आरएसएस के स्वयंसेवकों ने किया शस्त्रपूजन, क्यों ?

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भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हनुमानगढ़ की ओर से विजयादशमी उत्सव पर शस्त्र पूजन कार्यक्रम हुआ। जंक्शन और टाउन में हुए इन कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में स्वयंसेवक मौजूद रहे। जंक्शन में मुख्य वक्ता श्रीगंगानगर विभाग सह कार्यवाह मोहनलाल सहारण थे, जिन्होंने विजयादशमी के महत्त्व पर प्रकाश डाला। वहीं हनुमानगढ़ टाउन में श्रीगंगानगर विभाग बौद्धिक प्रमुख रामेश्वर लाल मुख्य वक्ता रहे। उन्होंने शस्त्र पूजन किया और स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए संघ के उद्देश्यों और राष्ट्रनिर्माण में संघ के योगदान पर विचार रखे।


कार्यक्रम की शुरुआत घोष वादन और ध्वजारोहण से की गई। बाद में स्वयंसेवकों द्वारा दंड योग व्यायाम और दंड प्रहार का प्रदर्शन किया गया। रामेश्वर लाल ने बताया कि इस वर्ष संघ अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 1925 में विजयादशमी के दिन ही डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा संघ की स्थापना की गई थी और आज संघ विश्वभर में अपनी राष्ट्रसेवा के कार्यों के लिए जाना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्रभक्ति, अनुशासन और समाजसेवा के लिए समर्पित संगठन है और इसका प्रमुख कार्य बिखरे हुए हिंदू समाज को एकजुट कर समरसता का भाव लाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर किए गए ट्वीट का उल्लेख करते हुए आरएसएस के जिला प्रचार प्रमुख चेतन जिंदल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में संघ की अविरल यात्रा और राष्ट्र सेवा में स्वयंसेवकों के समर्पण की सराहना की है। साथ ही उन्होंने देशवासियों से सरसंघचालक मोहन भागवत के विजया दशमी के अवसर पर दिए गए उद्बोधन को अवश्य सुनने का आह्वान किया है। यह संदेश देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता है और ‘विकसित भारत’ के निर्माण में नई ऊर्जा भरता है।
कार्यक्रम में स्थानीय स्वयंसेवकों के साथ-साथ संघ के अन्य पदाधिकारी भी मौजूद रहे, जिन्होंने समाज को मजबूत और संगठित करने के संघ के प्रयासों की सराहना की। कार्यक्रम का समापन सामूहिक मातृभूमि की प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि’ और भारत माता की जय घोष के साथ हुआ। दरअसल, दशहरा के उपलक्ष्य में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की आराधना के बाद शस्त्र पूजन की परंपरा रही है। यह विजय की कामना का प्रतीक है। इसलिए आरएसएस के स्वयंसेवक हर साल विजयादशमी को इस परंपरा का निर्वहन करते हैं।

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