भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
विरोधियों को जवाब देने का सरल तरीका है आप ‘क्रिया’ पर ‘प्रतिक्रिया’ नहीं दीजिए। चुप्पी साध लीजिए। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे यही कर रही हैं। बीजेपी की पहली सूची में न उनका नाम है और न ही उनके खास सिपहसालारों का। समर्थक आग बबूला हैं लेकिन राजे मुस्कुरा रही हैं, सदा की तरह। सोशल मीडिया पर भाजपा प्रत्याशियों को शुभकामनाएं दे रही हैं। अभी तक राजे ने अनौपचारिक तौर पर भी सार्वजनिक रूप से कोई बयान नहीं दिया जिससे लगे कि वे पार्टी के फैसले से नाराज हैं। बस, आलाकमान को इसी बात को लेकर बेचैनी है। बीजेपी में आलाकमान का मतलब इस वक्त कोई संसदीय समिति नहीं बल्कि मोदी-शाह की जोड़ी है। पिछले नौ साल से मोदी-शाह राजे को एक-एक कर झटका दे रहे हैं लेकिन राजे धैर्य के साथ संयम का परिचय दे रही हैं।
दरअसल, यह एक पक्ष है जो दिख रहा है। लेकिन जो नहीं दिख रहा है वो दूसरा पक्ष है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधराराजे ने 15 अक्टूबर को मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने त्रिपुरा संुदरी के दर्शन के बहाने मेवाड़ की यात्रा की। इस बीच उन्होंने अपने समर्थकों से न सिर्फ मुलाकात की बल्कि बंद कमरे में मंत्रणा भी कीं। इतना ही नहीं, महत्वपूर्ण सियासी घटनाक्रम के बीच वसुंधराराजे ने असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया के साथ भी मुलाकात की। इस दौरान दोनों के बीच करीब 45 मिनट चर्चाएं हुईं। इस मुलाकात के मायने हैं। गुलाबचंद कटारिया मेवाड़ के दिग्गज नेता माने जाते रहे हैं।
तो क्या, राजे ने अपनी रणनीति को अंतिम रूप दे दिया है ? राजे खेमे के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, ‘महारानी आलाकमान के सितम को तोल रही हैं। फिर माकूल जवाब भी देंगी। बस, इंतजार कीजिए।’ दरअसल, इस टिप्पणी के मायने हैं जिसका असर निकट भविष्य में नजर आएगा। सवाल फिर वही है कि आखिर राजे अपनी अनदेखी का जवाब किस हिसाब से देंगी ? पार्टी में रहकर या पार्टी से बाहर जाकर ?