कुछ रातें जागने के लिए होती हैं!

गोपाल झा.
रात आराम से गहरी नींद में सोने के लिए होती है। ताकि आप अपने शरीर और मन को आराम दे सकें। आखिर, सबको आराम की जरूरत होती है। लेकिन कुछ रातें बेहद खास होती हैं। सपाट भाषा में कहें तो जागने के लिए। आंख, कान के साथ दिल और दिमाग को खोलकर जागने वाली रात। और वह रात आज की रात है। कुछ और रातें भी हो सकती हैं। यकीन मानिए…, कुछ रातें जागकर आप न सिर्फ अपने मकानों और दुकानों को बाढ़ की विभीषिका से बचा सकते हैं बल्कि हंसते-मुस्कुराते अपने खूबसूरत शहर को खुशहाल बनाए रखने में मददगार हो सकते हैं। वरना बाढ की विभीषिका और उसके बाद खौफनाक मंजर को महसूस करना हमारी नियति बन सकती है।
घग्घर नाली बेड में क्षमता से कहीं ज्यादा पानी आ रहा है। जिस तरह पानी की आवक में बढ़ोत्तरी जारी है, लगता है आने वाले समय में नाली बेड पर दबाव बढ़ेगा ही। स्पष्ट लग रहा है कि सेमनाला की क्षमता 16000 क्यूसेक पानी की है लेकिन वर्तमान में क्षमता से अधिक चल रहा है। अब साइफन पर जितना पानी बढ़ेगा, वह नाली बेड में ही बढ़ाया जाएगा।
जरा सोचिए, जब आप जरूरत से ज्यादा भोजन करते हैं तो क्या होता है ? यकीनन, उल्टी आती है। शरीर अपनी क्षमता से अधिक भोजन या पानी अपने अंदर रखने में सक्षम नहीं। यह क्षमता नदी-नालों पर भी लागू है। नाली बेड की क्षमता 5500 क्यूसेक पानी झेलने की मानी जाती है। इस वक्त इसमें पानी चल रहा है 7049 क्यूसेक। यानी करीब 1500 क्यूसेक से ज्यादा। सोचिए। हमारा हनुमानगढ़ किस मुहाने पर खड़ा है ?
कलक्टर रुक्मणि रियार संभावित आपदा की आहट को महसूस कर रही हैं। लिहाजा, उन्होंने अपना ध्यान ‘आपदा नियंत्रण’ के बाद ‘आपदा प्रबंधन’ की तरफ केंद्रित करना मुनासिब समझा है। जन सहयोग का आवाहन इसी का हिस्सा है। इसका सीधा सा अर्थ है। जनता अपनी शक्ति का परिचय दे। गांव के लोग जीवटता के साथ पिछले सप्ताह भर से बंधों की मजबूती के लिए डटे हुए हैं और शहर के लोग अपनी दुकानों को बचाने के लिए। इसी से ग्रामीण और शहरी लोगों के सोचने के अंदाज में बुनियादी फर्क नजर आता है। अगर हम तटबंधों को मजबूत कर लेंगे तो फिर दुकानों को बचाने की जरूरत ही कहां रहेगी ? सच तो यह है कि तटबंधों के टूटने पर आने वाली बाढ़ से दुकानों को बचाना उतना आसान भी नहीं। इसलिए जरूरी है, घग्घर बहाव क्षेत्र के बंधों को मजबूत कीजिए। निगरानी रखिए। मामूली रिसाव आने पर उसे पाटने का भरसक प्रयास कीजिए। हमने पहले भी कहा है। अपने घर की अनुपयोगी बोरियां ले जाइए। उसमें मिट्टी भरिए। एकत्रित कीजिए। जरूरत पड़ने पर उसका उपयोग कीजिए। बहुत मुश्किल काम नहीं है। सजग रहने की जरूरत है। याद रखिए, कुछ रातें जागने के लिए होती हैं। आने वाली कुछ रातें भी वही रातें साबित होने वाली हैं। भरोसा रखिए, यही सजगता, जीवटता और तत्परता हमें बाढ़ से बचाएगी। इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए। हमें उम्मीद है, हनुमानगढ़ के जिम्मेदार लोग कुछ रातें जागेंगे। क्योंकि कुछ रातें जागने के लिए होती हैं। है न ! 

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