जिंदगी एक यात्रा का नाम है। जाने-माने अधिवक्ता रतनलाल नागौरी ने इसे जीवटता के साथ पूरी कर ली। संघर्ष और सफलता के आपाधापी के साथ उन्होंने योगेश्वर श्रीकृष्ण की पावन नगरी वृंदावन में आखिरी सांस ली। पेश है, रतनलाल नागौरी का जिंदगीनामा जो उन्होंने ‘भटनेर पोस्ट’ के साथ साझा किए थे।
गोपाल झा.
राजनीति हर किसी को रास नहीं आती। जाने-माने अधिवक्ता रतनलाल नागौरी को ही लीजिए। जनसंघ के समय से पार्टी से जुड़े रहे। 1980 में भाजपा बनी तो हनुमानगढ़ से पहला टिकट दिया नागौरी को। चुनाव मैदान में आने के बाद मिले खट्टे-मीठे अनुभवों के बाद नागौरी ने पांच साल बाद यानी 1985 में राजनीति को अलविदा कह दिया। वे मानते थे कि राजनीति अच्छे लोगों के लिए नहीं है। अगर आपके पास धनबल और बाहुबल है तो बेशक राजनीति में सफल हो सकते हैं। नागौरी मौजूदा स्तरहीन राजनीति से खासा खिन्न थे। ‘भटनेर पोस्ट’ से कहा-‘बड़े लीडरों के बेसिर पैर के बयान पीड़ा देते हैं। आगामी वर्षों में राजनीति के स्तर सुधरने के कोई चांस नहीं हैं।’
1960 में अबोहर से आए हनुमानगढ़
नागौरी का परिवार अबोहर में रहता था। उसी शहर में जन्मे और पले-बढ़े। दसवीं पास करने के बाद पंजाब यूनिवर्सिटी कालेज होशियारपुर से ग्रेजुएट हुए। दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ फैकल्टी की और वकील बन गए। उस वक्त अबोहर में कोर्ट नहीं थी। फाजिल्का जाना पड़ता था। हनुमानगढ़ के वकील घनश्यामदास उनके परिचित थे इसलिए नागौरी 1960 में हनुमानगढ़ आ गए। कुछ समय तक घनश्यामदास के साथ प्रैक्टिस करने के बाद खुद का चैम्बर बना लिया।
पहला मुकदमा और फीस 40 रुपए
एडवोकेट रतनलाल नागौरी जिंदगी के आखिरी समय के कुछ महीने पहले तक नियमित रूप से कोर्ट जाते और प्रैक्टिस करते रहे। बतौर वकील पहली फीस को बताया। बतौर नागौरी ‘एसडीएम कोर्ट में मुवक्किल की जमानत करवानी थी। उस वक्त फीस के रूप में पहली बार 40 रुपए मिले थे। उस वक्त उस राशि का अपना महत्व था।’
टाउन में एसडीएम और मुंसफ कोर्ट
1960 के दशक में हनुमानगढ़ टाउन में मुंसफ और एसडीएम कोर्ट का संचालन होता था। मत्स्य पालन विभाग का मौजूदा कार्यालय और टाउन थाना भवन में मुंसफ कोर्ट हुआ करती थी। उस वक्त मुंसफ कोर्ट को करीब 2 हजार तक की संपत्ति और लेन देन के मामले की सुनवाई का अधिकार था। बताते हैं ‘एक वरिष्ठ अधिवक्ता हाईकोर्ट से पत्राचार कर कोर्ट को जंक्शन शिफ्ट करवाने में में कामयाब हो गए। वो भी गुपचुप तरीके से।’ नागौरी को याद है जब 1 जनवरी 1960 को एसडीएफ दफ्तर जंक्शन में शिफ्ट हुआ था।
इसलिए पिता ने बनाया वकील
आखिरकार, वकालत पेशे को ही क्यों चुना ? सवाल पर रतनलाल नागौरी मुस्कुराए थे। बोले ‘अबोहर में पिताजी की खेती थी। बिजनेस था। इससे संबंधित कई मुकदमे झेलने पड़ते थे। इसलिए उन्होंने मुझे वकील बनाने का निर्णय किया। और पढ़कर मैं भी वकालत पेशे में आ गया।’ यूं तो नागौरी ने सिविल, फौजदारी और दिवानी आदि हर तरह के मुकदमों की पैरवी की लेकिन पिछले कई साल से उन्होंने खुद का ध्यान बीमा कंपनियों की पैरवी पर केंद्रित कर रखा ?। लेकिन सबसे अधिक लोकप्रिय वे उपभोक्ता मामलों की पैरवी के कारण माने जाते रहे। वकील हितों को लेकर संघर्ष करने का माद्दा ही था जिससे वे हनुमानगढ़ बार संघ के अध्यक्ष भी बने। नागौरी ने बताया था ‘बतौर अध्यक्ष खूब काम किया। वकील हितों को प्राथमिकता के आधार पर साधने की कोशिश की।’
40 दिन रहे बूंदी जेल में
1970 के किसान आंदोलन को नागौरी भूले नहीं थे। बताया-‘जब किसानों ने आंदोलन किया तो भैरोसिंह शेखावत ने मुझसे आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने को कहा। हमें गिरफ्तार कर लिया गया। कुल 40 दिनों तक बूंदी जेल में बंद रहे। बाद में मोहनलाल सुखाड़िया सरकार ने वार्ता कर मांगें मानी लेकिन उसकी क्रियान्विति नहीं हुई।’
पहले जैसा जज न वकील
वक्त के साथ वकालत का पेशा भी बदल गया। वरिष्ठ अधिवक्ता रतनलाल नागौरी कहते थे ‘पहले जज भी मेहनती होते थे। मुकदमे को लेकर तैयार करके आते थे। उस वक्त जज को सुविधाएं भी कम मिलती थीं लेकिन अब तो सब कुछ मिलने के बावजूद अधिकांश जज पूर्व तैयारी के साथ नहीं आते। यही हालत वकीलों की है। नए वकीलों में कम ही ऐेसे हैं जो पढाकू हैं।’ नागौरी के मुताबिक, अच्छा वकील वही है जो विषयों पर पकड़ रखता हो। कानून की समुचित समझ हो।
अग्रवाल समाज की एकजुटता का सूत्रधार
रतनलाल नागौरी अग्रवाल समाज को एकजुट करने के सूत्रधार भी माने जाते थें। हनुमानगढ़ आने के बाद उन्होंने अग्र परिवारों को चिन्हित कर उनसे संपर्क किया। 1970 से ही समाजसेवा के प्रति ललक पैदा हुई लेकिन 1980 से 1985 तक राजनीति में सक्रियता की वजह से समाज को अधिक वक्त नहीं दे पाए। बाद में 1990 में उन्होंने अग्रोहा विकास टस्ट इकाई की स्थापना की और समाज के जरूरतमंद बच्चों को पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध करवाईं। बाद में सरकार ने बच्चों को निःशुल्क पाठ्यक्रम उपलब्ध करवाए तो समाज की ओर से मुफ्त ट्यूशन दिलाने की शुरुआत की। अब हर साल समाज की प्रतिभाओं को सम्मानित करते ताकि बच्चे मॉटिवेट हो सकें। टाउन में अग्रसेन भवन के निर्माण में भी नागौरी की अग्रणी भूमिका निभाते रहे। करीब 45 लाख की लागत से निर्मित भवन आज सर्वसमाज के लिए उपयोगी है।
पांच संतान, सब के सब सफल
नागौरी के दो बेटे हैं। अशोक और अनिल। दोनों ही बिजनेसमैन। एक जयपुर तो दूसरे भिवाड़ी। तीनों बेटियां अपने ससुराल में। लेकिन नागौरी को हनुमानगढ़ के अलावा कहीं मन नहीं लगता। कुछ अरसा पहले जब धर्मपत्नी का निधन हो गया तो वे अकेले हो गए। कहते थे ‘दूसरे शहरों में शिफ्ट होना मुमकिन नहीं। जिस शहर में सब कुछ पाया। उस शहर को रिटर्न करना जरूरी है। वकालत में सक्रिय हूं। दूसरे शहर में रहकर संभव नहीं। इसलिए यहीं हूं।’