महावीर जयंती: आज आत्ममंथन दिवस है!

गोपाल झा.
त्य, अहिंसा और आत्मनियंत्रण। ये तीन शब्द भर नहीं हैं। मनुष्य को मनुष्य लायक बनाने के आवश्यक गुण हैं। इस कसौटी पर देखें तो दुनिया में कितने मनुष्य हैं ? दरअसल, महावीर जयंती हम सबको आत्ममंथन का अवसर देती है। हमने अपने मन पर कितना नियंत्रण पाया है, परखने का मौका देती है।
मैंने सबसे पहले संभवतः पांचवी कक्षा में भगवान महावीर के बारे में पढ़ा था। बिहार के सरकारी स्कूल में अध्ययन के दौरान। सच पूछिए तो उस वक्त कहानियां सी लगती थीं। उम्र के साथ समझ बढ़ी। अब महसूस किया कि भगवान महावीर के सिद्धांत हमारे लिए कितने उपयोगी हैं और अनुकरणीय भी।
महावीर स्वामी का सबसे प्रमुख और सर्वाधिक लोकप्रिय सिद्धांत है, अहिंसा। मौजूदा दौर हिंसा, युद्ध, आतंकवाद और मानसिक प्रताड़ना का है। छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए हम मानवता को ही शर्मसार करने लगे हैं। महावीर कहते हैं, ‘सभी जीवों में आत्मा है और प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र और पूजनीय है।’ यदि हम इस एक विचार को समझ लें तो न केवल शारीरिक हिंसा, बल्कि वाणी और सोच की हिंसा से भी स्वयं को बचा सकते हैं। हम दिन भर कितने लोगों की बेवजह चुगलियां करते हैं। कुछ सच्ची और कुछ झूठी सी। महावीर की नजर में यह हिंसा है और पाप भी। पता नहीं, हम प्रतिदिन 24 घंटे में कितनी बार यह पाप करते हैं।
आज झूठ बोलना चतुराई समझा जाता है। मीडिया, राजनीति, व्यापार, सभी क्षेत्रों में सत्य कहीं खोता जा रहा है। महावीर कहते हैं, ‘जो सत्य को जानता है, वही मोक्ष का अधिकारी बनता है।’ उनके लिए सत्य केवल वाणी से बोलना नहीं, बल्कि आचरण, विचार और व्यवहार में सत्य को जीना था। आज की दुनिया में जहाँ फेक न्यूज, प्रोपेगैंडा और अधूरी सूचनाएं भ्रम पैदा करती हैं, वहाँ महावीर का सत्य एक प्रकाश स्तंभ की तरह है।


अस्तेय अर्थात जो वस्तु आपकी नहीं है, उसे लेने की इच्छा भी नहीं करनी चाहिए।
आज के उपभोक्तावादी समाज में इच्छाएं अनियंत्रित हो चुकी हैं। लोग दूसरों की संपत्ति, समय, यहां तक कि सम्मान भी चुराने में संकोच नहीं करते। महावीर का अस्तेय मनुष्य को आत्मनियंत्रण सिखाता है। वह बताता है कि सुख बाहरी संसाधनों से नहीं, बल्कि आंतरिक संतुलन से आता है।
ब्रह्मचर्य का आशय केवल शारीरिक संयम नहीं है, बल्कि इंद्रियों और विचारों पर नियंत्रण भी है। आज के युग में जहां सोशल मीडिया, मनोरंजन और उपभोग की चीजें हर क्षण ध्यान को विचलित करती हैं, वहाँ ब्रह्मचर्य की आवश्यकता और भी अधिक है।


महावीर के अनुसार ब्रह्मचर्य व्यक्ति को ऊर्जा, स्थिरता और गहराई प्रदान करता है। महावीर ने संपत्ति, संबंध, मान-सम्मान और सत्ता के प्रति आसक्ति को त्यागने का संदेश दिया। आज का मानव उपभोग की दौड़ में इतना उलझ गया है कि उसकी आत्मा भारी हो चुकी है। वस्तुएं जीवन को बेहतर बनाने के लिए होती हैं, लेकिन हम उनके गुलाम बन चुके हैं। महावीर का अपरिग्रह हमें यह समझने में मदद करता है कि जितना हम छोड़ते हैं, उतना ही हल्का और स्वतंत्र हो जाते हैं।
आधुनिक संदर्भों में महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता इतनी भर नहीं है। अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धांत हमें प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन रोकने की प्रेरणा देते हैं। पशु हिंसा को रोकना, मांसाहार से दूरी और कम उपभोग करने की प्रवृत्ति पर्यावरण के लिए वरदान साबित हो सकती है। आज का व्यक्ति बाहरी दिखावे, प्रतिस्पर्धा और तुलना में उलझकर मानसिक रूप से अस्थिर होता जा रहा है। महावीर का दर्शन आत्मा की ओर लौटने और आत्मा को पहचानने की यात्रा है। यह भीतर की यात्रा व्यक्ति को मानसिक शांति और संतुलन प्रदान करती है। महावीर का ‘अनेकांतवाद’, हर विषय को कई दृष्टिकोणों से देखने की भावना, आज के ध्रुवीकृत समाज में सहिष्णुता और संवाद को पुनर्जीवित कर सकता है। जब हम हर मत को सम्मान देंगे, तभी समाज में शांति संभव होगी।


देखा जाए तो महावीर स्वामी का जीवन किसी देवदूत से कम नहीं था, जिन्होंने सत्य, अहिंसा और त्याग की लौ से अंधकारमय समाज को प्रकाशमय बनाने का प्रयास किया। महावीर जयंती केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर है, कि क्या हम वास्तव में उस दिशा में बढ़ रहे हैं जहाँ मानवता, संयम और सदाचार की प्रधानता हो? आज जब युद्ध की आशंकाएं, आर्थिक असमानताएं और सामाजिक तनाव दुनिया को जकड़े हुए हैं, महावीर का सरल सा संदेश किसी अमृतवाणी की तरह है।
आइए, इस महावीर जयंती पर हम केवल पूजा न करें, बल्कि उनके विचारों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें। जय जिनेंद्र।

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