भटनेर पोस्ट चुनाव डेस्क.
पति विधायक और पत्नी पूर्व जिला प्रमुख। पति कांग्रेस उम्मीदवार तो पत्नी जनजनायक जनता पार्टी की प्रत्याशी। सीट है सीकर जिले की दांतारामगढ़। जी हां। राजनीति के रंग निराले होते हैं। इसकी बानगी है दांतारामगढ़। कहते हैं राजनीति जोड़ती है लेकिन जब महत्वाकांक्षा हावी हो जाए तो राजनीति तोड़ती भी है। पति को पत्नी से अलग कर देती है। समूचे राजस्थान के चुनाव में दांतारामगढ़ सीट चर्चा में है। जजपा ने रीटा सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने मौजूदा विधायक वीरेंद्र सिंह पर भी भरोसा जताया है। वीरेंद्र सिंह कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष चौधरी नारायसिंह के बेटे हैं और रीटा सिंह के पति।
रीटा सिंह उच्च शिक्षित हैं। दार्जिलिंग से ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। पिता मंगल सिंह के दार्जिलिंग में चाय के बगान थे। भाई राजसिंह चौधरी बॉलीवुड से जुड़े हैं। फिल्मों को वित्तीय सहायता करते हैं। बहन नीटा सिंह भी मुंबई ही रहती हैं और इंटीरियर डिजाइनर का काम करती हैं। रीटा सिंह बताती हैं, ‘ससुरजी ने राजनीति में पहला मौका दिया। आज जो कुछ हूं, उनकी वजह से हूं। वही मेरे आदर्श हैं और प्रेरणास्त्रोत भी। उनके बताए रास्ते पर चल रही हूं। आगे क्या रहेगा, परमात्मा जानता है।’
मीडिया से मुखातिब रीटा सिंह कहती हैं, ‘सभी पूछ रहे हैं कि पति के सामने चुनाव लड़ने का फैसला कैसे किया। मैं कहती हूं, यह राजनीति है। सेवा का रास्ता है। सेवा करना कोई बुरी बात नहीं। मैं जिला प्रमुख रही हूं। एक-एक व्यक्ति से जुड़ाव है। कार्यकर्ता निरंतर संपर्क में हैं। पंचायत चुनाव में काफी प्रेशर था कि चुनाव लड़ो। कई सीटों से बुलावा आया। पिछले चुनाव में भी जनता की मांग थी लेकिन परिवार में ही टिकट आया तो हमने पैर खींच लिए। इस बार जनता की मांग को दरकिनार करना संभव नहीं था। लोग इस मुकाबले को देखना चाहते हैं।’
रीटा सिंह उच्च शिक्षित हैं। दार्जिलिंग से ही उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। पिता मंगल सिंह के दार्जिलिंग में चाय के बगान थे। भाई राजसिंह चौधरी बॉलीवुड से जुड़े हैं। फिल्मों को वित्तीय सहायता करते हैं। बहन नीटा सिंह भी मुंबई ही रहती हैं और इंटीरियर डिजाइनर का काम करती हैं। रीटा सिंह बताती हैं, ‘ससुरजी ने राजनीति में पहला मौका दिया। आज जो कुछ हूं, उनकी वजह से हूं। वही मेरे आदर्श हैं और प्रेरणास्त्रोत भी। उनके बताए रास्ते पर चल रही हूं। आगे क्या रहेगा, परमात्मा जानता है।’
मीडिया से मुखातिब रीटा सिंह कहती हैं, ‘सभी पूछ रहे हैं कि पति के सामने चुनाव लड़ने का फैसला कैसे किया। मैं कहती हूं, यह राजनीति है। सेवा का रास्ता है। सेवा करना कोई बुरी बात नहीं। मैं जिला प्रमुख रही हूं। एक-एक व्यक्ति से जुड़ाव है। कार्यकर्ता निरंतर संपर्क में हैं। पंचायत चुनाव में काफी प्रेशर था कि चुनाव लड़ो। कई सीटों से बुलावा आया। पिछले चुनाव में भी जनता की मांग थी लेकिन परिवार में ही टिकट आया तो हमने पैर खींच लिए। इस बार जनता की मांग को दरकिनार करना संभव नहीं था। लोग इस मुकाबले को देखना चाहते हैं।’