डॉ. संतोष राजपुरोहित.
पंजाब के आर्थिक विकास में सहकारी संस्थाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, लेकिन वे विभिन्न चुनौतियों का सामना भी कर रही हैं। इस आलेख में हम सहकारिता की मुख्य चुनौतियों के बिंदु (आंकड़ों के साथ) दे रहे हैं, जो इस क्षेत्र के सामने मौजूद समस्याओं को उजागर करते हैं। पंजाब में सहकारी समितियों में राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से लगभग 30 फीसद समितियों में संचालन पर राजनीति हावी है, जिससे समिति का कामकाज प्रभावित होता है। सहकारी समितियों में लगभग 40 फीसद सदस्य वित्तीय और व्यावसायिक ज्ञान की कमी के कारण अपने संगठन को कुशलतापूर्वक संचालित नहीं कर पाते हैं। वर्ष 2023 में, सहकारी बैंकों के पास कृषि क्षेत्र में वित्तीय आवश्यकता का केवल 25 फीसद कोष था, जिससे छोटे किसानों को सहकारी बैंकों से पर्याप्त ऋण नहीं मिल पाया।
सहकारी समितियों की लगभग 60 फीसद इकाइयों के पास उत्पादों को बाजार में बेचने के लिए पर्याप्त रणनीति नहीं होती, जिससे उनके लाभ में कमी होती है। लगभग 50 फीसद सहकारी समितियों के पास आधुनिक उपकरण और तकनीकी अवसंरचना की कमी है, जिससे वे वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में सक्षम नहीं हैं। सहकारी संस्थाओं में कुशल प्रबंधकों का अभाव है, जिससे लगभग 35 फीसद समितियाँ कम उत्पादन और कार्यकुशलता में कमी से जूझ रही हैं।
सहकारी बैंकों पर कम ब्याज दरों में ऋण देने का दबाव रहता है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति प्रभावित होती है और कोष की कमी होती है। चिंताजनक बात है कि लगभग 20 फीसद सहकारी समितियाँ कानूनी विवादों में फंसी हुई हैं, जो उनके सामान्य कार्यों को बाधित करती हैं। लगभग 45 फीसद सहकारी समितियों में आधुनिक लेखांकन प्रणाली का अभाव है, जिससे वित्तीय हेरफेर और गड़बड़ियों की संभावना बढ़ जाती है। सहकारी बैंकों में केवल 30 फीसद किसानों को ही बीमा कवरेज मिल पाया है, जिससे प्राकृतिक आपदाओं में उनका सुरक्षा कवच सीमित हो जाता है।
ऋण वसूली में कठिनाई
सहकारी समितियों की ऋण वसूली दर लगभग 70 फीसद है, जो कि अपेक्षाकृत कम है, जिससे समितियों की वित्तीय स्थिति कमजोर होती है। सहकारी समितियों के लगभग 25 फीसद अधिकारी उत्तरदायित्व का पालन नहीं करते, जिससे कार्यकुशलता में कमी आती है। लगभग 55 फीसद सहकारी समितियों के सदस्यों को बाजार की जानकारी नहीं होती, जिससे वे अपने उत्पादों के लिए सर्वाेत्तम मूल्य प्राप्त नहीं कर पाते हैं। सहकारी समितियों में वित्तीय और प्रशासनिक भ्रष्टाचार की घटनाएँ देखी गई हैं, जिससे समितियों का लगभग 15 फीसद कोष व्यर्थ होता है।
लघु किसानों की सहभागिता में कमी
छोटे किसानों का केवल 35 फीसद सहकारी समितियों में शामिल हैं, जिससे उनका आर्थिक विकास बाधित होता है। लगभग 30 फीसद सहकारी समितियों में वितरण प्रणाली अनियमित है, जिससे उत्पाद समय पर नहीं पहुंच पाते और सदस्य निराश होते हैं। सहकारी बैंकों में डिजिटल सेवाओं की पहुंच सीमित है, और केवल 20 फीसद सहकारी बैंक ऑनलाइन लेन-देन की सुविधा प्रदान करते हैं। सहकारी समितियों को वित्तीय और प्रशासनिक समर्थन की कमी है; सरकारी बजट का केवल 5 फीसद ही सहकारिता के लिए आवंटित किया जाता है। सहकारी समितियों का लगभग 50 फीसद व्यवसाय निजी कंपनियों के सामने कमजोर साबित होता है, जिससे वे बाजार में प्रतिस्पर्धा नहीं कर पातीं।
सदस्यों में रुचि की कमी
कई सहकारी समितियों में सदस्यों की सक्रियता कम होती है, जिससे समितियाँ सही ढंग से काम नहीं कर पाती हैं और आर्थिक प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन चुनौतियों के समाधान के लिए सहकारी समितियों में सुधार और सरकारी समर्थन आवश्यक है, जिससे पंजाब में सहकारिता का आर्थिक विकास में योगदान अधिक प्रभावी हो सके।
-लेखक राजस्थान आर्थिक परिषद के अध्यक्ष रहे हैं