राजेश खन्ना: अपनों का सदाबहार ‘काका’

प्रदीप कुमार वर्मा.
रुपहले पर्दे का एक सुपरस्टार, एक बेहतरीन फिल्म निर्माता, एक दमदार एवं लोकप्रिय राजनेता और एक सदाबहार जिंदा दिल इंसान। वैसे तो राजेश खन्ना ताउम्र किसी पहचान के मोहताज नहीं रहे लेकिन रस्म-ए-दस्तूर है कि आज उनकी पुण्यतिथि है और फिल्म जगत सहित पूरी दुनिया उनको याद कर रही है। आज ही के दिन 18 जुलाई 2012 को मुंबई में एक लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया। हालांकि फिल्मी रंगमंच पर तब से अब तक कई सितारे आए और गए लेकिन ‘काका’ की जगह कोई नहीं ले सका। राजेश खन्ना ने छोटे नाटकों और रंगमंच से अपने अभिनय की शुरुआत की और फिल्मी दुनिया में शोहरत का नया मुकाम हासिल किया। उन्होंने कई फिल्में भी बनाई और इसके साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता के रूप में राजनीति में भी हाथ आजमाया।
राजेश खन्ना वर्ष 1991 से 1996 के बीच नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के सांसद रहे। लेकिन राजनीति राजेश खन्ना को रास नहीं आई और इसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया। काका उर्फ जतिन खन्ना उर्फ राजेश खन्ना का जन्म तत्कालीन ब्रिटिश भारत में 29 दिसंबर 1942 में पंजाब प्रांत के अमृतसर में हुआ। स्कूली दिनों से ही राजेश खन्ना का झुकाव अभिनय की ओर था। इसलिए उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थियेटर से की और फिर बॉलावुड पर कई सालों तक राज किया। भले ही राजेश खन्ना को उनके फैंस ‘काका’ के नाम से पुकारना पसंद करते हैं। लेकिन राजेश खन्ना का पहला नाम जतिन खन्ना था। उनके चाचा ने उनका नाम जतिन से बदलकर राजेश कर दिया। इस नाम ने न केवल उन्हें शोहरत दी, बल्कि यह नाम हर युवक और युवती के जेहन में अमर हो गया।


प्रख्यात फिल्म अभिनेता राजेश खन्ना ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत चेतन आंनद की फिल्म ‘आखिरी खत’ से की थी। इसके बाद साल 1969 में आई शक्ति सामंत की फिल्म ‘अराधना’ से राजेश खन्ना एक सफल एक्टर के रूप में बॉलीवुड में स्थापित हो गए। फिल्म ‘आराधना’ के बाद राजेश खन्ना बॉलीवुड में रोमांटिक एक्टर के रूप में फेमस हो गए। आराधना के बाद हिन्दी फ़िल्मों के पहले सुपरस्टार का खिताब अपने नाम किया। उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार 17 सोलो सुपरहिट फ़िल्में दीं। इनमें आराधना, इत्त्फ़ाक़, दो रास्ते, बंधन, डोली, सफ़र, खामोशी, कटी पतंग, आन मिलो सजना, ट्रैन, आनन्द, सच्चा झूठा, दुश्मन, महबूब की मेंहदी तथा हाथी मेरे साथी शामिल है। वह एक ऐसा जमाना था जब किसी फिल्म में राजेश खन्ना की मौजूदगी को उसे फिल्म के सुपरहिट होने का पैमाना माना जाता था।


करीब 50 साल के करियर में राजेश खन्ना उर्फ जतिन खन्ना और काका को फिल्म फेयर सहित कई पुरस्कार मिले। जिनमे वर्ष 2013 में मिला प्रतिष्ठित पद्म भूषण पुरस्कार भी शामिल है। अपने फ़िल्मी करियर में उन्होंने 180 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया और तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते। राजेश खन्ना को फ़िल्मफेयर पुरस्कार के लिये चौदह बार तथा बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड के लिये पच्चीस बार नामांकित किया गया। दोनों पुरस्कारों के लिये कुल 39 बार के नामांकन में उन्हें तीन बार फ़िल्मफेयर पुरस्कार एवं चार बार बंगाल फ़िल्म जर्नलिस्ट अवार्ड मिला। राजेश खन्ना को दस बार ऑल इंडिया क्रिटिक्स पुरस्कार के लिये नामांकित किया गया और उन्हें सात बार अवार्ड मिला।


राजेश खन्ना सुपरस्टार तो थे ही, उनके अफेयर भी उनकी तरह ही काफी सुपर रहे। सबसे पहले 70 के दशक में अंजू महेंद्रू के साथ काका का अफेयर चला। इसके बाद फिर 1973 में उन्होंने अपने से 15 साल छोटी डिंपल कपाड़िया से शादी कर ली। डिंपल और राजेश खन्ना का रिश्ता बड़ा ही अनयूजुअल-सा था। बेमेल उम्र, बेमेल करियर ग्राफ, लेकिन पक्की जोड़ी। इन दोनों के बारे में कहा जाता है कि बेशक, ये दोनों अलग-अलग रहे लेकिन कभी एक-दूसरे को तलाक नहीं दिया। राजेश खन्ना आखिरी वक्त में बुरी तरह बीमार पड़ गए थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक वे कैंसर से जूझ रहे थे। उन्हें अपनी मौत के डेढ़ साल पहले ही पता चला था कि वे इस जानलेवा बीमारी के शिकार हो चुके हैं। मौत के 20 दिन पहले उन्होंने फैमिली को कहा था कि ‘मैं जानता हूं, दवाइयां अपना काम नहीं कर रही हैं, लगता है मेरा टाइम आ गया है’।


कैंसर जैसी घातक बीमारी के चलते 18 जुलाई 2012 में उनका देहांत हो गया। फिल्मी दुनिया और अपने लोगों के बीच ‘काका’ कहकर पुकारे जाने वाले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने 69 साल की उम्र में दुनिया और इंडस्ट्री दोनों को अलविदा कह दिया। राजेश खन्ना ने फिल्म ‘आनंद’ में अपने शानदार अभिनय के जरिए न केवल लोगों के दिलों पर राज किया, बल्कि उनके द्वारा जीवन की नश्वरता के संबंध में बोले गए संवाद ‘बाबुमोशा’ जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं..’। एक और डायलॉग ‘बाबुमोशाय, जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ है… उससे ना तो आप बदल सकते है ना मैं… हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां है, जिनकी जोर उपरवाले की उंगलियों में बंधी है। कब कौन कैसे उठेगा… यह कोई नहीं बता सकता।’ यही वजह है कि उनकी कमी इंडस्ट्री और फैन्स को हमेशा खलती रहेगी।
-युवराज फीचर्स

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