खादी बेचारी शर्मिंदा!

जैनेंद्र कुमार झांब.

 गाँधी से चरखा, चरखे से खादी, खादी से नेता, नेता से सरकार। इस फार्मूले पर हम सत्तर साल निकाल चुके। सॉलिड स्टेट रेडियो आया-गया। ट्रांजिस्टर, काले सफेद टेलिविज़न, डब्बा रंगीन टेलिविज़न, चकरी वाला फोन, कॉर्डलेस लैण्डलाइन, नॉनस्मार्ट मोबाइल, अल्लम गल्लम सब अपनी अपनी उम्र जी कर वीरगति को प्राप्त हुए। वीसीआर जैसे कई बेचारों की तो भ्रूणहत्या भी हुई। दुनिया आगे बढ़ी, बढ़नी ही थी, रुकती थोड़ा है!
लेकिन नेता की छवि वहीं अटक कर रह गयी।
 खादी का कुर्ता पाजामा, उसके ऊपर जवाहर जैकेट, गर्मी सर्दी बरसात! कुर्ते की बाजू छोटी बड़ी करके मौसम झेलते बेचारे नेता! भीषण सर्दी हो, कुर्ते के नीचे तीन थर्मल बनियान पहन लेंगे लेकिन जैकेट वही, मानो कोट पहन लिया तो कोई नेता मानेगा ही नहीं।
 ऐसा करें कि ऊपर लिखी बातों को छोड़कर एक बार नेताजी को नख से शिख तक निहार लें हम। नेता जी के जूते! उनकी घड़ी! उनकी कलम, अंगूठी/ठियां, गले की चेन, उनका चश्मा, एसयूवी को रहने दें। नख से शिख की बात चल रही है। अब सच बताओ कि आप सबका खरीद मूल्य कितना कितना है ? लेकिन आप सबके साथ खादी पहननी पड़ती है, नेता की छवि जो ऐसी! मतलब मजबूरी देखो कि खादी घड़ी से शरमा रही है और कलम खादी से।
और एक बार कोई शरीफ आदमी खादी पहन कर घर से निकल ले तो जो पहला जीव उससे रूबरू होगा, बोलेगा कि नेताजी लगा रहे हो।
 चुनाव लड़ने का प्रोग्राम है ? बेचारा शरीफ आदमी खादी में नंगा और खादी बेचारी शर्मिंदा।
यूँ भी हमारे नेता लोगों की सुकुमार खाल पर खुरदरी खादी एलर्जी भी तो करती होगी। चाहे कितनी भी रिफाइन कर लो खादी को वो है तो खादी ही। तो भैया देशसेवक नेताजी को त्राण दो जी, इतना तो बनता है! यूँ भी व्यावहारिक रूप से तो अब खा और दी बन चुकी है।
अब अर्ली डेज़ के नेता तो ‘अण्डरडेवलप्ड’ थे खादी से प्रेरणा लेते थे, अब तो इतने सारे ‘इन्स्पायरिंग फैक्टर’ हैं कि नेता बेचारा बौरा जाता है, ऊपर से खादी!
 ‘इन्स्पिरेशन’ को पकड़ने की गरज से बाजू लंबी करो तो खादी सारा ‘एन्थुजियाज़्म’ ही शिथिल कर देती है।
हे नागरिकों! अपने प्रिय नेताओं के शरीरों और आत्माओं को खादी से आज़ाद करो। इससे एक ‘बाइप्रोडक्ट’ लाभ और होगा कि साधारण लोग मज़े से खादी पहन सकेंगे। नेताजी के जूते, घड़ी, कलम, अंगूठी/ठियां, चेन, मोबाइल आदि सभी आवश्यक पदार्थ ‘होमोजीनियस’ मीडियम में ग्लो करेंगे।
 -लेखक राजनीतिक, सामाजिक व साहित्यिक मसलों पर कटाक्ष के लिए विख्यात हैं

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