‘ऑपरेशन सिंदूर’ की कहानी!

गोपाल झा.
रात के सन्नाटे में जब नींद आंखों को छूने लगी थी, तभी एक जिम्मेदारी ने चेताया, कल ‘ब्लैक आउट’ में भाग लेना है। बच्चों को बुलाया, उन्हें समझाया कि युद्ध या आपात स्थिति में हर नागरिक की भूमिका क्या होती है। अंधेरे में दीया जलाने से बड़ा कार्य है अंधकार के पीछे छिपे खतरे को समझना और समय रहते सावधानी बरतना। बच्चों की आंखों में जिज्ञासा थी, देशभक्ति का भाव था, और था वह भावुक क्षण जब राष्ट्र सर्वाेपरि लगता है।
सुबह की पहली किरण उम्मीद लेकर आई। मोबाइल की स्क्रीन पर एक हेडलाइन चमकी, ‘ऑपरेशन सिंदूर सफल’। भारत ने आतंक के विरुद्ध एक निर्णायक कार्रवाई की थी। खबरें आने लगीं, 100 से अधिक आतंकी ढेर। आँकड़े अभी पुष्ट नहीं, लेकिन राष्ट्र का हृदय पुलकित था। हमारी सेना ने हमेशा की तरह फिर मर्यादित कार्रवाई को अंजाम दिया। सिर्फ आतंकियों को निशाना बनाया, निर्दाेष नागरिक और पाकिस्तानी सेना को छुआ तक नहीं। यह युद्ध नहीं, यह न्याय का वह स्वरूप है जिसे सहिष्णु राष्ट्र भी कभी-कभी अपने आत्म-सम्मान की रक्षा हेतु अपनाता है।


‘ऑपरेशन सिंदूर’ न केवल एक सैन्य अभियान है, बल्कि यह एक प्रतीक है, शौर्य, संयम और संकल्प का। यह उस दर्द का उत्तर है, जो भारत ने वर्षों तक झेला है। कश्मीर की घाटियों में लहू बहता रहा, आरती की थालियाँ बुझती रहीं, सैनिकों की वर्दियाँ तिरंगे में लिपटी रहीं। किन्तु अब भारत ने स्पष्ट कर दिया है, शांति उसकी पसंद है, किंतु कमजोरी नहीं।
पाकिस्तान की बौखलाहट इस बात की गवाही है कि चोट गहरी है। वह बयान बदल रहा है, झूठ और असमंजस की चादर में छिपने का प्रयास कर रहा है। लेकिन ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने उसकी सीमाओं के भीतर बैठे उन ‘पालित पिशाचों’ को ललकारा है, जिनकी जड़ों में भारत के निर्दाेषों का रक्त है। चाणक्य के वचन इस प्रसंग में स्मरणीय हो उठते हैं, ‘आग के साथ आग बन मिलो, पानी से बन पानी, गरल का उत्तर है प्रतिगरल, यही कहते जग के ज्ञानी।’ सचमुच, गरल का उत्तर प्रतिगरल ही है। यह कोई प्रतिशोध नहीं, यह सामने वालों के अनैतिक और अमानवीय कृत्य का उत्तर है, जैसे को तैसा, किंतु नैतिक मर्यादा की सीमा में।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया बैठकों से यह संकेत मिलने लगा था कि देश ‘कुछ बड़ा’ करने की तैयारी में है। जब एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर एकत्र होते हैं, तब देश की आत्मा मजबूत होती है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सेना प्रमुखों के साथ निरंतर विमर्श से यह स्पष्ट हो गया था कि अब शब्द नहीं, शौर्य का समय है।


‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता केवल रणनीतिक नहीं है, यह मनःवैज्ञानिक विजय भी है। यह उन सैनिक परिवारों के लिए सांत्वना है, जिन्होंने अपने पति, पुत्र, पिता और भाई को खोया। यह उन गाँवों के लिए आश्वासन है, जिनकी सीमाएँ वर्षों से दहशत में थीं। यह उन माता-पिताओं की उम्मीद है, जिनके बच्चे सेना में भर्ती होकर राष्ट्र की सेवा करना चाहते हैं।
देखा जाए तो यह ऑपरेशन सिर्फ एक ‘जवाबी हमला’ नहीं, बल्कि पाकिस्तान की उस छद्म नीति के विरुद्ध कठोर चेतावनी है, जिसमें वह आतंकियों को अपनी विदेश नीति का औजार बना बैठा है। भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि अब कूटनीतिक और सैन्य दोनों मोर्चों पर ‘दृढ़ और निर्णायक प्रतिक्रिया’ उसका नीति-सिद्धांत होगा।


‘ऑपरेशन सिंदूर’ को केवल एक सैन्य घटना मान लेना उसकी गहराई को अनदेखा करना होगा। यह भारत के ‘स्ट्रैटेजिक डॉक्ट्रिन’ का परिष्कृत रूप है, जिसमें सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ वैश्विक छवि की रक्षा भी की जाती है। यह संदेश केवल पाकिस्तान को नहीं, बल्कि दुनिया को भी है कि भारत आतंक के विरुद्ध जीरो टॉलरेंस की नीति पर चलता है, और वह अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए कोई भी कदम उठा सकता है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे प्रेरक पक्ष है, जनमानस की एकजुटता। सोशल मीडिया से लेकर गाँव की चौपाल तक, एक ही भावना उभर रही है, ‘हम सेना के साथ हैं।’ यह वह राष्ट्रीय चेतना है, जो समय-समय पर उभरती है और फिर से विश्वास दिलाती है कि भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत, जागरूक और उत्तरदायी राष्ट्र है।


बेशक, यह वक्त नाजुक है। पाकिस्तान की ओर से प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं, वैश्विक दबाव और सीमा पर तनाव की स्थिति संभव है। लेकिन जो राष्ट्र 1971 में पाकिस्तान को विभाजित कर चुका हो, जिसने कारगिल में दुर्गम पर्वतों को जीत लिया हो, और जिसने सर्जिकल व एयर स्ट्राइक कर आतंक को सीधे उसके घर में मारा हो, वह आज कहीं अधिक संगठित, सक्षम और दृढ़ है।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ न केवल सैन्य विजय का नाम है, बल्कि यह ‘राष्ट्र की आत्मा के सिंदूर’ की रक्षा का संकल्प है। यह उस आँचल की सुरक्षा है, जिसमें भारत की माताएं अपने वीरों को पालती हैं। यह उन आँखों का उत्तर है, जिनमें अपने लाड़लों को खोने का दुःख है। यह एक ऐलान है कि भारत अब सहनशीलता की सीमा पार कर चुका है, और हर आँसू का उत्तर अब साहस से दिया जाएगा।


आने वाले समय में हमें संयम, सावधानी और राष्ट्रीय एकता के साथ आगे बढ़ना होगा। हम सभी नागरिकों को अब सजग प्रहरी की भूमिका निभानी होगी। क्योंकि जब राष्ट्र पर संकट आता है, तब केवल सैनिक नहीं, हर नागरिक ‘सीमा का सिपाही’ बन जाता है। आज पूरा देश सेना के शौर्य पर गर्व करता है। हम नमन करते हैं उन रणबांकुरों को जिन्होंने आतंक के अंधकार में जाकर सिंदूर की रेखा खींची है, साहस, सटीकता और संकल्प से भरी हुई। यह समय है, जब हम चुप न बैठें। यह समय है, जब हम कहें, जय हिन्द, जय सेना, जय भारत।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं

image description

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *