सीवरेज का ज़हर, बाढ़ का डर फिर भी हनुमानगढ़ में सन्नाटा क्यों ?

प्रेम सहू.
12 जुलाई 1994 को जब श्रीगंगानगर से अलग होकर हनुमानगढ़ को जिला घोषित किया गया, तब लोगों की आंखों में एक सुनहरा सपना था। विकास, आधुनिकता और समस्याओं से निजात का सपना। लेकिन आज 31 वर्षों के बाद भी कई मूलभूत समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। चाहे बात घग्घर नदी की भयावह बाढ़ की हो या टाउन और जंक्शन क्षेत्र में बरसात और सीवरेज से उपजती अव्यवस्था की, हनुमानगढ़ आज भी विकास के इंतज़ार में है।
घग्घर नदी का नाम सुनते ही स्थानीय लोगों के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं। यह नदी हर वर्ष बरसात में विकराल रूप धारण कर बस्तियों, खेतों और रास्तों को निगल जाती है। विडंबना यह है कि आज तक इसका स्थायी समाधान नहीं निकाला जा सका।
दरअसल, बारिश से पहले यदि नालियों व घग्घर बैल्ट की सफाई कर दी जाए और घास-केली को समय रहते हटा दिया जाए, तो नदी के टूटने की घटनाओं से बचा जा सकता है। हाल की बारिश में नालियों में उगी घास ने बहाव को अवरुद्ध कर दिया, जिससे शहर में बाढ जैसे हालात नजर आए।
हनुमानगढ़ की भौगोलिक बनावट समतल है, जिससे बारिश का पानी रुक जाता है। शहर को दो भागों, टाउन और जंक्शन में बांटने वाला नाला, आज एक बड़ी समस्या बन चुका है। यह न केवल अस्वास्थ्यकर स्थिति को जन्म देता है, बल्कि बारिश के पानी की निकासी का कोई सक्षम साधन भी नहीं है।
अगर प्रशासन जयपुर की दरव्वती नदी और अहमदाबाद की साबरमती नदी की तरह घग्घर नदी का सुनियोजित विकास करता, तो यह एक स्थायी समाधान हो सकता था। दोनों क्षेत्रों कृ टाउन और जंक्शन का बरसाती पानी अगर योजनाबद्ध तरीके से एसटीपी के माध्यम से घग्घर में मिलाया जाता, तो न केवल जलभराव से मुक्ति मिलती, बल्कि नदी किनारे का क्षेत्र भी स्मार्ट और सुंदर बन सकता था।
जयपुर में दरव्वती नदी को पुनर्जीवित करने पर प्रति किलोमीटर ₹30 करोड़ का खर्च आया। हनुमानगढ़ में यदि मात्र 5 किलोमीटर लंबी घग्घर नदी का इसी मॉडल पर विकास किया जाए, तो करीब ₹150 करोड़ की लागत में एक स्थायी और सुन्दर समाधान साकार हो सकता है। न केवल यह जलप्रबंधन में सहायक होगा, बल्कि आसपास के किसानों को भी मुआवजे के रूप में विकसित भूमि मिल सकती है। दरअसल, विकास की यह सोच यदि समय रहते अपनाई जाती, तो आज हनुमानगढ़ अपने सीवरेज व बाढ़ से मुक्त एक मॉडल जिला होता।


शहर के बायपास पर बना सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट आज खुद एक समस्या बन गया है। स्थानीय लोगों के अनुसार, बिना ट्रीटमेंट किए हुए पानी को जोड़कियां गांव के खेतों में बहा दिया जाता है। इसका परिणाम यह है कि उस क्षेत्र की मिट्टी और उपज दोनों ज़हरीली हो चुकी है।
वहां की फसलें अब पोषण नहीं, बल्कि बीमारी दे रही हैं। ये वही हालात हैं जो बुड्ढा नाले में वर्षों पहले देखने को मिले थे, जो श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में कैंसर के मामलों के पीछे एक प्रमुख कारण माने जाते हैं।
कुलचंद्र गांव: हर सातवां घर कैंसर पीड़ित
यदि प्रशासन अब भी नहीं जागा, तो हालात और भी भयावह हो सकते हैं। ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि कुलचंद्र गांव में हर सातवां घर कैंसर से पीड़ित है। यह स्थिति सिर्फ चिकित्सा की नहीं, बल्कि सामाजिक चिंता की भी है। यह संकेत है कि ज़मीन, जल और हवा में ज़हर घुल चुका है और यह जहर हमारी अगली पीढ़ी को निगलने को तैयार बैठा है।


एनजीटी की चेतावनी भी बेअसर
पूर्व जिला प्रमुख शोभा सिंह डूडी और उप जिला प्रमुख शबनम गोदारा द्वारा एनजीटी में याचिका दाखिल कर इस भयावह संकट पर आवाज़ उठाई गई थी। एनजीटी ने 50 करोड़ रुपये का जुर्माना तो लगाया, परंतु ज़मीनी कार्यवाही आज तक न के बराबर हुई। जुर्माना भर देने से न तो पानी शुद्ध होगा, न खेत ज़हरमुक्त, और न ही मौतों की यह खामोश श्रृंखला रुकेगी।
अब भी समय है…हनुमानगढ़ को अब सोचने की नहीं, बल्कि ठोस कार्यवाही की आवश्यकता है। यह आवश्यक है कि घग्घर नदी का दरव्वती मॉडल पर सौंदर्यीकरण किया जाए। बरसाती पानी व सीवरेज की एकीकृत निकासी योजना बनाई जाए। एसटीपी को आधुनिक व प्रभावी बनाया जाए और खेतों में केमिकलयुक्त व जहरीले पानी का बहाव बंद हो। प्रदूषित क्षेत्रों में समय-समय पर स्वास्थ्य कैंप, जल-जांच व मृदा परीक्षण अनिवार्य हो। नगर परिषद, जल संसाधन विभाग और स्वास्थ्य विभाग मिलकर संयुक्त कार्य योजना तैयार करें।
जन-जागरण की ज़रूरत
समस्या सिर्फ सरकार की उदासीनता नहीं, बल्कि हम सबकी चुप्पी भी है। अब समय है कि प्रबुद्धजन, पत्रकार, शिक्षक, डॉक्टर, युवा और किसान सभी मिलकर अपनी ज़मीन, अपने जल और अपने भविष्य के लिए एक स्वर में आवाज़ उठाएं।
आओ, मिलकर यह संकल्प लें कि आने वाली पीढ़ी को हम एक सुरक्षित, स्वच्छ और समृद्ध हनुमानगढ़ देंगे, जो विकास का प्रतीक हो, संकट का नहीं। आप भी आगे आएं, सुझाव, शिकायत या समाधान साझा करें और सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाएं। क्योंकि हनुमानगढ़ की चिंता सिर्फ प्रशासन की नहीं, हम सबकी है।
-लेखक सामाजिक कार्यकर्ता और भाजपा नेता हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *