जिला आयुर्वेद अधिकारी पद से रिटायर डॉ. शिव कुमार शर्मा हनुमानगढ़-श्रीगंगानगर जिला नहीं बल्कि राजस्थान सहित देश भर में बतौर ‘वैद्यजी’ विशिष्ट स्थान रखते हैं। उनके पास कमोबेश हर बीमारी का समुचित उपचार है। इसलिए लोग उन्हें राजस्थान का ‘धन्वंतरि’ मानते हैं।
भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में तहसील है टिब्बी। पास में है गांव चाहूवाली। इसी गांव में 10 अप्रैल 1944 को डॉ. शिव कुमार शर्मा का जन्म हुआ था। जब वे 11 साल के थे तो ताउ देवीदत्त शर्मा ने इन्हें दत्तक पुत्र मान लिया था। कुछ समय बाद शिव कुमार शर्मा हनुमानगढ़ टाउन में शिफ्ट हो गए और साल 1961 में राजकीय फोर्ट स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास की। शुरू से आयुर्वेद में रुझान के कारण वे आयुर्वेद विश्वभारती गांधी विद्यापीठ सरदारगढ़ में दाखिला लेने पहुंचे। साल 1967 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरी की।
पहली पोस्टिंग: बतौर आयुर्वेद चिकित्सक डॉ. शिव कुमार शर्मा की पहली पोस्टिंग भीलवाड़ा के शाहपुरा तहसील में गांव चित्ताम्बा में हुई। लेकिन चार माह ही उनका तबादला तत्कालीन श्रीगंगानगर जिले के गांव नौरंगदेसर हो गया। यहां पर वे चार वर्ष पदस्थापित रहे। साल 1971 से 1978 तक उनकी पोस्टिंग पक्कासारणा में रही। साल 1978 में हनुमानगढ़ में प्राकृतिक चिकित्सालय की स्थापना हुई और डॉ. शर्मा को इसी चिकित्सालय में लगाया गया। डॉ. शर्मा ‘भटनेर पोस्ट’ को बताते हैं कि उस वक्त प्राकृतिक चिकित्सालय का संचालन टाउन स्थित नेहरू चिल्डन स्कूल परिसर में हुआ करता था जबकि आज जहां पर प्राकृतिक चिकिल्सालय संचालित है, उस भवन में राजकीय एलोपैथिक अस्पताल था। अनाज मंडी के पीछे एलोपैथ अस्पताल स्थानांतरित होने के बाद इस भवन में राजकीय प्राकृतिक चिकित्सालय का संचालन शुरू हुआ। खास बात है कि 1978 से लेकर 1995 तक डॉ. शर्मा इसी अस्पताल में पदस्थापित रहे। फिर जिला आयुर्वेद अधिकारी बनने के बाद साल 2002 में वे सरकारी सेवा से रिटायर हो गए।
ब्यूरोक्रेट्स और पॉलिटिशयन के पसंदीदा वैद्य: डॉ. शिव कुमार शर्मा का यश दूर-दूर तक फैला हुआ है। बीमारियां दूर करने का तर्जुबा ऐसा कि ब्यूरोक्रेट्स और पॉलिटियशन इनके मुरीद हैं। एलोपैथ के दौर में आयुर्वेद का क्या महत्व है ? डॉ. शिव कुमार शर्मा कहते हैं, ‘एलोपैथ और आयुर्वेद का अलग-अलग महत्व है। एलोपैथ पद्धति से बीमारी को रोक सकते हैं, जड़ से खत्म नहीं कर सकते। आयुर्वेद पद्धति से आप बीमारी को खत्म कर सकते हैं। दूसरी बात, एलोपैथ में दवाइयों के साइड इफेक्ट हैं जबकि आयुर्वेद में किसी दवाई से आपको इस तरह की दिक्कत नहीं होगी।’
स्वर्णिम था 80 का दौर: आयुर्वेद के लिहाज से सबसे बेहतर दौर 80 का दशक माना जाता है। डॉ. शिव कुमार शर्मा कहते हैं, ‘उस वक्त राजस्थान ही नहीं देश भर में आयुर्वेद को लेकर प्रयास होते थे। अकेले राजस्थान में करीब 150 अस्पताल खोले गए थे। आज स्थिति यह है कि वहां पर संसाधन का अभाव है। सरकार समुचित बजट मुहैया करवाए तो आम जन को आयुर्वेद से लाभ मिल सकता है। शिक्षित वर्ग का आयुर्वेद के प्रति रुझान बढ़ा है लेकिन औषधियों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। डॉ. शर्मा स्वीकार करते हैं कि नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद योग और प्राकृतिक चिकित्सा को लेकर प्रचार हुआ है लेकिन इस पर और काम करने की जरूरत है।
आयुर्वेद का सिद्धांत: डॉ. शिव कुमार शर्मा आयुर्वेद का मूल सिद्धांत बताते हुए ‘भटनेर पोस्ट’ से कहते हैं, ‘स्वच्छता से स्वास्थ्य का संरक्षण’। यही है आयुर्वेद का मूल सिद्धांत। आयुर्वेद पद्धति से उपचार का लाभ लेना है तो चार तत्व को दिल से स्वीकार करना होगा। पहला-सुयोग्य वैद्य, दूसरा-सुयोग्य औषधि, तीसरा-विश्वासी रोगी और चौथा-दक्ष परिचारक। इसमें दिनचर्या, पथ क्रिया और जीवनशैली का अपना महत्व है।’