गोपाल झा.
किसी भी लोककल्याणकारी सरकार के लिए जरूरी है कि वह दूरदर्शी सोच के साथ कार्य करे। करीब 10 माह पुरानी भजनलाल सरकार वर्तमान से अधिक भविष्य को लेकर चिंतित नजर आ रही है। करीब चार महीने से सरकार ‘राइजिंग राजस्थान’ की तैयारी में जुटी है। साल के आखिरी महीने में ‘राइजिंग राजस्थान निवेश समिट’ होगा। इसके तहत अब तक देश और विदेश की नामी कंपनियों ने करीब 15 लाख करोड़ निवेश करने का करार किया है। सुखद बात है कि सरकार ने जिला स्तर पर भी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए इस तरह के प्रयास किए हैं। इससे उद्यमियों में उत्साह भी है। आपको याद होगा, इस तरह के प्रयास गहलोत सरकार ने भी किए थे। हां, उसका नाम अलग था यानी ‘इन्वेस्ट राजस्थान समिट’।
मुझे याद है, उस वक्त ‘भटनेर पोस्ट’ ने उद्योगपतियों के साथ ‘संवाद’ किया था। सवाल यह था कि जब सरकार बाहरी निवेशकों को लुभाने के लिए व्यापक स्तर पर कार्यक्रम कर रही है तो स्थानीय निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल तैयार क्यों नहीं करती। जिससे स्थानीय औद्योगिक क्षेत्र में ‘बहार’ आ जाए। उद्यमियों ने एक स्वर में सरकार के प्रयास का समर्थन किया था लेकिन चार विभागों के असहयोगी रवैए को लेकर नाखुशी जाहिर की थी। उनका दो टूक कहना था कि अगर बिजली, रीको, उद्योग और प्रदूषण नियंत्रण विभाग सहयोगी रुख अपना ले तो जिला स्तर पर औद्योगिक क्षेत्रों की बदहाली स्वतः दूर हो जाएगी और औद्योगिक विकास को रफ्तार मिल जाएगी।
सच तो यह है कि जिला स्तर पर उद्यमियों को आज भी इन्हीं चार विभागों की ‘नेकनीयती’ पर संशय है। उनका स्पष्ट मानना है कि इन विभागों में नीचे से उपर तक बदहाल स्थिति है। कोई किसी की सुनने के लिए तैयार नहीं, काम करना तो दूर की बात है। सवाल यह है कि ऐसे में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और उनकी सरकार के इस अभियान का क्या हश्र होगा?
बेशक, सरकार को गंभीरता दिखानी होगी। सबसे पहले इन विभागों की कार्यप्रणाली की सुस्ती दूर करनी होगी। इसके लिए जरूरत के मुताबिक स्टाफ, ऑनलाइन प्रणाली और संबंधित काम के लिए निर्धारित अवधि सुनिश्चित करनी होगी ताकि इसके बाद काम में विलंब के लिए सक्षम अधिकारी व कर्मचारी की जवाबदेही तय हो। साथ ही इन विभागों के बीच आपसी सामंजस्य की भावना विकसित करने की जरूरत है। इसके अलावा, उद्यमियों के काम आने वाले विभागों पर निगरानी के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त हो जो इनकी मॉनिटरिंग कर सके और आखिर में उद्यमियों की परेशानी को दूर कर सके। सरकार चाहे तो संबंधित जिला कलक्टर्स को नोडल अधिकारी बना सकती है। क्योंकि कलक्टर वैसे भी जिले में प्रशासन का बॉस होता है। अगर फिर भी वाजिब काम अटके तो संबंधित विभाग सहित नोडल अधिकारी की जिम्मेदारी तय हो ताकि उसकी सजगता प्रभावित न हो।
कहना न होगा, सरकार का प्रयास सराहनीय है। औद्योगिक विकास से ही बेरोजगारी दूर की जा सकती है, अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकती है। मौजूदा सरकार को पिछली सरकारों की कमियों से सीख लेनी चाहिए और उसे दूर करने के लिए पुख्ता प्रयास करने चाहिए ताकि अभियान को गति मिल सके। उम्मीद है, अभियान सफलता का सोपान तय करेगा और राजस्थान विकास के पथ पर यूं ही आगे बढ़ता रहेगा आहिस्ता-आहिस्ता। जय-जय राजस्थान।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं