प्रेम सहू भाजपा नेता के तौर पर पहचान रखते हैं लेकिन यह परिचय संपूर्ण नहीं है। सच तो यह है कि प्रेम सहू ने साल भर में सामाजिक कार्यकर्ता की छवि तैयार कर ली है। वे बेटियों की पीड़ा को महसूस करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बन चुके हैं। व्यक्तिगत प्रयासों से प्रेम सहू ने करीब 25 लाख की लागत से चार जगहों पर बेटियों के लिए शौचालय और सेनेटरी पैड बदलने के लिए रूम का निर्माण करवाया है। हर तरफ प्रेम सहू की सराहना हो रही है। भटनेर पोस्ट डॉट कॉम के साथ बातचीत में सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम सहू ने रूक्मणी देवी सुखराम सहू चैरिटेबल ट्रस्ट की कार्ययोजना को लेकर खुलासा किया। प्रस्तुत है संपादित अंश …….
बेटियों की इस बड़ी समस्या की तरफ कैसे ध्यान गया ?
-किसी मैगजीन या अखबार में एक रिपोर्ट पढ़ी थी। इसमें बताया गया कि स्कूलों में सेनेटरी पैड बदलने की जगह और शौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण बच्चियां ड्रॉप आउट हो जाती हैं। स्कूल छोड़ने वाली बच्चियों की तादाद करीब 10 प्रतिशत बताई गई। सच बताएं तो इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद मुझे बड़ा झटका लगा। आजादी के 75 साल बाद भी हम बेटियों के लिए शौचालय नहीं बनवा पाए तो यह हमारे लिए चिंता का विषय है। इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद मैंने हनुमानगढ़ जिले के कुछ सरकारी स्कूलों का अवलोकन किया। हालात देखकर मन पसीज गया।
प्रयासों की शुरुआत कैसे हुई ?
जैसा कि बताया, पहले मैं कुछ स्कूलों में गया। वहां की स्थिति संतोषजनक नहीं लगी। फिर हमने माता और पिता के नाम से संस्था बनाई। नाम दिया रूक्मणी देवी सुखराम सहू चैरिटेबल ट्रस्ट। सबसे पहले हनुमानगढ़ जिला मुख्यालय पर संगरिया रोड स्थित राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय में शौचालय और सैनेटरी पैड बदलने के लिए रूम का निर्माण करवाया। डॉक्टरों ने बताया कि सेनेटरी पैड नहीं बदलने से बेटियों में इंफेक्शन का खतरा रहता है। वहीं, शौचालय नहीं होने से हालात और बदतर हो जाते हैं। शहर में यह पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्रयोग था जो सफल रहा। इसके बाद हमने ग्रामीण क्षेत्रों का चयन किया जहां पर आर्थिक रूप से कमजोेर, एससी और अल्पसंख्यक वर्ग की बेटियां ज्यादा है।
अब तक की प्रगति रिपोर्ट क्या है ?
-अब तक संस्था की ओर से चार स्कूलों में शौचालय और सेनेटरी पैड बदलने क लिए रूम का निर्माण करवाया जा चुका है। पक्कासारणा, बहलोलनगर और पुरुषोत्तमबास स्थित सरकारी स्कूल में सुविधा उपलब्ध करवा पाए हैं। अगर खर्च की बात करें तो चारों स्कूलों में करीब 25 लाख रुपए खर्च हुए हैं। इससे पहले संस्था ने सुकन्या योजना के तहत पोस्ट आफिस में करीब एक हजार बेटियों के खाते खुलवाए। आगे भी इस संबंध में हमारा प्रयास जारी रहेगा।
प्रशासन का कैसा रहा सहयोग ?
-सच पूछिए तो प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात कर उन्हें इसके बारे में बताया लेकिन प्रशासनिक स्तर पर जितने प्रोत्साहन की उम्मीद थी, नहीं मिला। अधिकारियों की अपनी सीमा है, वे उससे बाहर नहीं निकलना चाहते जबकि अगर कोई अधिकारी व्यक्तिगत रुचि लेकर इस मुहिम का आगे बढ़ाए तो निश्चित तौर पर इसके व्यापक परिणाम आएंगे। हमने अधिकारियों को बताया कि सेनेटरी पैड संक्रमण फैलाता है, इसलिए इसका निस्तारण जरूरी है वरना यह अपने आप तो 50 साल में भी गलने से रहा। बच्चियों को पैड यूज करने की जानकारी तक नहीं। इसके लिए महिला अध्यापिकाओ को पहल करने की जरूरत है ताकि जागरूकता आए।
आगे की क्या है योजना ?
-अब हमने नीति आयोग से संपर्क किया है। अनुचित जाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग और ओबीसी आयोग आदि से कहा है कि वे इस मुहिम की गंभीरता को समझें। हनुमानगढ़ में करीब 85 हजार बच्चियां स्कूलों में पढ़ाई कर रही हैं। इनमें से करीब 35 हजार बच्चिया ंतो सरकारी स्कूलों में हैं। कहीं पर भी सेनेटरी पैड बदलने के लिए अलग से जगह उपलब्ध नहीं है। जनवरी से हम जागरूकता शिविर लगाएंगे। सबसे बड़ी बात यह कि यह समस्या कैंसर को न्यौता देती है। बहुत कम लोगों को पता है कि कैंसर से बचाने के लिए बच्चियों को 9 से 12 साल की आयु में वैक्शीन देने की जरूरत है। यह सुरक्षा घेरा है। लेकिन जानकारी के अभाव में इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा।