डॉ. रामप्रताप को लेकर बीजेपी की बेचैनी!

भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.

 राजस्थान विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच हनुमानगढ़ सीट को लेकर चर्चाएं परवान पर हैं। चर्चाओं की लंबी फेहरिस्त है लेकिन फिलहाल पूर्व मंत्री डॉ. रामप्रताप को लेकर बात हो रही है। बीजेपी में दर्जन भर टिकटार्थी इस उम्मीद से दावेदारी जता रहे हैं कि पार्टी 80 प्लस उम्र वालों को टिकट नहीं देने के फार्मूले को लागू करेगी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो फैसला ले लेते हैं, उस पर वे कायम रहते हैं। इस तरह की उम्मीद पाले पार्टी के दर्जन भर नेताओं को लगता है कि इस बार उनकी ‘लॉटरी’ निकल सकती है। कुछ टिकटार्थी गांवों में दौरे कर रहे हैं तो कुछ सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपना प्रचार करने में जुटे हैं। कुछ जयपुर और दिल्ली के सियासी गलियारे की खाक छान रहे तो कुछ डोर टू डोर जाकर प्रभावशाली लोगों का ‘आशीर्वाद’ हासिल करने का प्रयास कर रहे।
सवाल यह है कि क्या सचमुच ऐसा होगा ? बीजेपी पूर्व मंत्री डॉ. रामप्रताप की चुनावी तैयारी पर पानी फेर देगी ? क्या पार्टी किसी नए चेहरे की तलाश में है ? अगर हां, तो फिर वह चेहरा किसका है ?

दरअसल, इस तरह के सियासी चर्चे आम हैं।
इसका सीधा सा जवाब किसी के पास नहीं। राज्य स्तर के किसी नेता के पास तो बिलकुल नहीं। हां, इसका पुख्ता जवाब सिर्फ और सिर्फ मोदी और अमित शाह दे सकते हैं कि बीजेपी का अगला उम्मीदवार कौन होगा ? हनुमानगढ़ के किसी क्षेत्र में आप चले जाएं, चर्चा इन्हीं बातों पर केंद्रित है।
बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ‘भटनेर पोस्ट’ से कहते हैं, ‘तमाम सर्वे रिपोर्ट से यह तय हो गया है कि यह चुनाव आसान नहीं है। पहली बार ऐसा हो रहा है जब विधानसभा चुनाव परिणाम को लेकर कोई कुछ कहने की स्थिति में नहीं। कारण कई हैं। इतना तय है कि अपने निर्धारित नियमों में बदलाव करना पार्टी की मजबूरी बन गई है।

पार्टी हाईकमान को पता है कि इस बार न तो मोदी लहर है और न ही गहलोत सरकार के खिलाफ माहौल। राजे को सीएम फेस नहीं बनाने की जिद में पार्टी अपने नियमों की अनदेखी करने के लिए तैयार है। ऐसे में जीतने लायक उम्मीदवार को ही उतारना बीजेपी की मजबूरी है। भले प्रत्याशी की उम्र 90 साल हो।’
बीजेपी के एक अन्य वरिष्ठ नेता की मानें तो पार्टी बीच का रास्ता निकालने पर भी विचार कर रही है। इसके तहत उम्रदराज नेताओं से उनका पसंदीदा प्रत्याशी पूछा जा रहा है। शर्त यह कि टिकटार्थी उनके परिवार का न हो। पार्टी उनकी पसंद के व्यक्ति को टिकट देकर उसकी जीत सुनिश्चित करने का ‘टास्क’ देने की तैयारी कर रही है। लेकिन दिक्कत यह है कि पार्टी गाइडलाइन को नेता मानेंगे या नहीं, इस पर संशय है।

जहां तक पूर्व मंत्री डॉ. रामप्रताप की बात है, उन्होंने अपना पत्ता नहीं खोला है। अलबत्ता, परिवर्तन यात्रा का स्वागत की आड़ में शक्ति प्रदर्शन कर उन्होंने संकेत जरूर दे दिया है कि उन्हें कमजोर न समझा जाए। वहीं, पूर्व मंत्री के एक सहयोगी की मानें तो डॉ. रामप्रताप टिकट नहीं मिलने की स्थिति में भी चुनाव लड़ेंगे, इसमें दो राय नहीं। यही बीजेपी के लिए बेचैनी का सबब है। क्योंकि डॉ. रामप्रताप बीजेपी के इस वक्त एकमात्र नेता हैं जिनका व्यक्तिगत व्यापक जनाधार है। पार्टी के लिए इनका मजबूत विकल्प तलाशना फिलहाल कठिन माना जा रहा है। बस, यही डॉ. रामप्रताप को लेकर बीजेपी की बेचैनी है।

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