श्रीराम जन्मोत्सव की काव्यगंगा में प्रज्ज्वलित हुए भावों के दीप, जानिए… कैसे ?

भटनेर पोस्ट डेस्क.
जब शब्दों में भक्ति हो, भावों में समर्पण और अवसर हो श्रीराम नवमी के उपलक्ष्य में कवि सम्मेलन का तो कविता केवल कविता नहीं रह जाती, वह एक आध्यात्मिक अनुष्ठान बन जाती है। कुछ ऐसा ही अनुभव करवाया राष्ट्रीय कवि संगम (दक्षिण हावड़ा इकाई) ने, जब राम जन्मोत्सव के पावन अवसर पर एक विशिष्ट काव्य संध्या का आयोजन किया गया। यह आयोजन केवल एक साहित्यिक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि राम नाम की मधुर गूंज के साथ भावनाओं का महाकुंभ बन गया, जहाँ देश के कोने-कोने से जुड़ी रचनात्मक आत्माएं एक मंच पर एकत्र हुईं और श्रीराम के आदर्शों, चरित्र और भक्ति को अपनी कविताओं में ढालकर जनमानस को भावविभोर कर दिया। वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हुए आयोजन में श्रद्धा, साहित्य और संस्कृति का त्रिवेणी संगम देखने को मिला। हर प्रस्तुति जैसे रामकथा का एक नया अध्याय बनकर उभरी, जहाँ कभी भक्ति छलकी, कभी प्रेम बहा, तो कभी मर्यादा की गूंज सुनाई दी।


रामनवमी के पावन अवसर पर राष्ट्रीय कवि संगम (दक्षिण हावड़ा इकाई) द्वारा आयोजित विशेष काव्य संध्या एक ऐसे साहित्यिक पर्व में परिवर्तित हो गई, जहाँ भक्ति, भाव, छंद और शब्दों की गूंज में राम नाम की गंगा बह निकली। यह मनोहारी आयोजन तरंग माध्यम के सौजन्य से संपादित किया गया, जिसमें देशभर के ख्यातिप्राप्त साहित्यकारों व कवियों की गरिमामयी उपस्थिति रही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. गिरिधर राय ने की। प्रांतीय उपाध्यक्ष श्यामा सिंह मुख्य अतिथि थे। जबकि प्रांतीय सह महामंत्री बलवत सिंह गौतम ने विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थिति दर्ज कराई। कार्यक्रम में भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर गोपाल झा भी बतौर अतिथि शामिल हुए। कार्यक्रम का शुभारंभ राष्ट्रीय कवि संगम (दक्षिण हावड़ा) की अध्यक्ष हिमाद्रि मिश्र द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ, जिसने वातावरण को आध्यात्मिक बना दिया। इसके पश्चात इकाई की महामंत्री नीलम झा ने आत्मीयता से स्वागत भाषण देकर समस्त अतिथियों का अभिनंदन किया।


भक्ति, भाव और शब्दों की त्रिवेणी
काव्यधारा का आरंभ प्रणति ठाकुर की भावपूर्ण प्रस्तुति ‘हे हरि हर, लो मन की पीड़ा’ से हुआ। उनके मधुर स्वर और सधी हुई भाव-भंगिमा ने जैसे रामभक्ति की धारा को प्रवाहित कर दिया। इसके बाद कवियों की एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियों ने उपस्थित जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया। विजय इस्सर की ग़ज़ल ‘सियावर राम का जीवन चरित आदर्श बन जाए’ ने श्रोताओं को सोचने पर विवश कर दिया।
सुप्रसिद्ध कवयित्री रंजना झा ने अपनी रचना ‘यहाँ राम हैं, वहाँ राम हैं, कैसे बतलाऊँ कहाँ कहाँ राम हैं’ से एक दिव्य अनुभूति दी। दिल्ली से जुड़ी रीना रंजन ने राम पर केंद्रित अपने गीतों में शुद्ध भक्ति और संगीत का सुंदर समन्वय किया। नीलम झा ने मिथिला वासियों की राम के प्रति भावना को स्वर दिया, जो श्रोताओं के मन में गहराई तक उतर गया।
स्वागत बसु की रचना ‘मेरे राम’ भी खूब सराही गई, जबकि रामाकान्त सिन्हा ने अपनी परंपरागत ऊर्जावान शैली में राम पर केंद्रित रचना प्रस्तुत कर वाहवाही बटोरी।


कमल पुरोहित, पुनीत अग्रवाल और पुष्पा मिश्र जैसे प्रतिभावान रचनाकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियों से कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए। श्यामा सिंह और हिमाद्रि मिश्र की स्तरीय रचनाएं भी विशेष आकर्षण रहीं। दर्शक दीर्घा में उपस्थित रेखा रजक भी भावविभोर होकर प्रस्तुति का रसास्वादन करती रहीं।
डॉ. गिरिधर राय ने राम पर केंद्रित एक सशक्त कुंडलिया रचना प्रस्तुत की तथा नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ एक विशेष रचना सुनाकर समा बांध दिया। उन्होंने सभी कवियों की रचनाओं पर सकारात्मक समीक्षा करते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया।
बलवत सिंह गौतम ने अपने विचार रखते हुए रामनवमी की शुभकामनाएं दीं और कहा कि राम न केवल मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, बल्कि विविधता में एकता के प्रतीक हैं। उन्होंने इस आयोजन को इसका जीवंत उदाहरण बताया। कार्यक्रम का कुशल संचालन हिमाद्रि मिश्र द्वारा किया गया, जिन्होंने वक्ताओं और कवियों को सहजता से मंच पर आमंत्रित किया। वहीं रंजना झा ने संयोजन में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। अंत में विजय इस्सर द्वारा हृदयस्पर्शी धन्यवाद ज्ञापन के साथ इस भावनात्मक काव्य यात्रा का समापन हुआ।

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