डॉ सुरेंद्रसिंह शेखावत.
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के इस्तीफ़े के साथ ही भारत ने अपना एक स्थाई पड़ौसी दोस्त खो दिया। बांग्लादेश में राजनीतिक-सामाजिक स्थिरता रहना भारत के लिए सुखद होता। दक्षिण एशियाई देशों में बांग्लादेश भारत का एक बड़ा साझेदार है। 1971 ई. में भारत की ही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश में आशा की एक नई किरण जगाई थी। वैश्विक दबाव-तनाव झेलते हुए भी उन्होंने पाकिस्तान के जुल्म से परेशान एक इलाक़े को स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश बनाया था। जिसके साथ ही बांग्ला मुक्ति मोर्चा का संघर्ष पूरा हुआ और बांग्लादेश एक गणराज्य बना लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रूप से यह गणतंत्र अधिक टिक न सका। इसी नाटकीय घटनाक्रम के साथ भारत ने एक मज़बूत आर्थिक साझेदार खो दिया। इससे भारत की आर्थिक नीतियों, सुरक्षा साझेदारियों और सामाजिक गतिविधियों में व्यापक बदलाव रेखांकित किया जा सकता है।
बांग्लादेश में पैदा हुई अस्थिरता भारत के लिए भी कई मुसीबतों का दरवाज़ा खोल सकती है जिसमें सबसे प्रमुख है वहाँ के हिंदू अल्पसंख्यकों के सामने आने वाली चुनौतियां। बांग्लादेश में इस्लाम के बाद सबसे अधिक आबादी हिंदुओं की है। बांग्लादेश में लगभग एक करोड़ 30 लाख हिंदू निवास करते है। जो वहाँ की आबादी का लगभग 7.95 प्रतिशत है। पश्चिम बंगाल से सटे इन क्षेत्रों में भारत की हिन्दू आबादी केवल सीमांत संबंध ही नहीं दर्शाती बल्कि आर्थिक-सामाजिक संबंध भी दर्शाती है। भारत- बांग्लादेश संबंधों का इतिहास प्राचीन है जिसका आधार यहां साझा-सांस्कृतिक विरासत है। बांग्लादेश में उपजे हालातों के बाद सबसे अधिक पीड़ित वहाँ की हिंदू जनता हो रही है। समाचार पत्रों के मुताबिक़ अब तक लगभग 27 ज़िलों में हिंदुओं के साथ हिंसक झड़पों, आगजनी, लूटपाट और हत्या की घटनाएं सामने आई है। इस्लामिक कट्टरपंथियों की सरकार में वापसी के साथ ही इन घटनाओं का बढ़ना एक तय शुदा दस्तावेज की तरह है। तारीख़ में दर्ज ब्यौरे देखें तो पायेंगे कि ऐतिहासिक घटनाक्रमों के केंद्र में इस्लामिक कट्टरपंथियों का पहला शिकार वहाँ की हिंदू अल्पसंख्यक आबादी ही होती है। शैख़ हसीना के रूप में बांग्लादेश के साथ हमारी रिश्तेदारी इस रूप में थी कि वहाँ एक धर्मनिरपेक्ष सरकार का शासन था जिससे हिंदू आतंकित न थे। तख्तापलट के साथ ही हिंदूओं के साथ हिंसा की खबरें आना अब आम हो गई है। न्यूज़ चैनल बीबीसी की रिपोर्ट्स के मुताबिक़ कट्टरपंथियों ने बांग्लादेश के रंगपुर के काउंसलर की हत्या कर दी गई है। सिराजगंज में 13 पुलिसवालों को जिन्दा जला दिया गया जिसमे 9 हिन्दू थे। बांग्लादेश क्रिकेट टीम पूर्व कप्तान मशरफे मुर्तजा के घर में आग लगा दी है। नौगांव में एक बांग्लादेशी हिंदू लड़की यह बताते हुए रोने लगी कि कैसे बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार किया जा रहा है और उन्हें धमकाया जा रहा है, उनके घरों और दुकानों को कट्टरपंथियों द्वारा लूट लिया गया है। उन्होंने हिंदुओं के घरों को लूटा और नष्ट किया है। बर्बर भीड़ आतंक की राह पर चल पड़ी है जिससे कोई भी सुरक्षित नहीं है। बांग्लादेश की सारी आर्थिक गतिविधियाँ बंद हो गई है। भीड़ के आक्रोशित आक्रमणों से केवल हिंदू अल्पसंख्यक ही नहीं क्रिकेटर,नेता, व्यवसायी और अल्पसंख्यकों सहित सभी असुरक्षित है।
भारत और बांग्लादेश के बीच पिछले 53 सालों से द्विपक्षीय संबंध हैं। इसी बीच लगभग चार हज़ार किमी. की बांग्लादेश सीमा पर भारत ने अपनी नज़रें गड़ा दी है। हर घटनाक्रम पर पैनी नज़र बनाई जा रही है क्योंकि इससे भारत का आर्थिक निवेश बिगड़ने का भी डर बना हुआ है। भारत सरकार अपने पड़ौसी देश के साथ मित्रवत् संबंध यथावत रखने की दिशा में सतत गतिशील है। हाल ही में सरकार गठन के दौरान बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना भारत आई थी। भारत-बांग्लादेश की साझेदारी के सिलसिले में शेख़ हसीना पिछले एक साल में तीन बार भारत आई जिसमें कई महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए गए जिसने दोनों देशों देशों के मध्य सुदृढ़ संबंध स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बांग्लादेश एकमात्र ऐसा पड़ोसी देश था जिसे भारत ने जी-20 में सर्वाधिक तवज्जो दी थी। दक्षिण एशिया में बांग्लादेश, भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। कोविड-19 के दौरान पूरे विश्व की आर्थिक नीतियों में व्यापक बदलाव हुआ और अर्थव्यवस्था पर भारी दुष्प्रभाव पड़ा। इस के बावजूद दोनों देशों के बीच साल 2020-21 में 10.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार रहा। वहीं साल 2021-22 में यह व्यापार 44 प्रतिशत के दर से बढ़कर 18.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था। साल 2022-23 के बीच भारत-बांग्लादेश का कुल व्यापार 15.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। इस तथ्यों के साथ भारत के लिए बांग्लादेश की स्थिरता का भी सहज अनुमान लगाया सकता है। भारत इन साझेदारियों के साथ बांग्लादेश से बिजली और ऊर्जा के क्षेत्र में कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा हैं। बांग्लादेश वर्तमान में 1160 मेगावाट बिजली भारत से आयात कर रहा है। इस तरह से एक महत्वपूर्ण पड़ौसी देश और व्यापार साझेदार देश का अंतर्देशीय संकटों से घिर जाना भारत को निश्चय ही प्रभावित करेगा। दोनों देशों के मध्य हाई स्पीड डीजल ले जाने के लिए दोनों भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन बहुत अहम है। भारत ने पिछले एक दशक में बांग्लादेश को सड़क, रेलवे, बंदरगाहों के निर्माण के लिए हजारों करोड़ रुपये दिए हैं। यह हमारी मित्र-राष्ट्र के प्रति मज़बूत और स्थिर संबंधों की खूबसूरत बानगी है।
पूर्वी क्षेत्रों में हमें म्यांमार से पहले ही चुनौती मिल रही है और अब बांग्लादेश के सियासी घटनाक्रम ने हमारी सीमाओं पर मुस्तैदी बढ़ाना सुनिश्चित कर दिया है। बांग्लादेश के राजनीतिक दंगल में फ़िलहाल दो बड़े और प्रमुख चेहरे है अवामी लीग की शेख़ हसीना और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की खालिदा ज़िया। पिछले पंद्रह सालों से प्रधानमंत्री शैख़ हसीना की अवामी लीग की सरकार थी जिससे भारत के काफ़ी मृदु संबंध थे। दूसरी मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का झुकाव इस्लामिक कट्टरपंथियों की तरफ़ रहा है। एसे में शेख़ हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के साथ एक करोड़ हिंदू शरणार्थी असुरक्षित महसूस करते हुए भारत की ओर कदम बढ़ा रहे है जो कि हमारे वर्तमान हालातों पर व्यापक असर डालेंगे। शैख़ हसीना की अवामी लीग लिबरल, सेक्युलर, डेमोक्रेटिक फैब्रिक में विश्वास करती है। यही कारण है कि हिंदू उसके शासनकाल में ख़ुद को अधिक सुरक्षित पाते है। शैख़ हसीना के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुस्लिम बहुल बांग्लादेश में आर्थिक प्रगति हुई यहाँ तक कि कई सूचकांकों में वह भारत से भी आगे निकल जाने में कामयाब हुआ। पिछले एक दशक के दौरान बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय तीन गुना बढ़ चुकी है। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक़ बीते दो दशकों में बांग्लादेश में ढाई करोड़ लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला गया है। बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति के मूल में वहाँ का कपड़ा उद्योग है जिसे अवामी लीग की सरकार ने खूब बढ़ावा दिया। बांग्लादेश का ये कपड़ा उद्योग यूरोप, अमेरिका और एशिया के बाज़ारों को आपूर्ति करता है।
चीन की लगातार बढ़ती दख़लंदाज़ी से हमारी सीमाओं पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे है। बांग्लादेश में सैनिक सरकार बनने के साथ ही वहाँ की लगभग आठ फ़ीसदी हिंदू आबादी के साथ जुल्म ढाए जाने संभावना है। 1971 में वहाँ की आबादी का कुल 18 प्रतिशत हिन्दू आबादी थी जो अब घटकर 8 प्रतिशत से कम रह गई है। हमारे पड़ौसी देशों में अस्थिर सरकारों के गठन से हमारी सामरिक-रणनीतिक गतिविधियों पर भी असर पड़ता है। पाकिस्तान में इमरान सरकार की विदाई के बाद शाहबाज़ शरीफ सरकार भारत विरोधी एजेंडे के साथ काम कर रही है। इसके लिए चीन उसे हथियारों की सप्लाई करता है जिससे भारत में आतंकवाद व घुसपैठ की घटनाएँ होती है। श्रीलंका की विक्रमसिंघे सरकार भी चीन समर्थक है जिससे हमारी समुद्री सीमाओं पर की जा रही गतिविधि पर चीन की नज़र गडी हुई है। नेपाल और म्यांमार की सरकारें भी भारत के लिए सामरिक मुसीबत का केंद्र बनी हुई है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)