तीन फसलों से बदलेगी हनुमानगढ़ की दशा

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डॉ. संतोष राजपुरोहित.
राजस्थान सरकार की बहुआयामी योजना ‘एक जिला एक उत्पाद’ के तहत हनुमानगढ़ जिले में सरसों, गेहूं और कपास आधारित उद्योगों की संभावनाएं, चुनौतियां और सुझावों को समझना जरूरी है। सच तो यह है कि जिले की आर्थिक और औद्योगिक विकास की दिशा में ‘एक जिला-एक उत्पाद’ एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इन तीनों फसलों का जिले की कृषि अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान है, और इनसे जुड़े उद्योग रोजगार, व्यापार और निर्यात के नए अवसर पैदा कर सकते हैं।
सरसों से खाद्य तेल और खल (पशु आहार) तैयार करने की व्यापक संभावनाएं हैं।
सरसों के तेल की स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी मांग है। सरसों से सरसों तेल, सरसों पाउडर (मसाला), और औषधीय उत्पाद बनाए जा सकते हैं। ऑर्गेनिक सरसों तेल का अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात बढ़ाया जा सकता है। परंपरागत तकनीकों का उपयोग, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा कम हो जाती है। किसानों और उद्यमियों में आधुनिक तकनीकों और बाजार की समझ का अभाव व सरसों के तेल की स्थानीय प्रसंस्करण इकाइयों की कमी बड़ी चुनौती है। ऐसे में सरसों तेल मिल और मूल्य संवर्धन उद्योग स्थापित करने के लिए सब्सिडी और ऋण सुविधाएं प्रदान की जाएं। किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सरसों तेल प्रसंस्करण इकाइयों में आधुनिक तकनीक का उपयोग सुनिश्चित किया जाए।
दूसरी तरफ, गेहूं से आटा, मैदा, सूजी, और ब्रेड जैसे उत्पाद बनाए जा सकते हैं। गेहूं से बिस्किट, नूडल्स और स्नैक्स उत्पाद तैयार करने की उद्योग संभावनाएं हैं। गेहूं का भंडारण और परिवहन सुविधा बेहतर बनाई जा सकती है, जिससे इसकी गुणवत्ता बनी रहे। छोटे किसानों की उत्पादन लागत अधिक और मुनाफा कम है।
भंडारण सुविधाओं की कमी, जिससे उत्पादन का एक हिस्सा खराब हो जाता है। प्रसंस्करण इकाइयों के लिए पर्याप्त निवेश की कमी। बड़े स्तर पर कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस की स्थापना की जाए। स्थानीय किसानों के उत्पाद के लिए प्रसंस्करण इकाइयां विकसित की जाएं। सरकारी योजनाओं के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर के आटा मिल खोले जाएं।
हनुमानगढ़ जिलेे को कभी कपास की पट्टी के नाम से पहचाना जाता था। अब भी कपास से क्षेत्र की खुशहाली सुनिश्चित की जा सकती है। मसलन, कपास की सफाई और धागे के उत्पादन के लिए जिनिंग और स्पिनिंग मिल स्थापित की जा सकती हैं। जबकि हनुमानगढ की उच्चकोटी यार्न के लिए प्रसिद्ध स्पनिंग मिल अदूरदर्शिता एवम अकुशल प्रबंधन के कारण बंद पड़ी हैं। कपास से तैयार कपड़ों और वस्त्रों का निर्माण किया जा सकता है। कपास से घरेलू वस्त्र जैसे तौलिया, चादर, और सूती कपड़े बनाए जा सकते हैं। उच्च गुणवत्ता के कपास उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात किया जा सकता है। जिनिंग और स्पिनिंग मिल्स की स्थापना के लिए उच्च निवेश की आवश्यकता। उत्पाद की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए आधुनिक तकनीक की कमी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना बड़ी चुनौती है। जिनिंग और स्पिनिंग मिल्स के लिए वित्तीय सहायता और सब्सिडी दी जाए। आधुनिक तकनीक और मशीनों को अपनाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाए जाएं। स्थानीय स्तर पर कपड़ा उद्योग स्थापित करने के लिए छोटे और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहित किया जाए। किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य न मिल पाने व स्थानीय किसानों और उद्यमियों को बड़े बाजार तक पहुंचने में कठिनाई होती है। उद्योगों के लिए आवश्यक आधारभूत ढांचे (सड़क, बिजली, पानी) का अभाव भी बड़ी समस्या है। छोटे उद्यमियों और किसानों को ऋण लेने में परेशानी होती है। सरसों, गेहूं, और कपास आधारित उद्योगों के लिए क्लस्टर मॉडल विकसित किया जाए। एक ही स्थान पर प्रसंस्करण, भंडारण और विपणन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं। किसानों और उद्यमियों को आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाए। उद्योगों में स्वचालित और उन्नत तकनीक अपनाई जाए। उद्योगों के लिए निवेश प्रोत्साहन योजना चलाई जाए।
स्थानीय उद्यमियों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ने के लिए पहल की जाए। ‘हनुमानगढ़ सरसों तेल, हनुमानगढ़ गेहूं और हनुमानगढ़ कॉटन’ जैसे ब्रांड विकसित किए जाएं। इन उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रमोट किया जाए।
इसके लिए छोटे किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से जोड़कर उनकी उत्पादन क्षमता बढ़ाई जाए। हनुमानगढ़ जिले में सरसों, गेहूं और कपास आधारित उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं। सही रणनीतियों, सरकारी समर्थन, और आधुनिक तकनीक के उपयोग से इन उद्योगों को एक नई ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है। इससे न केवल जिले के किसानों और उद्यमियों को फायदा होगा, बल्कि यह क्षेत्र की समग्र आर्थिक प्रगति में भी योगदान देगा।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के पूर्व अध्यक्ष हैं

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