टिक-टिक कर रही बीजेपी की घड़ी, क्या अलार्म बजेगा ?

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भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान इकाई में नई टीम कब बनेगी? यह सवाल अब पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर नेता तक सबके जहन में गूंज रहा है। प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ को जिम्मेदारी संभाले हुए करीब 10 महीने हो चुके हैं, फरवरी में उन्हें फिर से निर्विरोध चुना गया। लेकिन अभी भी उन्हें सीपी जोशी की बनाई पुरानी टीम के सहारे संगठन चलाना पड़ रहा है। इसकी वजह न तो संगठन चुनाव है, न लोकसभा की हार का सदमा, असल वजह है पार्टी के दिल्ली दरबार की चुप्पी।
मदन राठौड़ को 25 जुलाई 2024 को राजस्थान भाजपा की कमान सौंपी गई थी। फरवरी में उन्हें निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित भी कर दिया गया। संगठन के लिहाज से यह बड़ा ‘महापर्व’ था, लेकिन पर्व के बाद भी ‘टीम’ का गठन आज तक अधूरा है। केवल दो पदाधिकारी अब तक नियुक्त किए गए हैं, जबकि 40 से 45 पदाधिकारियों वाली नई कार्यकारिणी की फाइल अब भी ‘अधूरी मंजूरी’ के इंतजार में है।
‘टीम वही, चेहरा नया!’
वर्तमान कार्यकारिणी में 33 पदाधिकारी हैं, जिनमें 10 उपाध्यक्ष, 5 महामंत्री, 13 मंत्री और एक कोषाध्यक्ष शामिल हैं। मदन राठौड़ को इन्हीं के साथ काम चलाना पड़ रहा है, जबकि पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि 150 से ज्यादा नेताओं के नाम और बायोडाटा पर गंभीर मंथन हो चुका है। अनौपचारिक सूची लगभग तैयार है, लेकिन बटन दबाने का रिमोट अब भी दिल्ली के पास है।


‘युवा चेहरों’ की लिस्ट, लेकिन ऐलान में ‘देर’
नई कार्यकारिणी में 50 फीसदी युवा व सक्रिय चेहरे, 25-33 फीसदी महिलाएं, और हर क्षेत्र-सामाजिक वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व देने की योजना है। यह टीम काफी कुछ ‘बदलाव’ और ‘संतुलन’ का प्रतीक होगी, बशर्ते यह बने! फिलहाल सब कुछ राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा पर अटका है।
दिल्ली की दो धाराएं, नड्डा अभी या नया बाद में?
भाजपा में फिलहाल दो गुट बन चुके हैं। एक चाहता है कि जेपी नड्डा की स्वीकृति से ही टीम बने। इसी वजह से 31 मई को जयपुर दौरे पर आ रहे नड्डा के समक्ष कार्यकारिणी पेश करने की कोशिश हो रही है। वहीं, दूसरा खेमा चाहता है कि पहले नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान हो, फिर प्रदेश टीम बने। जिन पुराने चेहरों को कार्यकारिणी से बाहर किया जाएगा, उन्हें बोर्ड व आयोगों में एडजस्ट करने की योजना है। करीब 40 नेताओं को इन संस्थानों में समायोजित करने पर विचार चल रहा है। इस तरह नेतृत्व संतुलन साधने और असंतोष को शांत करने की रणनीति अपनाई जा रही है।
‘खेमों’ से ‘क्षत्रपों’ तक: नया संतुलन मुश्किल
एक समय था जब भाजपा में खेमेबंदी महज वसुंधरा बनाम विरोध तक सीमित थी। लेकिन भजनलाल शर्मा के मुख्यमंत्री बनने के बाद समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। अब पार्टी में दर्जनभर क्षत्रप सक्रिय हैं, जो अपने-अपने लोगों को कार्यकारिणी में देखना चाहते हैं। यही कारण है कि मदन राठौड़ की नई टीम के गठन में इतना वक्त लग रहा है। भले ही मदन राठौड़ निर्विरोध प्रदेशाध्यक्ष बन चुके हों, लेकिन उनकी टीम अब भी ‘निर्विरोध’ रूप से गायब है। नई कार्यकारिणी के गठन में हो रही देरी भाजपा की भीतरूनी राजनीति और संगठनात्मक असंतुलन का प्रतिबिंब है। देखना दिलचस्प होगा कि 31 मई को नड्डा जयपुर में आकर कोई ‘राजनीतिक संजीवनी’ देते हैं या फिर नई टीम का इंतजार और लंबा खिंचता है।

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