जल बनेगा अब नीति का अस्त्र!

गोपाल झा.
क्त जब इंसानियत के आँगन में ख़ून के छींटे गिरा दे, जब फूलों के देश में बारूद की बदबू महकने लगे, और जब निःस्वार्थ प्रेम की संस्कृति पर आतंकी साया मंडराने लगे, तब इतिहास को नया रास्ता देना पड़ता है। 22 अप्रैल को पहलगाम की घाटियों में गूंजे गोलियों के शोर ने न केवल 27 निर्दाेष जिंदगियों को लील लिया, बल्कि भारत के धैर्य की उस अंतिम रेखा को भी पार कर दिया जिसे अब तक शांति की चाह में खींचे रखा गया था।
इस रेखा को लांघने की कीमत अब पाकिस्तान को चुकानी होगी, पानी की कीमत पर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने जिस वक्त सिंधु जल समझौते को रोकने का निर्णय लिया, उसी वक्त यह स्पष्ट हो गया कि अब आतंक की फसल उगाने वालों को पानी नहीं दिया जाएगा। दरअसल, 1960 में जब सिंधु जल संधि हुई थी, तब भारत ने मानवीयता और पड़ोसी धर्म को प्राथमिकता देते हुए अपने जल संसाधनों का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को सौंपा। दुनिया ने सराहा, युद्ध के बाद भी भारत ने उदारता दिखाई। लेकिन यह उदारता तब तक पुण्य है, जब तक उसका दोहन न किया जाए। आज जब पाकिस्तान उसी पानी से अपने ज़मीर की सिंचाई नहीं, बल्कि आतंक के दलदल की खेती कर रहा है, तब भारत का यह निर्णय केवल कूटनीति नहीं, धर्म और न्याय का उद्घोष है।


पाकिस्तान की खेती, पीने का पानी, बिजली उत्पादन, सब कुछ सिंधु प्रणाली पर टिका है। आंकड़ों की बात करें तो करीब 90 प्रतिशत कृषि भूमि इस जल पर निर्भर है। सिंधु, झेलम और चेनाब, जिनके उद्गम भारत में हैं, अगर भारत अपने हिस्से का जल रोकता है, बाँध बनाता है, जलाशय बनाता है, तो यह पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में है।
यह केवल पानी रोकना नहीं है, यह उस विचारधारा को रोकने की शुरुआत है जो आतंक को मजहब की चादर ओढ़ाकर दुनिया के सामने पेश करती है। यह उस पाकिस्तान को आईना दिखाने की पहल है, जो खुद जलता हुआ दीया है, मगर दूसरों के घर में अंधेरा करने की कोशिश करता है।
भारत सरकार का यह कदम सिर्फ जलनीति तक सीमित नहीं है। 23 अप्रैल को हुई ढाई घंटे की आपात बैठक में पाँच महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए। इनमें सिंधु जल समझौते को स्थगित करना, अटारी-वाघा चेक पोस्ट को तत्काल प्रभाव से बंद करना, भारत में रह रहे पाकिस्तानी नागरिकों को 1 मई से पहले लौटने का निर्देश, सभी वीजा रद्द करना, पाकिस्तानी उच्चायोग के सैन्य अधिकारियों को देश छोड़ने का आदेश शामिल है। इनमें हर निर्णय एक साफ संदेश है, अब भारत केवल वार्ता की मेज नहीं, नीति की धार पर बात करेगा।


पाकिस्तान भले ही इस निर्णय को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाए, दलीलों का पुलिंदा पेश करे, मगर पूरी दुनिया जानती है, उसकी धरती आतंक की नर्सरी बन चुकी है। वहाँ के सत्ता केंद्र आतंकवादियों के पालक हैं, और सेना एक ऐसे छाया सरकार की तरह है जो लोकतंत्र का मुखौटा पहनकर दुनियाभर को छल रही है। अगर भारत का यह निर्णय पूरी प्रभावशीलता से लागू हुआ, तो पाकिस्तान के खेत बंजर हो सकते हैं, बिजली संकट गहरा सकता है, महंगाई बढ़ सकती है, और अंततः जनता का गुस्सा उसकी सत्ता की दीवारों में दरारें डाल सकता है। और यही वह दर्द होगा जो उसे आतंकियों से दूरी बनाने पर विवश करेगा।
इस फैसले के समर्थन में जिस प्रकार सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने स्वर मिलाया है, वह भारत की लोकतांत्रिक परिपक्वता का संकेत है। जब राष्ट्र की अस्मिता पर चोट होती है, तब भारत की विविधता एक ध्वज तले एकत्र हो जाती है, यही भारत की अखंडता का सबसे सशक्त रूप है। यह केवल 27 नागरिकों की हत्या नहीं थी, यह हमारी सामूहिक चेतना पर हमला था। अब भारत चुप नहीं रहेगा, भारत अब जवाब देगा, योजनाबद्ध, वैधानिक और निर्णायक रूप से।


भारत कभी भी युद्ध का पक्षधर नहीं रहा। वह सदा शांति, संवाद और सहअस्तित्व की बात करता रहा है। लेकिन सहिष्णुता की भी एक सीमा होती है। जब सहनशीलता कायरता मानी जाने लगे, तब सहिष्णुता को रणनीति में बदल देना चाहिए। भारत ने अब वही किया है। यह निर्णय बताता है कि अब भारत पानी की तरह बहने वाला देश नहीं, बल्कि जरूरत पड़े तो बाँध बाँधकर भी संकल्प का पर्वत खड़ा करने वाला राष्ट्र है।
यह समय है राष्ट्र के पुकारने का, यह क्षण है इतिहास में एक नई स्याही से लिखे जाने का। भारत का निर्णय केवल एक राजनीतिक घोषणा नहीं, यह उन 27 आत्माओं के प्रति श्रद्धांजलि है, जो पहलगाम की घाटियों में अब सदा के लिए मौन हो गईं। यह उन माताओं के आँसुओं की लाज है, जिनके बेटे आतंकियों की गोलियों के शिकार हुए। अब समय है, हम सब एक हों। शब्दों से नहीं, कर्मों से। कंधे से कंधा मिलाकर, सरकार के साथ खड़े हो जाएँ। यही वक्त का तकाजा है। क्योंकि जब एक बूँद पानी रोक दी जाती है, तो इतिहास की नदियाँ बहने लगती हैं। और अब भारत इतिहास बना रहा है। आइए, हम भी भागीदार बनें। जय हिंद।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं

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