एम.एल शर्मा.
अखबार के पहले पन्ने पर आए दिन दुष्कर्म की खबरें प्रमुखता से छपी होती है। हवस की हैवानियत में इंसानियत पिसकर तार तार हो रही है। सरकार बदली, राज बदला पर हालात कतई नहीं बदले। प्रदेश में दिनों दिन बढ़ रहे दुष्कर्म के मामले तो कमोबेश यही स्थिति बयां करते हैं। हैरानी की बात है कि ऐसे हादसे होते ही उपजने वाला आक्रोश स्वतः ही मंद पड़ जाता है। आखिर इन सब का जिम्मेदार कौन है?
मौजूदा परिपेक्ष्य में मोबाइल इंटरनेट मुख्य सबब नजर आता है। पोर्न कंटेन्ट से व्यक्ति की मानसिकता इतनी विकृत हो गई है कि रक्त रिश्ते भी दुष्कर्म की भेंट चढ़ रहे हैं। आखिर अपनों को अपनों से बचाए कैसे, यह एक प्रश्न है। अब बेटियां खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है। दौसा में परीक्षा देकर लौट रही मासूम के साथ सामूहिक दुष्कर्म का मामला निश्चित रूप से कानून व्यवस्था के नाम पर दाग है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि लोक लाज, भय व दबाव जैसे कारणों से दर्ज न होने वाले प्रकरणों की संख्या इससे अधिक है। सरकारों के पास ठोस कार्रवाई का अभाव है। जरूरी हो गया है कि बेटियों को मेहंदी के साथ ही अब खड़ग संभालना होगा क्योंकि हैवान हर तरफ बैठे हैं। उत्तरदायी महकमें दुशासन दरबार बने हुए हैं। हवस इतनी हावी है कि दोषी लज्जाहीन बन गए हैं। इनसे लाज बचाने के लिए बेटियों को स्वयं से साक्षात्कार कर कर अपनी शक्ति को पहचानना होगा तभी इन पाशविक प्रवृत्ति के दानवों का संहार हो सकेगा। अपने भीतर प्राण का सृजन कर जीवन चक्र बनाने वाली महिला को मात्र देह के दायरे में देखना सरासर गलत है। आधी आबादी को चाहिए कि अपनी मान मर्यादा के रक्षण हेतु वह हर अश्लील हिंसक की निष्कृट नीयत को अपनी शक्ति का दम व दम्भ दिखाएं। अदम्य साहस व तार्किक जद्दोजहद के बूते सफलता की नई आधारशिला का सृजन करें। ईश्वर सबको सद्बुद्धि प्रदान करें।
(लेखक पेशे से अधिवक्ता हैं)