टला नहीं है मध्यम वर्ग का खतरा!

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डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारतीय अर्थव्यवस्था में मध्यम वर्ग एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह वर्ग उपभोग, निवेश और कर भुगतान के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को गति देता है। लेकिन 2025 और आगे, कई कारक इस वर्ग की वित्तीय स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं। बढ़ती महंगाई, बदलती रोजगार संरचना, शिक्षा और स्वास्थ्य खर्च, और सरकारी नीतियों का इस वर्ग पर गहरा असर पड़ने वाला है। मध्यम वर्ग की वर्तमान स्थिति, आर्थिक विकास, नौकरियों, महंगाई, बचत और सरकारी नीतियों का विश्लेषण करते हुए साथ ही यह भी बताने का प्रयास करूंगा कि यह वर्ग आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा या सरकारी समर्थन की आवश्यकता बनी रहेगी।
पिछले दशक में भारत की अर्थव्यवस्था ने तेज़ी से विकास किया, लेकिन इस विकास का लाभ सभी वर्गों को समान रूप से नहीं मिला। स्टार्टअप, डिजिटल बिज़नेस, और सेवा क्षेत्र (आईटी, ई-कॉमर्स) ने मध्यम वर्ग के लिए नई संभावनाएँ खोली हैं। उच्च वर्ग की आय तेज़ी से बढ़ रही है, जबकि मध्यम वर्ग को महंगाई और उच्च जीवन यापन लागत के कारण संघर्ष करना पड़ रहा है। महानगरों में अधिक अवसर हैं, जबकि छोटे शहरों और कस्बों में आर्थिक प्रगति धीमी बनी हुई है। महंगाई सीधे तौर पर मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति को प्रभावित करती है। खाद्य और ईंधन की बढ़ती कीमतें मासिक बजट पर दबाव डालती हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य खर्च हर साल बढ़ रहे हैं, जिससे वित्तीय अस्थिरता बढ़ती है। ब्याज दरों में उतार-चढ़ाव से होम लोन और अन्य ऋण महंगे हो सकते हैं, जिससे संपत्ति खरीदना मुश्किल हो सकता है। यदि मुद्रास्फीति पर नियंत्रण नहीं रखा गया, तो मध्यम वर्ग को अपनी बचत और निवेश योजनाओं में बदलाव करना पड़ सकता है। परंपरागत रूप से, मध्यम वर्ग सरकारी और निजी नौकरियों पर निर्भर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में यह स्थिति बदल रही है।


गिग इकॉनमी का उदय
फ्रीलांसिंग, स्टार्टअप्स और डिजिटल नौकरियों का विस्तार हुआ है। इससे अधिक लचीलापन मिला है, लेकिन स्थिरता की कमी है। इससे पारंपरिक नौकरियों में कमी आ सकती है। नई स्किल्स (डिजिटल मार्केटिंग, डेटा साइंस, मशीन लर्निंग) की मांग बढ़ रही है। रिमोट वर्क से महानगरों में रहने का खर्च कम किया जा सकता है। इस बदलते परिदृश्य में मध्यम वर्ग को नई स्किल्स सीखने और करियर को अपडेट रखने की जरूरत होगी।


शिक्षा और स्वास्थ्य खर्च
शिक्षा और स्वास्थ्य, मध्यम वर्ग के लिए सबसे बड़े खर्चों में से एक हैं। निजी स्कूल और उच्च शिक्षा की लागत लगातार बढ़ रही है। मेडिकल खर्च तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे बीमा लेना जरूरी हो गया है। एड-टेक और ऑनलाइन लर्निंग ने नए अवसर खोले हैं, लेकिन गुणवत्ता का सवाल बना हुआ है। अगर सरकारी नीतियाँ इन क्षेत्रों में सुधार लाती हैं, तो मध्यम वर्ग को बड़ी राहत मिल सकती है। होम लोन पर बढ़ती ब्याज दरें घर खरीदना मुश्किल बना सकती हैं। मेट्रो शहरों में संपत्ति महंगी होती जा रही है, जिससे किराए पर रहना एकमात्र विकल्प बनता जा रहा है। छोटे शहरों में निवेश का रुझान बढ़ा है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं की कमी एक चुनौती बनी हुई है। आने वाले समय में, रियल एस्टेट में सरकारी हस्तक्षेप (जैसे किफायती आवास योजनाएं) मध्यम वर्ग के लिए मददगार हो सकते हैं। मध्यम वर्ग को आयकर राहत की जरूरत है ताकि खर्च और बचत संतुलित हो सके। सरकारी योजनाएं (पीएमएवाई, स्वास्थ्य बीमा, सब्सिडी) सही तरीके से लागू होने पर आर्थिक दबाव को कम कर सकती हैं। उद्योगों को बढ़ावा देने से नए रोजगार पैदा होंगे, जिससे मध्यम वर्ग को स्थिर आय मिल सकती है।


डिजिटल अर्थव्यवस्था और मध्यम वर्ग
डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन बिज़नेस से नए अवसर बढ़ रहे हैं। ग्रामीण और शहरी मध्यम वर्ग के बीच तकनीकी सुविधाओं का अंतर बढ़ रहा है। साइबर सुरक्षा और डिजिटल धोखाधड़ी भी एक नई चिंता बनती जा रही है। स्टॉक मार्केट, म्यूचुअल फंड, और क्रिप्टोकरेंसी में रुचि बढ़ रही है, लेकिन जोखिम भी बढ़ रहे हैं। एफडी और पीपीएफ जैसी पारंपरिक बचत योजनाओं की ओर झुकाव बना हुआ है। रियल एस्टेट में निवेश अब भी एक महत्वपूर्ण विकल्प बना हुआ है। मध्यम वर्ग को जोखिम और रिटर्न का संतुलन बनाकर निवेश करना होगा। क्या मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति कमजोर हो रही है? महंगाई बढ़ने से गैर-जरूरी खर्च कम हो सकते हैं। ब्याज दरों में वृद्धि से लोन महंगे होंगे, जिससे कार और घर खरीदना कठिन हो सकता है। उपभोक्ता वस्तुओं की मांग पर असर पड़ सकता है, जिससे बाजार में मंदी आ सकती है। ऐसे में डिजिटल स्किल्स और उद्यमिता को अपनाने व निवेश और बचत में विविधता लाने की जरूरत है। सरकार कोे चाहिए कि बेहतर टैक्स नीतियों और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं से राहत प्रदान करे। स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप से वित्तीय दबाव कम हो सकता है। मध्यम वर्ग को आने वाले वर्षों में नई आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप खुद को ढालना होगा। आत्मनिर्भरता और सही सरकारी नीतियों का संतुलन ही इस वर्ग का भविष्य तय करेगा।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

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