




डॉ. एमपी शर्मा.
कब्ज़ यानी कॉन्स्टिपेशन। एक ऐसी समस्या, जो सुनने में मामूली लगती है, लेकिन अनुभव में बेहद तकलीफदेह होती है। यह महज़ पेट की गड़बड़ी नहीं, बल्कि आपकी जीवनशैली, खानपान और मानसिक स्थिति का आईना है। चिकित्सकीय भाषा में कहें तो जब सप्ताह में तीन बार से कम मल त्याग हो, मल कठोर व सूखा हो, मल त्याग में अत्यधिक जोर लगाना पड़े और बार-बार अधूरे शौच की अनुभूति हो, तो इसे कब्ज़ कहा जाता है। भारत जैसे देश में जहां अधिकांश लोगों की मल त्याग की आदत दैनिक होती है, वहाँ यदि व्यक्ति दिन में एक बार भी पेट पूरी तरह साफ न कर पाए, मल कठोर हो, पेट में भारीपन या गैस की शिकायत बनी रहे, तो उसे कब्ज़ का प्रारंभिक लक्षण माना जाता है। यहां इसका अनुभव न केवल शारीरिक कष्ट देता है, बल्कि मानसिक बेचौनी और चिड़चिड़ापन भी बढ़ाता है।
कब्ज़ के मुख्य कारण: कब्ज के कई कारण हो सकते हैं, मसलन खानपान संबंधी भी। इसके तहत रेशेदार (फाइबर) आहार की कमी, पर्याप्त पानी न पीना, अत्यधिक तली-भुनी, मसालेदार और फास्ट फूड का सेवन, चाय, कॉफी व अल्कोहल का अधिक प्रयोग प्रमुख हैं। इसी तरह जीवनशैली संबंधी कारण भी प्रमुख माने जा सकत हैं। इसके तहत शारीरिक श्रम या व्यायाम की कमी, देर तक बैठने की आदत, विशेषकर ऑफिस में, मल त्याग की इच्छा को बार-बार टालना व रात में देर से खाना खाना। मानसिक कारण में तनाव, चिंता और डिप्रेशन व नींद की अनियमितता या कमी को माना जा सकता है। इसी तरह इसके कुछ चिकित्सकीय कारण भी माने जा सकते हैं। जैसे, थायरॉइड हार्माेन की कमी, मधुमेह व कुछ दवाओं का प्रभाव, बवासीर या फिशर के डर से मल को रोकना, आंतों की गति धीमी होना प्रमुख हैं।
अब आपको कब्ज़ के लक्षण के बारे में बताते हैं। अगर सप्ताह में 2-3 बार से कम मल त्याग, कठोर, सूखा या गांठदार मल, मल त्याग में अत्यधिक बल लगाना, पेट में भारीपन या दर्द, गैस, डकार और भूख में कमी, बार-बार अधूरी शौच की अनुभूति होती है तो यह इसके प्रमुख लक्षण हैं।

कब्ज़ के लिए उपचार: दवा नहीं, दिनचर्या में बदलाव
खानपान में सुधार करें। फाइबर युक्त आहार लें, जैसे दलिया, छिलके वाली दालें, सलाद, फल (पपीता, अमरूद, अनार), हरी सब्जियाँ। दिनभर में 8-10 गिलास पानी अवश्य पिएँ। सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना अत्यंत लाभकारी है। रात को गर्म दूध में एक चम्मच घी डालकर पीना चाहिए। त्रिफला चूर्ण या इसबगोल भूसी का सेवन, डॉक्टर की सलाह अनुसार करना चाहिए। जीवनशैली में बदलाव करें। मल त्याग के लिए नियमित समय तय करें, आदत बनाएं। योग, प्राणायाम और हल्का व्यायाम अपनाएं कृ जैसे पवनमुक्तासन, कपालभाति, वज्रासन आदि। खाने और सोने का समय नियमित करें। मल त्याग को टालें नहीं, शरीर की प्राकृतिक जरूरतों को समय पर पूरा करें।
दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग
इसबगोल भूसी या त्रिफला चूर्ण जैसे हल्के प्राकृतिक रेचक उपयोग करें। एलोपैथिक या आयुर्वेदिक दवाएं डॉक्टर की निगरानी में लें। बच्चों और बुजुर्गों में विशेष सावधानी बरतें।
डॉक्टर से कब संपर्क करें?
यदि कब्ज़ लंबे समय से बनी हो। मल में खून आ रहा हो। अचानक वजन कम हो रहा हो। 50 वर्ष से ऊपर की उम्र में समस्या नई हो। कोई अन्य गंभीर लक्षण साथ में हो।
कब्ज़ को हल्के में न लें
कब्ज़ भले ही छोटी समस्या लगे, लेकिन यदि इसे समय रहते नियंत्रित न किया जाए, तो यह गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। जैसे बवासीर, फिशर, फिस्टुला, गैस, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, मूड स्विंग्स, यहां तक कि पेट के कैंसर जैसी स्थितियाँ भी। स्वस्थ जीवन की पहली शर्त है पेट का साफ रहना। कब्ज़ के उपचार की शुरुआत किसी गोली से नहीं, बल्कि आपकी थाली, दिनचर्या और सोच से होती है।
सार: आज के यांत्रिक जीवन में कब्ज़ एक आम बात हो गई है। लेकिन यह ‘सामान्य’ नहीं है। यह चेतावनी है कि शरीर किसी असंतुलन की ओर इशारा कर रहा है। यह वक्त है, संभलने का, अपनी आदतें सुधारने का, और फिर से स्वस्थ जीवन की ओर लौटने का।
कब्ज़ से बचिए, खुशहाल रहिए।
पेट साफ रखिए, मन साफ रखिए।
-लेखक सुविख्यात सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




