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नगरपरिषद में नेता प्रतिपक्ष बलराज सिंह दानेवालिया ने निर्दलीय प्रत्याशी गणेशराज बंसल को समर्थन देने का एलान किया है। उन्होंने जिला मुख्यालय पर पत्रकार वार्ता में कहाकि भाजपा हमेशा दूसरी पार्टी पर वंशवाद और परिवारवाद का आरोप लगाती रहती है। जबकि खुद उसी नीति पर चलती है। ऐसे में उसे दूसरी पार्टी पर टीका टिप्पणी करने का कोई हक नहीं। हनुमानगढ़ में वंशवाद को बढ़ावा देकर भाजपा ने बाकी कार्यकर्ताओं का अपमान किया है। पार्टी के बाकी कार्यकर्ताओं को सोचना होगा कि क्या कि वे सिर्फ नेताओं की जय जयकार और दरियां उठाने के लिए हैं ? जब नेता और उनके बाद उनके परिवार व पुत्र ही राजनीति में उनकी विरासत संभालेंगे तो फिर ऐसी पार्टी में कार्यकर्ताओं का कोई भविष्य नहीं है।
भाजपा नेता बलराज सिंह दानेवालिया ने कहाकि विधानसभा चुनाव के वक्त दर्जन भर कार्यकर्ता टिकट के दावेदार थे लेकिन पार्टी ने पूर्व मंत्री के पुत्र को टिकट देकर यह साबित कर दिया कि भाजपा और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है। पत्रकार वार्ता में नगरपरिषद के पूर्व चेयरपर्सन संतोष बंसल, वरिष्ठ पार्षद सुमित रिणवा, सरपंच हरदीप सिंह रामसरा, अंबेडकर नव युवक संघ के जिलाध्यक्ष नारायणराम नायक आदि मौजूद थे।
भाजपा नेता बलराज सिंह दानेवालिया ने कहाकि विधानसभा चुनाव के वक्त दर्जन भर कार्यकर्ता टिकट के दावेदार थे लेकिन पार्टी ने पूर्व मंत्री के पुत्र को टिकट देकर यह साबित कर दिया कि भाजपा और कांग्रेस में कोई अंतर नहीं है। पत्रकार वार्ता में नगरपरिषद के पूर्व चेयरपर्सन संतोष बंसल, वरिष्ठ पार्षद सुमित रिणवा, सरपंच हरदीप सिंह रामसरा, अंबेडकर नव युवक संघ के जिलाध्यक्ष नारायणराम नायक आदि मौजूद थे।
आत्मा की आवाज है गणेशराज
नेता प्रतिपक्ष बलराज सिंह दानेवालिया बोले-मैं तीन दशक से राजनीति में हूं। ईमानदारी के साथ रहा हूं। कई बार पार्षद बना। पार्टी ने नेता प्रतिपक्ष बनाया। लेकिन गलत को गलत कहना मेरी आदत है। आत्मा की आवाज को दबाना मेरे लिए मुमकिन नहीं। आज आत्मा की आवाज गणेशराज है। हम भाजपा के वफादार सिपाही हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सम्मान के साथ समझौता करे।
टिकट मांगा, निराशा मिली
बलराज सिंह ने कहाकि 1998 से भाजपा टिकट मांग रहा हूं। लेकिन पार्टी ने हर बार हमारी अनदेखी की। निराशा मिली। जमींदारा पार्टी ने टिकट दिया, चुनाव लड़ा। अच्छे वोट आए। लेकिन फिर अपनी पार्टी में लौट आया। लेकिन पार्टी में कुछ समय से इस तरह के हालात बने कि आखिर में यह फैसला लेना पड़ा।