भटनेर पोस्ट चुनाव डेस्क.
हनुमानगढ़ सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर भाग्य आजमा रहे कानाराम जिनागल कभी अपने पैरों पर चल न सके। क्योंकि जब दो साल के थे तो पोलियो के शिकार हो गए। हनुमानगढ़ जिले के गांव पक्काभादवां के पास सुभानदीनवाला निवासी कानाराम ने आठवीं कक्षा तक पढाई की। पैरों से नहीं चल पाने के बावजूद कानाराम व्यवस्था को अपने मुताबिक चलाने के पक्षधर हैं। वे राज्य के हजारों दिव्यांगों की आवाज बन चुके हैं। कहते हैं, ‘दिव्यांगों को लेकर आम लोगों को या तो दया की भावना होती है या फिर घृणा की। हमें दोनों ही स्थिति मंजूर नहीं। हम लाचार नहीं दिखना चाहते। हम तो अपना हक चाहते हैं। भले परमात्मा ने चलने लायक नहीं बनाया लेकिन भारत के संविधान ने तो हमें बराबरी का हक दिया है। बाबा साहेब अंबेडकर की नीतियों पर चलना हमें आ गया है। इसलिए दिव्यांगों को संगठित करते रहे हैं। अधिकार दिलाने के लिए आंदोलित हैं।’
44 वर्षीय कानाराम जिनागल दिव्यांगों को अधिकार दिलाने के लि 40 किमी की यात्रा कर चुके हैं। वे अब तक कई बार आंदोलन कर चुके हैं। भूख हड़ताल कर चुके हैं।
कानाराम जिनागल ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ से कहते हैं, ‘लोकसभा और विधानसभा में दिव्यांगों को कम से कम तीन फीसद आरक्षण जरूरी है। राजस्थान में 200 सीटें हैं, अगर छह सीटों पर दिव्यांगों को टिकट मिले और वे जीतकर विधानसभा जाएंगे तो दिव्यांगों के जीवन में बदलाव आ सकेगा। इसी बात को लेकर हम चुनाव मैदान में उतरे हें।’
जिनागल को इस बात का मलाल है कि कलक्टर कार्यालय उपरी मंजिल पर है। कलक्टर से मिलने में दिव्यांगों को बड़ी दिक्कत है। नल पर पानी पीने में कठिनाई होती है। लेकिन इन बातों पर किसी का ध्यान नहीं। वे चाहते हैं कि समाज में दिव्यांगों को लेकर सोच में बदलाव आए। वे 15 नवंबर से चुनाव प्रचार का अभियान करेंगे।