बेशर्म, बेखौफ एवं विकृत मानसिकता वाले ये ‘दुष्कर्मी‘

बाबूलाल नागा. 

जोधपुर में नाबालिग के साथ गैंगरेप की घटना हो या फिर मणिपुर में दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने की घटना, अत्यंत घिनौनी और शर्मनाक हैं। दोनों की मामलों में पीड़िताओं को बेशर्म, बेखौफ एवं विकृत मानसिकता वाले लोगों का शिकार होना पड़ा। दोनों की घटनाओं में जो कुछ घटा वह किसी भी सभ्य समाज और संवेदशील मनुष्य को विचलित कर देने वाला है। राजस्थान में तो ऐसी हैवानियत वाली दुष्कर्म की घटनाएं तेजी से घटित हो रही हैं। इन घटनाओं के बाद पूरे देश भर में लोगों में आक्रोश है।
गैंगरेप की ये घटनाएं प्रशासन और समाज के लिए निश्चित रूप से चिंताजनक है। इन घटनाओं ने पूरी व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसी घटनाएं न केवल पुरुषों की पाशविक प्रवृत्ति को दर्शाती है वरन सभ्य समाज और विशेषतः महिला सशक्तीकरण की ऊंची दलीलें देने वालों के मुंह पर करारा तमाचा भी मारती है।
पिछले कुछ महीने के अखबार पढ़ें तो हर दिन-दो चार दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म की घटनाएं प्रमुखता से छपी मिल जाएंगी। इस तरह की घटनाएं दिन-ब-दिन भयावह होती जा रही है। महिलाओं और बच्चियों के विरुद्ध यौन अपराध में लगातार वृद्धि हो रही है। राह चलती अकेली बच्ची या महिला कब इन वहशी दरिंदों की हवस का शिकार हो जाए, कुछ कहा ही नहीं जा सकता। कानून व्यवस्था की बात करना तो अब केवल मन बहलाने भर की बातें रह गई हैं।
किसी भी इंसान के साथ किसी भी तरह की जबरदस्ती करना उसका इंसानी अधिकार छीनने की तरह है। उस पर अगर किसी इंसान के शरीर के साथ जिस भी तरह उसका पूरा अधिकार होता है, किसी दूसरे इंसान द्वारा जबरदस्ती करना कितनी दुखदायी होगा, सोचा जा सकता जा सकता है। इस पृथ्वी लोक में जीव जंतु, पशु पक्षियों में मनुष्य सबसे अधिक मानसिक रूप से सक्षम है लेकिन समाज में बढ़ती हिंसा को देखकर क्या हम बेझिझक कह सकते हैं कि मनुष्य पशु पक्षियों से ज्यादा समझदार है? शायद नहीं। क्योंकि जैसे-जैसे समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में मनुष्य का आतंक, गुंडागर्दी दुष्कर्म के रूप में लगातार बढ़ता जा रहा है। हत्यारा तो एक बार मारता है लेकिन दुष्कर्म पीड़िता मानसिक आधात और समाज के तानों से बार-बार मरती है। बलात्कार तो शरीर पर गहरी चोट है जो देर सवेर भर जाती है पर मन की कभी न भरने वाली चोट कौन देता है? कौन इस जख्म को लगातार कुरेद कर नासूर बनाने के लिए जिम्मेदार है।
सवाल यह भी है कि आखिर ये ‘दुष्कर्मी‘ आते कहां से है? कौन इन्हें उपजाता है। क्या वातावरण और समाज इन्हें जन्म दे रहा है। क्यों बढ़ती आपराधिक मनोवृत्ति के लिए राजनीतिक सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक वातावरण जिम्मेदार है। यह एक कड़वा सत्य है कि अपराधी भी उसी समाज के अंग है जिसे हम सभ्य समाज कहते हैं। सच तो यह है कि ‘‘स्त्री देह‘‘ के लिए उन्मादी इन दुष्कर्मियों का यह चरित्र हम सबने मिलकर तैयार किया है। दूसरी ओर हमारे देश के कर्णधार भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। वे उल्टा औरतों को ही नसीहत देने पर तुले रहते हैं। कोई औरतों के पहनावे की बात करता है तो कोई रात को अकेली घर से बाहर न निकलने की नसीहत देने पर तुल देता है। कहा जाता है कि महिलाएं भारतीय परंपराओं व मर्यादाओं के मुताबिक कपड़े पहनें, जिससे उत्तेजना पैदा हो जाती है और इसी वजह से समाज में विकृति आती है। इनकी अक्ल को तरस आता है। औरतों को यह सीख देने वालों से कोई पूछे कि नौजवान लड़के और लड़कियों की आजादी पर हमला करने वालों पर लगाम क्यों नहीं कसते? उन्हें खुली और ताजी हवा में जीने का मौका क्यों नहीं देते?
बहरहाल, दुष्कर्म पूरी तरह से सामाजिक अपराध है और समाज की ही भयावह समस्या है। ये दोनों मामले पहले नहीं है। इससे पूर्व जितने भी ऐसे मामले हुए हैं वो किसी भी सभ्य समाज के माथे पर कलंक के समान है। ऐसे गैंग रेप के अपराधियों को उनके अपराध की कठोर से कठोर सजा अवश्य मिलनी चाहिए। 
 (लेखक भारत अपडेट के संपादक हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *