




भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
किसी बच्चे के जीवन में माता-पिता के बाद अगर कोई सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, तो वह होता है ‘गुरु’। गुरु केवल शिक्षण नहीं, बल्कि सच्चे मार्गदर्शन और नैतिक संबल का भी प्रतीक होता है। ऐसे ही एक आदर्श गुरु के रूप में सामने आई हैं राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय पीलीबंगा की प्रधानाचार्य सीमा झाम्ब, जिन्होंने न केवल अपने कर्तव्य का निर्वहन किया, बल्कि साहस और संवेदनशीलता की मिसाल कायम कर दी।
यह मामला उस समय प्रकाश में आया जब विद्यालय में अध्ययनरत एक छात्रा ने अपने घर में ही देहशोषण का शिकार होने की पीड़ा साझा की। बालिका ने बताया कि उसके घर एक व्यक्ति का आना-जाना है। पिता नहीं हैं। मां जब कहीं जाती है तो वह व्यक्ति आता है और डरा-धमका कर उसकी अस्मत से खेलता है। डरी और सहमी हुई बच्ची ने जब यह बात प्रधानाचार्य से कहीं तो सीमा झॉम्ब अवाक रह गईं। ऐसे मामलों में अधिकांश लोग या तो मुंह मोड़ लेते हैं या डर और सामाजिक दबाव में चुप रह जाते हैं। लेकिन प्रधानाचार्य सीमा झाम्ब ने एक आदर्श शिक्षक और नारी शक्ति के रूप में जो निर्णय लिया, उसने बालिका को न्याय की राह दिखाई और समाज को एक नई प्रेरणा दी।
छात्रा की पीड़ा सुनकर सीमा झाम्ब ने बालिका और उसके परिवार के साथ थाने जाकर रिपोर्ट दर्ज करवाई। यह काम आसान नहीं था। समाज का दबाव, संस्थागत तंत्र की जटिलता और एक महिला होने के नाते अनेक चुनौतियाँ थीं। लेकिन उन्होंने न हिम्मत हारी और न ही पीछे हटने की सोची। बहुत सारे दबाव आए, धमकियां मिलीं। लेकिन सीमा झाम्ब अडिग रहीं। यहां तक कि पीड़िता को अपने घर ले आईं। वहीं पर रखा ताकि वह सुरक्षित रहे। अपने आपमें यह बड़ा साहसिक निर्णय था। इस तरह की तस्वीरें सिर्फ फिल्मों में ही देखी जाती हैं। आखिरकार मामला दर्ज हुआ। मुकदमा दर्ज होने के बाद पीड़िता के बयान, मेडिकल, साक्ष्य और सीमाजी के निरंतर प्रयासों के चलते आखिरकार 2021 में शुरू हुई न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत न्यायालय ने गत दिवस आरोपी को 20 वर्ष का कठोर कारावास सुनाया।
नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक शंकर सोनी कहते हैं, ‘सीमा झाम्ब जैसी शिक्षिका ही असल में समाज की रीढ़ हैं। जहां अधिकांश लोग चुप्पी ओढ़ लेते हैं, वहीं उन्होंने न सिर्फ आवाज उठाई, बल्कि कानून और संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप पीड़िता को न्याय दिलाने की राह भी प्रशस्त की। उनका यह कार्य नागरिक चेतना और महिला गरिमा दोनों के लिए प्रेरणास्रोत है।’
इंजीनियर ओम बिश्नोई कहते हैं, ‘“सीमा झाम्ब ने जो किया, वह केवल एक छात्रा के लिए नहीं, पूरे समाज की बेटियों के लिए एक ढाल जैसा है। उनका साहसिक कदम हमें यह सिखाता है कि जब भी अन्याय हो, तो कोई न कोई सीना ठोककर खड़ा हो, और वह कोई सामान्य व्यक्ति भी हो सकता है, अगर उसमें संकल्प और संवेदना हो। मैं उन्हें ‘युगनायिका’ कहता हूं।’
इस घटना से यह स्पष्ट है कि समाज में गुरु की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है। यह केवल शिक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि जब किसी बच्चे के जीवन में अंधकार फैल रहा हो, तो वह दीपक बनकर रास्ता दिखाए, यही असली शिक्षक है। सीमा झाम्ब ने न सिर्फ शिक्षक धर्म निभाया, बल्कि बालिकाओं की सुरक्षा और न्याय की मिसाल कायम कर पूरे राज्य को यह संदेश दिया कि अगर नारी सशक्त हो और अपने कर्तव्य के प्रति सजग हो, तो समाज से हर अंधकार मिट सकता है।
जब अदालत ने फैसला सुनाया तो प्रधानाचार्य सीमा झाम्ब की आंखें नम थीं, मन में संतोष का भाव था। सबसे अहम बात यह कि सीमा झाम्ब के इस साहसिक निर्णय में पति जेके झाम्ब हर कदम पर साथ नजर आए। उन्होंने किसी फैसले पर असहमति नहीं जताई, बल्कि साथ रहे। लिहाजा, हर कोई झाम्ब परिवार के हौसले और साहसिक कदम की सराहना कर रहा है।





