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हनुमानगढ़ में चंद लोग ऐसे हैं जो आदि विद्रोही स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। धारा के साथ बहने में भरोसा नहीं करते। शहर के विकास को लेकर सोचते हैं, पहल करते हैं और विजन को अमली जामा पहनाते हैं। ऐसे लोग ‘भटनेर पोस्ट’ की नजर में ‘सिटी स्टार’ कहलाते हैं। आज ‘सिटी स्टार’ के तौर पर शिनाख्त हो रही है वरिष्ठ पार्षद महादेव भार्गव की।
नोहर मूल के स्व. अनुराम भार्गव के पुत्र महादेव भार्गव हनुमानगढ़ में ही जन्मे, पले और बड़े हुए। जाहिर है, उन्होंने बेहद नजदीक से अपने शहर को बसते और विकसित होते देखा है। एनएमपीजी कॉलेज से ग्रेजुएट की डिग्री हासिल करने वाले महादेव भार्गव छात्र जीवन से राजनीति से जुड़ गए थे। कॉलेज में इनका ग्रुप था, जो चुनाव लड़ता और जीतता। आखिर, राजनीति में पदार्पण कैसे हुआ ? महादेव भार्गव कहते हैं, ‘घर के सामने चौधरी रामप्रताप माली का घर है। वे उस वक्त अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। उनके घर बड़े नेताओं का आना-जाना लगा रहता था। भले वे चौधरी कुंभाराम आर्य हों या रामचंद्र चौधरी या फिर चौधरी आत्माराम आदि। उन सबको सुनकर राजनीति से जुड़ाव होने लगा था।’
66 वर्षीय महादेव भार्गव ने भी राजनीति की शुरूआत कांग्रेस से की थी। वे साल 1977 में भीमराज चौधरी के चुनाव प्रचार का काम देखते थे। उस वक्त जनता पार्टी प्रत्याशी थे उदयपाल सारस्वत, माकपा के कॉमरेड शोपत सिंह और निर्दलीय थे बृजप्रकाश गोयल। महादेव भार्गव ने डॉ. रामप्रताप के साथ ही साल 1993 में भाजपा जॉइन की थी। वे अब तक ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाते रहे। साल 1994 नगरपालिका चुनाव में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे लेकिन हार गए। फिर उप चुनाव आया तो उन्हें जीत हासिल हुई। मौजूदा नगरपरिषद में महादेव भार्गव चौथी बार पार्षद चुने गए हैं।
विकास पुरुष बनकर उभरे
भाजपा नेता राजकुमार हिसारिया के नेतृत्व वाले बोर्ड में महादेव भार्गव की भूमिका अविस्मरणीय रही। नगरपरिषद का खजाना खाली था। वसुंधराराजे सरकार ने बजट देने से मना कर दिया था। विकास ठप था। महादेव भार्गव ने जन सहभागिता योजना के तहत विकास की कहानी लिखनी शुरू की। वे सुबह होते ही फोन कर सेठ-साहूकारों से मिलने पहुंच जाते। उन्हें पूर्वजों के नाम सड़कें बनवाने के लिए प्रेरित करते। और इस तरह टाउन क्षेत्र में 35 सड़कों का निर्माण करवाया। इस पर करीब 5 करोड़ रुपए खर्च हुए। महादेव भार्गव ने राजकीय अस्पताल और धर्मशाला निर्माण में महत्ती भूमिका निभाई। फिर तो गोशाला हो या कोई अन्य विकास कार्य। महादेव भार्गव हरदम तैयार रहते। लोग भी उन पर आंख बंद कर भरोसा करते हैं। उनके आग्रह को टालना उचित नहीं समझते। सबसे बड़ी बात यह कि महादेव भार्गव ने खुद अपने माता-पिता के नाम से दो सड़कों का निर्माण करवाया। आज भी टाउन में ‘अनुराम भार्गव मार्ग’ और ‘शांति मार्ग’ उनके पुरखों को समर्पित हैं। अस्पताल परिसर स्थित धर्मशाला में भी एक कमरे पर होने वाले खर्च कर उन्होंने खुद वहन किया।
संघर्ष के पर्याय
महादेव भार्गव संघर्ष करने में पीछे नहीं हटते। भद्रकाली मंदिर के सामने पुल बनवाने की मांग हो या चुंगी नंबर छह पर ओवर ब्रिज निर्माण। टाउन से सरकारी कार्यालयों को जंक्शन शिफ्ट करने पर भी उन्होंने मुखर विरोध दर्ज करवाया। यदा-कदा आज भी उनके भीतर यह दर्द महसूस होता है। बेबाक व दो टूक अपनी बात रखने के कारण उनके प्रिय नेता देवीसिंह भाटी हैं। महादेव भार्गव कहते हैं, ‘भाटी साहब सच्चे अर्थों में जन नेता है। जनता के हित में अधिकारियों की क्लास लेते हैं। यह उनका बड़प्पन है।’ काबिलेगौर है कि महादेव भार्गव सामाजिक न्याय मंच के जिलाध्यक्ष भी रहे।