भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान की हनुमानगढ़ सीट पर भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशियों का बेसब्री से इंतजार है। राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा है कि क्या दोनों प्रमुख पार्टियां अपने पुराने क्षत्रपों को चुनाव मैदान में उतारेगी या फिर इस बार चेहरे बदलेंगे? हर जगह इस बात को लेकर चर्चाएं चल रही हैं।
सियासी संयोग कहिए कि साल 1990 में दो नए चेहरे चुनाव मैदान में उतरे। जिला मुख्यालय के भगत सिंह चौक पर नेशनल क्लीनिक का संचालन करने वाले डॉ. रामप्रताप और सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले चौधरी विनोद कुमार।
सियासी संयोग कहिए कि साल 1990 में दो नए चेहरे चुनाव मैदान में उतरे। जिला मुख्यालय के भगत सिंह चौक पर नेशनल क्लीनिक का संचालन करने वाले डॉ. रामप्रताप और सियासी परिवार से ताल्लुक रखने वाले चौधरी विनोद कुमार।
इससे पूर्व दोनों के पास पंचायतीराज का अनुभव था। विधानसभा चुनाव में वे दोनों ही पहली बार मैदान में उतरे थे। चौधरी विनोद कुमार के पास कांग्रेस का टिकट था और डॉ. रामप्रताप बेटिकट थे यानी निर्दलीय। परिणाम आया तो डॉ. रामप्रताप 13 हजार 981 मतों के अंतर से चुनाव हार गए थे। लेकिन उन्हें 19 हजार 266 वोट हासिल हुए थे।
अब साल 1993 का चुनाव आया। डॉ. रामप्रताप बीजेपी प्रत्याशी थे। उन्हें 47 हजार 436 वोट मिले जबकि कांग्रेस के चौधरी विनोद कुमार को 33 हजार 611 वोट मिले। इस तरह डॉ. रामप्रताप 13 हजार 825 मतों के अंतर से चुनाव जीत गए और न सिर्फ पहली बार विधानसभा पहुंचे बल्कि भैरोसिंह शेखावत सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति राज्य मंत्री भी ने। इसके बाद साल 2003 से लेकर 2018 तक दोनों ही चुनावी मैदान में आमने-सामने हुए।
डॉ. रामप्रताप: सात में चार चुनाव हारे
भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. रामप्रताप अब तक विधानसभा के सात चुनाव लड़ चुके हैं। इनमें उन्हें तीन बार जीत मिली और चार बार पराजित होना पड़ा है। वे क्षेत्र के एकमात्र नेता हैं जिन्हें पराजित होने के बावजूद इंदिरा गांधी नहर बोर्ड का चेयरमैन बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया। वहीं, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौधरी विनोद कुमार ने अब तक छह चुनाव लड़कर चार बार जीत का परचम लहराया है और दो बार उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा है। वे राज्यमंत्री रह चुके हैं।