




डॉ. एमपी शर्मा.
स्तनपान केवल शिशु को दूध पिलाने की एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह माँ और नवजात शिशु के बीच के सबसे आत्मीय, पवित्र और जैविक संबंधों की मजबूत नींव है। यह संबंध केवल पोषण तक सीमित नहीं, बल्कि भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक स्तर पर भी एक गहरा जुड़ाव पैदा करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ जैसे संस्थान इस बात पर जोर देते हैं कि जन्म के पहले घंटे में ही शिशु को स्तनपान शुरू कराया जाए और कम से कम छह माह तक केवल माँ का दूध ही दिया जाए।
माँ का दूध नवजात के लिए सम्पूर्ण आहार है, इसमें शिशु की उम्र, उसकी पोषण की आवश्यकता और पाचन क्षमता के अनुसार सभी जरूरी तत्व स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं। जन्म के तुरंत बाद जो गाढ़ा, पीले रंग का दूध निकलता है, उसे कोलोस्ट्रम कहा जाता है, जिसे ‘प्रथम अमृत’ कहा गया है। यह दूध शिशु के लिए सिर्फ पोषण ही नहीं, बल्कि उसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाला पहला प्राकृतिक टीका है। इसमें इम्युनोग्लोब्युलिन, एंटीबॉडीज़, जिंक, प्रोटीन, विटामिन ए और ऐसे तत्व होते हैं जो नवजात की आंतों में एक सुरक्षात्मक परत बनाकर हानिकारक बैक्टीरिया और संक्रमण से उसकी रक्षा करते हैं।

डायरिया, निमोनिया से बचाता है मां का दूध
स्तनपान करने वाले शिशुओं में डायरिया, निमोनिया, कान का संक्रमण, त्वचा रोग, यूरिनरी इन्फेक्शन जैसी बीमारियाँ कम होती हैं। उन्हें खांसी-जुकाम और एलर्जी या अस्थमा का खतरा भी अपेक्षाकृत कम होता है। रिसर्च से यह सिद्ध हो चुका है कि स्तनपान करने वाले बच्चों का आईक्यू औसतन अधिक होता है और उनमें आत्मविश्वास, भावनात्मक स्थिरता और सामाजिक जुड़ाव की प्रवृत्ति बेहतर पाई जाती है। इसके अलावा, स्तनपान से आगे चलकर बच्चों में मोटापा, टाइप 1 व टाइप 2 डायबिटीज़ और हार्ट डिजीज जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों का खतरा भी कम होता है।
माँ को है कई फायदा
स्तनपान केवल शिशु के लिए ही नहीं, बल्कि माँ के लिए भी अत्यंत लाभकारी है। इससे प्रसव के बाद गर्भाशय जल्दी अपनी सामान्य स्थिति में लौटता है क्योंकि स्तनपान के दौरान ऑक्सीटोसिन नामक हॉर्माेन का स्त्राव बढ़ता है। इसके अलावा यह एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक की तरह काम करता है, जब तक बच्चा पूरी तरह स्तनपान पर निर्भर होता है, माँ को मासिक धर्म देर से आता है। हालांकि यह 100 फीसद विश्वसनीय गर्भनिरोधक नहीं है। स्तनपान कराने से स्तन कैंसर और अंडाशय के कैंसर का खतरा भी कम होता है। प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव की संभावना भी घटती है। सबसे महत्वपूर्ण, माँ और शिशु के बीच स्नेह, लगाव और विश्वास की डोर मजबूत होती है।

दो साल तक बच्चा करे स्तनपान
शिशु के जन्म से पहले छह माह तक केवल स्तनपान कराया जाना चाहिए। इसमें पानी, घुट्टी, शहद कुछ भी न दिया जाए। छह माह के बाद पूरक आहार देना शुरू किया जा सकता है लेकिन स्तनपान जारी रखना चाहिए, कम से कम दो वर्ष तक। हर 2-3 घंटे में बच्चे को दूध पिलाएँ, रात में भी। एक बार एक स्तन से पूरा दूध पिलाने के बाद ही दूसरे स्तन का प्रयोग करें। स्तनपान कराते समय यह सुनिश्चित हो कि शिशु पूरी तरह माँ की ओर मुड़ा हो, उसका मुँह पूरी तरह खुला हो और निप्पल के साथ-साथ एरिओला (काले घेरे वाला भाग) का अधिकांश हिस्सा मुँह में हो।

यदि दूध कम बन रहा हो तो चिंता न करें, बच्चे को बार-बार चूसने दें। यह प्रक्रिया दूध बनने को प्रेरित करती है। निप्पल में दरार हो तो सही स्थिति में स्तनपान कराएं और डॉक्टर की सलाह से क्रीम लगाएँ। यदि बच्चा दूध नहीं पी रहा है, तो डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि यह जबान की बनावट या अन्य किसी जैविक कारण से हो सकता है।
सार, स्तनपान माँ और बच्चे दोनों के लिए प्रकृति का अनुपम उपहार है। यह न केवल शिशु के जीवन की सबसे अच्छी शुरुआत है, बल्कि माँ को भी शारीरिक और मानसिक संतुलन प्रदान करता है। परिवार, समाज, चिकित्सा कर्मी और नीति-निर्माताओं को मिलकर स्तनपान को बढ़ावा देना चाहिए। यह केवल एक पोषण की प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक संस्कार है, एक रिश्ता है, और जीवन की सबसे पहली और सबसे जरूरी वैक्सीन भी।
-लेखक सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं



