प्रधानमंत्री के हाथों कठपुतली बन जाएगा चुनाव आयोग!

शंकर सोनी.

क्या हम प्रधानमंत्री को निरंकुश बनाने के मार्ग पर जा रहे हैं ? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ईडी व सीबीआई की शक्तियों को केवल भाजपा के राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध उपयोग किए जाने के आक्षेप लगाए जा रहें है। इसके साथ-साथ उन पर अन्य संवैधानिक संस्थाओं पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के आक्षेप भी लगाए जा रहे हैं। भारतीय संविधान में चुनाव आयोग,
संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, भारत के नियंत्रक और महालेखा ,भारत के महान्यायवादी, राज्य के महाधिवक्ता और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी कुल दस संवैधानिक संस्थान है।
भारतीय जनतंत्र के हितों की रक्षा करने का दायित्व इन सभी संस्थानों पर है। स्वस्थ जनतंत्र की नींव इन संस्थानों की निष्पक्षता, पारदर्शिता और आम जनता के प्रति जिम्मेदारी पर ही रखी है।

 संविधान की संरक्षक होने के नाते इन संस्थानों की शुचिता को बनाए रखने का दायित्व हमारी न्यायपालिका पर है। आजादी के बाद भारत में काफी वर्षाे तक तक एक राजनीतिक दल (कांग्रेस) की सत्ता रही, इसलिए इन संवैधानिक संस्थानों की परीक्षा घड़ी नहीं आई। एकाधिक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के जनाधार बनने के कारण इंदिरा गांधी के शासनकाल में संवैधानिक संस्थानों की भूमिका पर सवाल उठने लग गए थे। इंदिरा गांधी द्वारा अपने शासनकाल में आपातकाल की घोषणा और संविधान के 42 वे संशोधन से प्रधानमंत्री की शक्तियां निरंकुशता की सीमा तक बढ़ा दी थी।

 सन 2014 के बाद प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 26 नवंबर को संविधान दिवस घोषित कर इंदिरा गांधी द्वारा अपने समय में संविधान की प्रस्तावना में किए गए संशोधनों और संवैधानिक मौलिक कर्तव्यों को पढ़ाना शुरू किया। जिससे उनकी नीयत पर सवाल खड़ा होना चाहिए था पर प्रभावी विरोध के अभाव में कोई सवाल नही उठा। अब प्रधानमंत्री मोदी पर संवैधानिक संस्थानों को अपने हाथों में लेने के आक्षेप भी लगाए जा रहे।

आगामी लोकसभा चुनाव से पूर्व आम नागरिक को इस संस्थानों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी होनी चाहिए। इस लेख में हम एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्थान भारतीय निर्वाचन आयोग पर चर्चा करेंगे।
 निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव का संचालन करता है। चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को संविधान के अनुसार की गई थी। संविधान में अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का पूर्ण दायित्व सौंपा गया है। चुनाव आयोग चुनावी प्रक्रिया में संविधान के अनुसार समानता, निष्पक्षता, स्वतंत्रता स्थापित करता है। निर्वाचन में नागरिकों विश्वसनीयता निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता, पारदर्शिता, अखंडता पर निर्भर करती है और निर्वाचन आयोग को नागरिकों के प्रति अपने संवैधानिक दायित्वों को सुनिश्चित होगा।
 संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार राजनीतिक दलों को अनुशासित करने का दायित्व भी निर्वाचन आयोग पर है।
अनुच्छेद 329 में चुनावी मामलों में अदालतों द्वारा हस्तक्षेप को प्रतिबंधित किया गया हैं। संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा ‘संसद द्वारा उस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन’ की जाएगी। मूल रूप से आयोग में केवल एक चुनाव आयुक्त था लेकिन चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम,1989 के बाद इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय (1 मुख्य चुनाव आयुक्त और 2 अन्य चुनाव आयुक्त) बना दिया गया।
 इसके बाद कुछ समय के लिये इसे फिर एक सदस्यीय आयोग बना गया पर 1 अक्तूबर, 1993 से फिर से तीन सदस्यीय बना दिया गया। तब से निर्वाचन आयोग में राष्ट्रपति द्वारा प्रधान मंत्री की सलाह से एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्त होते आ रहे हैं। टीएन शेषन के मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनने से पूर्व आम आदमी को निर्वाचन की शक्तियों का ज्ञान नहीं था। टीएन शेषन 1990 से 96 की अवधि में देश के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए थे। शेषन को मौलिक सोच रखने वाले नौकरशाह के रूप में याद किया जाता है।
 वर्तमान में राजनीति में भ्रष्टाचार चर्म सीमा पर है और राजनीति का अपराधीकरण हो चुका है। इनसे निपटना निर्वाचन आयोग के लिये एक बड़ी चुनौती है। चुनाव के लिये सरकारी वाहनों और भवनों का उपयोग कर निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया जाता है। निर्वाचन आयोग के पास राजनीतिक दलों को विनियमित करने के लिये पर्याप्त शक्तियाँ नहीं हैं। किसी राजनीतिक दल के आंतरिक लोकतंत्र और पार्टी के वित्तीय विनियमन को सुनिश्चित करने की भी कोई शक्ति निर्वाचन आयोग के पास नहीं है।
हालिया वर्षों में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य दो आयुक्तों की नियुक्तियां सरकार की पसंद के सदस्यों को किए जाने, ईवीएम में खराबी होने के आधार पर निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़े होने लगे हैं और यह धारणा ज़ोर पकड़ रही है कि चुनाव आयोग कार्यपालिका के दबाव में काम कर रहा है।
संविधान सभा में बहस के समय मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका पर चर्चा की गई क्योंकि राष्ट्रपति द्वारा निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की जाती है और राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर कार्य करते है।
डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने बताया कि चुनाव मशीनरी सरकार के नियंत्रण से बाहर होनी चाहिए। संविधान सभा के सदस्य ईसीआई की नियुक्ति व्यवस्था को संसद के विवेक पर छोड़ने पर सहमत हुए थे। सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा अनूप बरनवाल बनाम भारत सरकार के मामले में 2 मार्च, 2023 आदेश पारित किए कि जब तक संसद संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के अनुरूप कानून नहीं बनाती, तब तक निम्नलिखित निर्देश दिए।
 (1). मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा के विपक्ष के नेता की तीन सदस्यीय समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर की जाएगी और यदि कोई विपक्ष का नेता उपलब्ध नहीं है, तो संख्या बल की दृष्टि से लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश।
 (2). चुनाव आयुक्तों को हटाने का आधार भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के मुख्य चुनाव आयुक्त के समान ही होगा जो कि ‘मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश’ के अधीन सर्वाेच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान आधार पर होगा।
 (3). चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तों में नियुक्ति के बाद उनके अहित के लिए बदलाव नहीं किया जाएगा।
उक्त निर्णय के बाद दिसंबर 2023 में सांसद द्वारा द चीफ इलेक्शन कमिश्नर ( एपॉइंटमेंट, कंडीशंस ऑफ सर्विसेज ) एक्ट 2023 पारित किया गया और 28 दिसंबर 2023 को इस अधिनियम का गजट नोटिफिकेशन भी हो चुका है। ज्ञात रहे यह अधिनियम विरोधी पार्टीयों सांसदो के निलंबन की स्थिति में पारित हुए है।
नए अधिनियम के अनुसार निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त के अलावा राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाने वाली संख्या में निर्वाचन आयोग होंगे। नए अधिनियम में एक सर्च कमेटी होगी जिसके अध्यक्ष केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री होंगे तथा भारत सरकार के सचिव रैंक के दो सदस्य होंगे। इस सर्च कमेटी द्वारा पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार किया जाएगा जिसमें से सेलेक्शन कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति की जाएगी।
गौर करने योग्य है सलेक्शन कमेटी सर्च कमेटी द्वारा प्रेषित पैनल में नामित के अलावा भी किसी व्यक्ति के नाम पर विचार कर सकती है। सलेक्शन कमेटी के अध्यक्ष प्रधानमंत्री होंगे, दो सदस्य होंगे, जिनमें से एक लोकसभा में विरोधी दल या अधिकतम सदस्य वाले विरोधी दल का नेता तथा दूसरा प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त कैबिनेट मंत्री होगा।
 इस नए अधिनियम के अनुसार मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाने की प्रक्रिया को यथावत रखते हुए यह प्रावधान रखा गया है कि जिन आधारों पर और जिस प्रक्रिया से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को हटाया जा सकता है, उसी प्रक्रिया से मुख्य निर्वाचन आयुक्त को हटाया जा सकेगा। अन्य निर्वाचन आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही हटाया जा सकता जा सकेगा। इस प्रावधान से निर्वाचन आयोग की स्वायत्तता बनी रहेगी क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कोई भी राजनीतिक दल आसानी से नहीं हटा सकेगा। इससे मुख्य निर्वाचन आयुक्त संविधान के अनुसार निर्भय होकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकेगा।
अगर मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर टी एन शेषन जैसे अधिकारी की नियुक्ति होती तो निर्वाचन आयोग अपना संवैधानिक कर्तव्य निर्वहन कर बेईमान पार्टियों के नकेल डाल सकेगा अन्यथा निर्वाचन आयोग प्रधानमंत्री के हाथों कटपुतली बनने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
(-लेखक जाने-माने अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष हैं)

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