीजेपी इस बार पूरी तैयारी के साथ चुनावी मैदान में उतर रही है। बीजेपी के लिए बिहार चुनाव हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है, क्योंकि राज्य में जातीय समीकरण काफी मजबूत हैं। अब तक बीजेपी को जेडीयू के सहारे ही सत्ता में हिस्सेदारी मिलती रही है, लेकिन इस बार बीजेपी अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हिंदुत्व कार्ड खेल रही है।


धार्मिक गुरुओं का बिहार में एक के बाद एक पहुंचना और उनके प्रवचनों में हिंदुत्व की बातें करना यह साबित करता है कि बिहार चुनाव से पहले एक बड़ा सियासी खेल खेला जा रहा है। आरजेडी ने साफ कहा है कि बीजेपी यह सब चुनावी फायदे के लिए कर रही है। विपक्ष का मानना है कि बीजेपी धार्मिक गुरुओं को आगे कर बिहार में एक नई राजनीतिक धारा बहाना चाहती है। हालांकि, बीजेपी इस तरह के आरोपों को नकारती रही है, लेकिन यह तो साफ है कि इन सभी घटनाओं का एक खास मकसद है। बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों पर टिकी रही है, लेकिन बीजेपी अब इसे हिंदुत्व के आधार पर बदलने की कोशिश कर रही है। हिंदुत्व की राजनीति बीजेपी के लिए कोई नई बात नहीं है, लेकिन बिहार में इसे मजबूती से लागू करने की कोशिश पहली बार इतनी खुलकर हो रही है। संघ भी लगातार इस रणनीति पर काम कर रहा है कि जातियों में बंटे हिंदुओं को एक मंच पर लाया जाए, ताकि इसका चुनावी फायदा बीजेपी को मिले।
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पहले भी हिंदुओं को एकजुट करने की बात कह चुके हैं। उन्होंने मध्य प्रदेश में भी हिंदू जागरण के लिए यात्रा निकाली थी, और अब बिहार में भी उनका यही उद्देश्य नजर आ रहा है। श्री श्री रविशंकर के महमूद गजनवी द्वारा खंडित शिवलिंग को लेकर बिहार आने का भी यही मकसद हो सकता है कि हिंदुओं की भावनाएं जाग्रत हों और वे एकजुट होकर एक खास विचारधारा के समर्थन में खड़े हों। इन सब घटनाओं को जोड़कर देखा जाए तो यह साफ होता है कि बिहार चुनाव से पहले धार्मिक बाबाओं का यह दौरा महज संयोग नहीं, बल्कि एक सियासी रणनीति का हिस्सा है। बीजेपी यह समझ चुकी है कि बिहार में जातीय समीकरणों के चलते उसे सत्ता पाने में दिक्कत होती रही है, इसलिए अब वह हिंदुत्व को केंद्र में रखकर चुनावी लड़ाई लड़ना चाहती है। यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह तो चुनाव के नतीजों से ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि बिहार में इस बार का चुनाव सिर्फ जातीय समीकरणों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि हिंदुत्व का मुद्दा भी पूरी तरह हावी रहेगा।
-लेखक सुविख्यात वरिष्ठ पत्रकार हैं

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