तीन शैतानों से जूझते युवा!

पूनम कुमावत. 

आज के युवा असीम क्रिएटिविटी, पोटेंशिअल और टेक्निकल नॉलेज व मल्टीपल प्रतिभाओं के धनी तथा ऊर्जावान हैं। वे नई सोच और नवीनतम विचारों के साथ आते हैं जिससेे वे किसी भी सिचुएशन को हैंडल करने व सकारात्मक सामाजिक बदलाव करने में पूर्णतया सक्षम हैं। उनके पास भरपूर संसाधन, विकल्प और अवसर होने के बाद भी सिर्फ 1 से 2 फीसद युवा ही जीवन को अपने सपनों जैसा आकार देने और अपने तथा दूसरों के जीवन को सफल बनाने में सफल हो पाते हैं। 

 आखिर क्यों ?
निश्चित ही वे अपनी युवावस्था में थ्री डेविल्स (तीन शैतानों) से जूझ रहे होते हैं – 
इन्फैचुएशन (मुग्धता/आसक्ति):
इस दौरान वे अपने हार्माेनल परिवर्तनों के कारण भावनात्मक रूप से अधिक संवेदनशील होते हैं और किसी के प्रति आसानी से आकर्षित हो जाते हैं, यह भावना प्रायः किसी व्यक्ति विशेष के बाहरी रूप-रंग से प्रभावित व अल्पकालिक होती है।

 इंटोक्सीकेशन (खुमारी/मादकता):
सेल्फ डिग्निटी, साथियों का दबाव, उनसे प्रतिस्पर्धा, मानसिक परेशानियाँ और अवैध पदार्थों की आसान उपलब्धता इत्यादि कारणों से किसी न किसी माध्यम से नशीली दवाओं या ऐसे अन्य घातक एलीमेंट्स की ओर आकर्षित होने के खतरे उनके चारों ओर मंडराते रहते हैं जिनके प्रभाववश वे डिप्रेशन में जा सकते हैं।

 सोशल मिडिया:
सूचनाओं की एक ऐसी बाढ़ जो युवाओं को अपने विचार एकत्र करने, उन पर ध्यान केंद्रित करने तथा उन्हें समझने का पर्याप्त समय ही नहीं देती और इससे एडिक्टेड युवा अपनी स्टडी, अपने कार्यों, रिश्तों व समग्र विकास के रास्ते से दूर होता चला जाता है। सोशल मीडिया का नेगेटिव यूज तो पहले दो डेविल्स को पोषित करने का कार्य भी करता है और एक हाइपोथिकल जाल बनाकर युवाओं को भ्रमित कर देता है जिससे वे अपनी एनर्जी का यूज पोजिटिव वे में नहीं कर पाते।
 यदि इन समस्याओं के समाधान की बात करें तो युवाओं को जिंदगी के इन तीनों शैतानों पर विजय पाने के लिए सबसे पहले तो जीवन का अर्थ समझना होगा कि जीवन एकपक्षीय नहीं बहुपक्षीय होता है और यह अनमोल है। 
 उनकी शिक्षा इतनी गुणवत्तापूर्ण व मूल्यपरक हो कि उन्हें सब्जबाग, आभासी दुनिया और वास्तविक जीवन में फर्क समझ आ जाए जिससे वे जीवन की हर सिचुएशन को बड़ी आसानी और पोजिटिव एटीट्यूड के साथ हैंडल कर सकें।
युवाओं को सोशल मीडिया का सीमित, सुरक्षित और जिम्मेदारीपूर्ण उपयोग करना सीखना होगा ताकि ये डेविल की बजाय डिवाइन के रूप में उपयोगी हो और बिना किसी डिस्ट्रक्शन के बड़े से बड़े लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सके।
 किशोरावस्था की इस अवधी को सफलतापूर्वक पार कराने हेतु पैरेंट्स और टीचर्स की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है जो उन्हें प्रोपर गाइडलाइन, मोटीवेशन और एक शानदार काउंसलर के रूप में स्वच्छ, स्वस्थ और सकारात्मक जीवनशैली अपनाने व एक बेहतर लक्ष्य निर्धारित और प्राप्त कराने में बहुपयोगी, बहुआयामी व अनमोल होती है।
(लेखिका शिक्षाविद् एवं कॅरियर काउंसलर हैं)

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