गोपाल झा.
राजस्थान में सत्ता हासिल होने के बावजूद भाजपा सकते में है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अपना सौ फीसद दे रहे हैं तथापि पार्टी को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पा रहा है। करणपुर उप चुनाव में मिली हार से पार्टी उबरी भी नहीं कि लोकसभा चुनाव में 11 सीटें छिन गईं। अब विधानसभा की पांच सीटों पर फिर उप चुनाव है। बीजेपी बेचैन है।
सरकार और संगठन का शीर्ष पद एक ही जाति के पास होने से पार्टी असहज महसूस कर रही थी। सांसद सीपी जोशी ने दो बार प्रदेशाध्यक्ष पद छोड़ने का मन बनाया, इस्तीफे की पेशकश भी की लेकिन आलाकमान ने ‘इंतजार’ करने के लिए कहा। आखिरकार, इस महीने के आखिरी सप्ताह पार्टी सहमत हो गई और मदन राठौड़ ने सीपी जोशी की जगह ले ली। पार्टी को लगता है, मूल ओबीसी वर्ग को साधने में मदद मिलेगी। लेकिन यह इतना आसान नहीं। राठौड़ पूरे प्रदेश के लीडर नहीं हैं। पार्टी का आम कार्यकर्ता उनसे परिचित नहीं है। सच तो यह है कि अधिकांश लोग उन्हें ‘राजपूत’ समझते हैं। यह दीगर बात है, राठौड़ मूल ओबीसी में घांची जाति से हैं। बेशक, राठौड़ के पास जनसंघ से भाजपा तक काम करने का अनुभव है लेकिन वे अलग-अलग धड़ों में विभक्त भाजपा को साथ लेकर चल सकेंगे, संदेह है।
उधर, मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी की फाइल लंबित है। पार्टी अध्यक्ष से लेकर प्रधानमंत्री स्तर पर मामले की सुनवाई होनी है। किरोड़ीलाल जिद और जूनून के लिए जाने जाते हैं। यू-टर्न लेंगे, इसमें संशय है। राजस्थान में न सिर्फ भाजपा बल्कि कांग्रेस में भी उनके जैसा कद्दवर आदिवासी नेता और कोई नहीं है। ऐसे में भाजपा इन्हें नाराज रखकर अपना और नुकसान नहीं करना चाहेगी। जाहिर है, किरोड़ी को संतुष्ट करना बीजेपी की मजबूरी है। यकीनन, पार्टी प्रयास कर रही होगी।
सामाजिक संतुलन के हिसाब से सत्ता के शीर्ष पर भजनलाल शर्मा हैं जो जाति से ब्राह्मण हैं और संगठन की कमान मदन राठौड़ को दी गई है जो मूल ओबीसी से आते हैं। जाहिर है, अब भजनलाल सरकार के कैबिनेट में फेरबदल का समय आ गया, लगता है। संभव है, आने वाले समय में कैबिनेट में बदलाव हो। विभाग बदले जाएं। इस वक्त मुख्यमंत्री सहित 24 मंत्री हैं। यह संख्या 30 तक जा सकती है। कुछ पुराने नेताओं को शामिल किया जा सकता है। क्योंकि मौजूदा मंत्रिमंडल नए चेहरों पर आधारित है। विधानसभा में विपक्ष के सामने सरकार की किरकिरी हुई है। कई मंत्री तो जवाब देने में हिचकिचाहट महसूस करते हैं। ऐसे में सरकार के सामने दुविधापूर्ण स्थिति हो जाती है। आलम यह है, विधानसभा स्पीकर को बचाव करना पड़ता है।
देखा जाए तो राजस्थान भाजपा ‘प्रयोगशाला’ बन गई है। आलाकमान वसुंधराराजे को दरकिनार करने की जिद में नित प्रयोग कर रहा है। प्रयोग तो प्रयोग है, असफल भी हो सकता है, हो भी रहा है। ऐसे में पार्टी अपनी गलतियों को सुधारने का प्रयास करेगी तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।