मौत का तांडव और बेबस तंत्र!

एमएल शर्मा.
12 जून 2025 यानी इतिहास का काला दिन। सरदार पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान में सवार 230 मुसाफिर भावी जिंदगी का ताना-बाना बुनने में मशगूल थे। मन में अनेकों ख्वाब पाले यात्रियों को आने वाले भयावह मंजर का आभास नहीं था। उड़ान भरने के तत्काल बाद विमान हवा में हिचकोले खाता जमीन की तरफ गिरने लगा। विमान सवार यात्री, क्रू मेंबर, यहां तक कि पायलट भी कुछ समझ पाते उससे पहले एक तेज धमाका और सब कुछ स्वाहा। ओह! हे भगवान, नियति का क्रूर प्रहार। अहमदाबाद के मेघानीनगर में विमान क्रैश होते ही एक खौफनाक, दर्दनाक मंजर दिखाई दिया। दरअसल, लंदन जा रहे विमान में तकनीकी खामी का आभास होते ही कैप्टन सुमित सभरवाल ने एटीसी से संपर्क कर चेतावनी मैसेज ‘मे डे’ कहा। बस, यही उनके आखिरी लफ्ज़ बन गए। हालांकि, कप्तान सभरवाल को 8 हजार 2 सौ घंटे व सह पायलट क्लाइव कुंदर को 11 सौ घंटे उड़ान का अनुभव था। बावजूद इसके, होनी बलवान रही और अपना रंग दिखा दिया। आपातकालीन स्थिति में प्रयोग किया जाने वाला मैसेज मे डे मिलते ही रनवे से अन्य विमान हटा लिए जाते हैं। एटीसी का विमान से संपर्क ना होने पर अनहोनी की आशंका बलवती हो गई। सहसा विमान मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर गिरा और सैकड़ांे जिंदगियों को लील गया। करीब सौ फीट तक आग की लपटे ही लपटे। अग्निकुंड में क्षत विक्षत शव छिटककर आसपास गिर गए। पहचानना मुमकिन ही नहीं रहा।


इधर, हादसे में ईश्वरीय कृपा से महज एक शख्स रमेश कुमार विश्वास ही जिंदा बच पाया। अपनी सीट 11 ए पर बैठे रमेश खिड़की टूटने के बाद उछलकर बाहर जा गिरे। गनीमत रही कि उन्हें ज्यादा चोटे नहीं आई। तब स्वयं उठकर एंबुलेंस तक पहुंचे। हादसे की सूचना मिलते ही बचाव दल सक्रिय होकर राहत कार्यों में जुट गया। दुखद पहलू है कि अब मृतकों की शिनाख्त डीएनए टेस्ट से ही मालूम होगी। इससे दुर्घटना की भयावहता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। उधर, गुजरात के पूर्व सीएम विजय रुपाणी को मौत खींच कर ले गई। उन्होंने लंदन जाने के लिए पूर्व में 5 जून व 10 जून को बनी हुई टिकट निरस्त करवाई थी। वे 1206 नंबर को खुद के लिए भाग्यशाली मानते थे। यही नंबर दुर्भाग्य बन गया।


यह थी विमान की संरचना
अमेरिकी कंपनी द्वारा निर्मित बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान दो इंजन वाला विमान है। दुर्घटना का शिकार हुए विमान की लंबाई 56.70 मीटर, विंग चौड़ाई 60 मीटर, ऊंचाई 16 .90 मीटर,फ्यूल क्षमता 125206 लीटर, गति 954 किलोमीटर प्रति घंटा, अधिकतम रेंज 13620 किलोमीटर व यात्री भार 256 यात्री है। भारत में ऐसे 47 विमान है ।
फिर कब चेतोगे सरकार
एक घटना घटती है तब हम सोचते हैं कि भविष्य की कल्पनाएं वास्तव में निराधार होती है। हादसे के बाद हुकमरान हरकत में आए। रटी-रटाई चंद लाइने बोली, मुआवजे का जुमला उछाला, बस हो गया काम। जय राम जी की! माना कि हादसे हो जाते हैं, पर जरूरी है कि हम हादसों से सबक ले। ताकि, भविष्य में इनकी पुनरावृत्ति ना हो। सबसे बड़ी हवाई दुर्घटना पर नैतिक दायित्व की भूल क्षमा योग्य नहीं कहीं जा सकती। इतना ही नहीं मीडिया ग्रुप भी बजाए असलियत दिखाने के ‘सत्ताधीशों’ के चाटुकार की भूमिका निभा रहे हैं। अफसोस, लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पंगु हो चुका है। कहते हैं पत्रकार को उस मच्छर की तरह होना चाहिए जो गलत होने पर भन भनाकर सरकार को तंग करें। प्रख्यात टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने कहा था कि ‘एक डरा हुआ पत्रकार लोकतंत्र में मरा हुआ नागरिक पैदा करता है।’मौ जूदा अधिकांश इलेट्रॉनिक टीवी ग्रुप कॉरपोरेट घराने व सरकार के पैरोकार बन चुके है। खबर की असलियत जानकर बोलने के अलावा सब करते है। समाचार को ‘स्वादिष्ट चाट’ की तरह परोसने में माहिर ये ग्रुप राजा रघुवंशी और सोनम कांड को भुला चुका है।


सवाल उठता है कि जब ‘सरकार’ खुद चुस्त दुरुस्त प्लेन का इस्तेमाल करते हैं, वो भी पुख्ता सुरक्षा इंतजामों के साथ, तो आवाम के लिए सुरक्षा मानको से परहेज क्यों? जब मेट्रो सिटीज में 10 वर्ष पुराने वाहनों का प्रवेश वर्जित है तो 15 साल पुराने विमान को उड़ाने की अनुमति ‘बदइंतजामी’ की पराकाष्ठा है। खेदजनक है कि अपना नया भारत ऐसा है। यहां सवाल उठाने वाले को देशद्रोही व गद्दार की मानद उपाधि मिलती है। पर प्रश्न उठना लाजिमी है, यकीनन, उठना भी चाहिए। सब लीपापोती में लगे हैं, उत्तरदायित्व से परहेज कर रहे हैं। दुर्घटना का शिकार बने प्लेन में दिल्ली से अहमदाबाद तक सफर करने वाले आकाश वत्स ने एयर इंडिया को टैग कर ट्वीट किया कि ‘फ्लाइट में काफी कुछ अजीब था, एसी बंद थे, टीवी स्क्रीन व रिमोट काम नहीं कर रहे थे।’ इतना ही नहीं उन्होंने एयर इंडिया को लिखा कि दिक्कतें जानने के लिए आप मुझसे संपर्क करें।
फिलहाल, सरकार डैमेज कंट्रोल में तल्लीन हो गई है। पीएम मोदी दुर्घटना स्थल पर जाने का ऐलान कर चुके हैं। प्लेन सवार मासूमों के परिवार उजड़ गए, चिकित्सक बन रहे युवा असमय काल कलवित हो गए। निजीकरण का खामियाजा मासूम जनता भुगत चुकी है। हादसे में दिवंगत हुए लोगों के प्रति गहरी संवेदना है। क्षोभ केवल सरकार के प्रति है। जरा विचार कीजिए, हम आने वाली पीढ़ी को आखिर दे क्या रहे है ? इल्तज़ा है कि आप सोचिएगा जरूर।
-लेखक पेशे से अधिवक्ता व समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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