भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
लोकतंत्र में नेताओं यानी जनप्रतिनिधियों का दायित्व समस्याओं का समाधान करना होता है। लगता है, हनुमानगढ़ जिले के अधिकांश नेता इस बात को शिद्दत से महसूस करते हैं। तभी तो जिले की प्रमुख समस्या ‘नशा’ को लेकर ‘समाधान’ किया जा रहा है। बेरोजगार युवाओं की फौज पसंदीदा नेता के लिए ‘परेशान’ दिख रही हैं, एडी-चोटी का जोर लगा रही हैं, उसके पीछे ‘नशा’ ही है।
नशेड़ियों की जमात के लिए चुनाव एक अवसर है। रोजगार के लिए, मुफ्त में नशीली पदार्थ उपलब्ध करवाने के लिए। जिले की पांचों सीटों पर ‘नशा’ की खुराक मुहैया करवाई जा रही है। सब कुछ धड़ल्ले से हो रहा है। हैरानी की बात है कि अभी तक इससे संबंधित कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है।
आम मतदाता ठगा महसूस कर रहा है। यह सब क्या हो रहा है? एक तरफ तो नेता नशामुक्त करने का नारा दे रहे हैं और दूसरी तरफ उनके चुनाव प्रबंधन में जुटे लोग खुलेआम ‘नशा’ बांटने में लगे हैं। नशा के बाद अब ‘नोट’ बांटने का अभियान शुरू होने वाला है यानी वोटों की खरीद फरोख्त का काम। इसके लिए शहरी क्षेत्र में वार्ड स्तर पर कुछ पार्षदों और पूर्व पार्षदों की ड्यूटी लगाई जा रही है तो ग्रामीण स्तर पर यह जिम्मा संबंधित सरपंच या पूर्व सरपंच अथवा पंचायतीराज के जनप्रतिनिधि-पूर्व जनप्रतिनिधि निभाने के लिए तैयार हैं। बताया जा रहा है कि पार्टियां या नेता भले अलग-अलग हों लेकिन जिम्मेदारी का निर्वहन इसी टाइप के जनप्रतिनिधि निभाते हैं।
एक उम्मीदवार के सिपहसालार बताते हैं कि इस काम में बीट कांस्टेबल स्तर पर ‘मैनेज’ किया जा रहा है ताकि पुलिस कार्रवाई से बचा जा सके।
एक सेवानिवृत अध्यापक नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताते हैं कि लोकतंत्र की दिशा बदल चुकी है। जो प्रत्याशी सत्ता के लिए जनता को नशे की गर्त में धकेलने में पीछे नहीं रहते उनसे नशामुक्त करने की उम्मीद का क्या मतलब है ?
एक सेवानिवृत अध्यापक नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताते हैं कि लोकतंत्र की दिशा बदल चुकी है। जो प्रत्याशी सत्ता के लिए जनता को नशे की गर्त में धकेलने में पीछे नहीं रहते उनसे नशामुक्त करने की उम्मीद का क्या मतलब है ?