मेक इन इंडिया बनाम चीन प्लस वन

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डॉ. संतोष राजपुरोहित.
‘मेक इन इंडिया’ और ‘चीन प्लस वन’ रणनीति, दोनों ही भारत की औद्योगिक नीति और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में इसकी भूमिका के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत सरकार ने मेक इन इंडिया अभियान 2014 में शुरू किया, जिसका उद्देश्य विनिर्माण और निवेश को बढ़ावा देना था। दूसरी ओर, चीन प्लस वन रणनीति एक वैश्विक प्रवृत्ति है, जिसमें कंपनियां अपनी उत्पादन इकाइयों को चीन के अलावा अन्य देशों में स्थानांतरित कर रही हैं। भारत के लिए यह रणनीति एक अवसर भी है और चुनौती भी। इस लेख में हम समझेंगे कि कैसे भारत इस बदलाव का लाभ उठा सकता है और किन मुद्दों को हल करने की जरूरत है। मेक इन इंडिया का लक्ष्य भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। इस पहल के तहत सरकार ने कई सुधार किए हैं। मोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मा, और टेक्सटाइल सेक्टर को प्रोत्साहन। व्यापार सुगमता में भारत की रैंकिंग में सुधार। रक्षा, खुदरा और विनिर्माण क्षेत्रों में विदेशी निवेश को बढ़ावा। हालांकि, मेक इन इंडिया के तहत उत्पादन बढ़ा है, लेकिन भारत अब भी कई क्षेत्रों में चीन से पीछे है।
चीन प्लस वन रणनीति: भारत के लिए अवसर
‘चीन प्लस वन’ रणनीति का मतलब है कि वैश्विक कंपनियां चीन पर अपनी निर्भरता कम कर रही हैं और अन्य देशों में भी विनिर्माण इकाइयां स्थापित कर रही हैं। इसका मुख्य कारण है। चीन में बढ़ती मजदूरी लागत व अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध। भारत को इस बदलाव से फायदा हो सकता है क्योंकि वैश्विक कंपनियां भारत में निवेश बढ़ा रही हैं, एप्पल, सेमसंग और टेस्ला जैसी कंपनियां भारत में उत्पादन बढ़ा रही हैं। भारत में श्रम लागत चीन से कम है, जिससे कंपनियों को कम खर्च में उत्पादन करने का मौका मिलता है। पीएलआई स्कीम और आत्मनिर्भर भारत अभियान विदेशी कंपनियों को भारत में लाने में मदद कर रहे हैं।
हालांकि, भारत को चीन की जगह लेने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। चीन में बेहतर सड़कें, बंदरगाह और लॉजिस्टिक्स सुविधाएं हैं, जबकि भारत को इसमें सुधार करने की जरूरत है। भारत की श्रम उत्पादकता चीन से कम है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। भारत में भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून और टैक्स नीतियां अब भी जटिल हैं, जिससे कंपनियों को कठिनाई होती है। चीन में ऊर्जा और लॉजिस्टिक्स की लागत भारत से कम है, जिससे उसकी प्रतिस्पर्धात्मकता अधिक है। भारत को क्या करना चाहिए?
अगर भारत को चीन प्लस वन रणनीति का सबसे बड़ा लाभार्थी बनना है, तो उसे कई तरह के सुधार करने होंगे। मसलन, सड़कों, रेलवे, बंदरगाहों और बिजली आपूर्ति में सुधार करना। श्रम कानूनों को सरल बनाना। उद्योगों के लिए लचीलापन बढ़ाना और श्रमिकों के कौशल को मजबूत करना। लालफीताशाही और नीतिगत बाधाओं को कम करना। चीन की तरह भारत को भी आर एंड डी और उच्च तकनीक उत्पादन में निवेश करना चाहिए। घरेलू, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग को मजबूत करना ताकि वे बड़ी कंपनियों का समर्थन कर सकें।
‘मेक इन इंडिया’ और ‘चीन प्लस वन रणनीति’ भारत के लिए बड़ा अवसर है। हालांकि, भारत को इन्फ्रास्ट्रक्चर, नियामकीय सुधार और स्किल डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में सुधार करने की जरूरत है। यदि भारत इन चुनौतियों को दूर कर लेता है, तो वह अगला बड़ा वैश्विक विनिर्माण केंद्र बन सकता है और चीन का विकल्प बन सकता है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

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